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मनुष्य का कर्म ही इस लोक या स्वर्ग में भी उसके भाग्य का निर्माण करता है. व्यक्ति का वर्तमान उसके पूर्व जन्मों के किये गये पुण्य या पाप कर्म  का परिणाम होता है और उसके भविष्य का भाग्य भी वर्तमान में किये कर्मों से ही बनता है. विवेकानंद ने राजयोग प्रकरण में पतंजली के सूत्र “सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगाः” की व्याख्या में लिखा  है कि जो बीत चूका है उसकी चिंता मत करो  क्योकि उसे नहीं बदला जा सकता है, जो समय नहीं आया है उसके बारे में भी क्या कर सकते हो ? तुम्हारे हाथ में सिर्फ वर्तमान है उसकी चिंता करो ताकि भविष्य अच्छा बने. वर्तमान में जो कुछ जिन्दगी में घटित हो रहा है वह प्रारब्ध है, उसमे कोई परिवर्तन नहीं हो सकता है. प्रारब्ध का या तो विपाक होता है या उसका तप-साधना इत्यादि अनुष्ठान से नाश होता है. भविष्य अर्थात अगला जन्म अच्छा हो उसके लिए वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए. ज्योतिष में भाग्य भाव के स्वामी को सबसे ज्यादा महत्व प्राप्त है क्योकि वर्तमान जीवन उसी की उत्पत्ति है.
विहाय सर्वं गणकैर्विचित्यं भाग्यालयं केवलमत्र यत्नात। 
आयुष्च, माता, पिता च वंशो भाग्यान्वितेनैव भवन्ति धन्या:।। 
भाग्य भाव के स्वामी अर्थात भाग्येश और पंचम भाव के स्वामी अर्थात पंचमेश कुछ स्थानों पर राजयोगकारक होते हैं. सभी बारह राशियों में उनकी सम्भावित स्थिति दी गई है –

भाग्येश का राशियों के अनुसार राजयोग

मेष लग्न- मेष लग्न में मंगल और बृहस्पति अगर कुंडली के नौवें या दसवें भाव में विराजमान होते हैं तो यह राजयोग कारक बन जाता है बशर्ते वह नीच, पापान्वित न हो.

वृष लग्न- वृष लग्न में शुक्र और शनि अगर नौवें या दसवें स्थान पर विराजमान होते हैं तो यह राजयोग का निर्माण कर देते हैं. इस लग्न में शनि राजयोग के लिए अहम कारक है.

मिथुन लग्न- मिथुन लग्न में अगर बुध या शनि कुंडली के नौवें या दसवें घर में एक साथ आ जाते हैं तो ऐसी कुंडली वाले जातक का जीवन राजाओं जैसा बन जाता है.

कर्क लग्न- कर्क लग्न में अगर चंद्रमा और बृहस्पति  भाग्य या कर्म के स्थान पर मौजूद होते हैं तो यह केंद्र त्रिकोंण राजयोग बना देते हैं. इस लग्न वालों के लिए  बृहस्पति  और चन्द्रमा बेहद शुभ ग्रह हैं. हलांकि बृहस्पति हमेशा ही इस लग्न में पूर्ण शुभ नहीं होता.

सिंह लग्न- सिंह लग्न के जातकों की कुंडली में अगर सूर्य और मंगल दसम या भाग्य स्थान में बैठ जाते हैं तो जातक के जीवन में राज योग का निर्माण हो जाता है.

कन्या लग्न- कन्या लग्न में बुध और शुक्र अगर भाग्य स्थान या दसम भाव में एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है.

तुला लग्न- तुला लग्न वालों का भी शुक्र या बुध अगर कुंडली के नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाता है तो इस ग्रहों का शुभ असर जातक को राजयोग के रूप में प्राप्त होने लगता है.

वृश्चिक लग्न- वृश्चिक लग्न में सूर्य और मंगल, भाग्य स्थान या कर्म स्थान (नौवें या दसवें) भाव में एक साथ आ जाते हैं तो राजयोग हो जाता है. यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है कि अगर मंगल और चंद्रमा भी भाग्य या कर्म स्थान पर आ जायें तो यह शुभ रहता है.

धनु लग्न- धनु लग्न के जातकों की कुंडली में राजयोग के कारक, बृहस्पति और सूर्य माने जाते हैं. यह दोनों ग्रह अगर नौवें या दसवें घर में एक साथ बैठ जायें तो यह राजयोग कारक बन जाता है.

मकर लग्न- मकर लग्न वाली की कुंडली में अगर शनि और बुध की युति, भाग्य या कर्म स्थान पर मौजूद होती है तो राजयोग बन जाता है.

कुंभ लग्न- कुंभ लग्न वालों का अगर शुक्र और शनि नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है.

मीन लग्न- मीन लग्न वालों का अगर बृहस्पति और मंगल जन्म कुंडली के नवें या दशम स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाते हैं तो यह राज योग बना देते हैं.

यह प्रमुख रूप से नवमेश और पंचमेश के सम्बन्ध से राजयोग की स्थिति बताई गई है. इसके लिए कुंडली का शुद्ध होना, लग्न और लार्ड का शुद्ध होना आवश्यक है. साथ में सूर्य नीच का नहीं होना चाहिए, यदि सूर्य नीच भावगत है तो अनेक राजयोग भी निरस्त हो जाते हैं. चन्द्रमा का भी शुभ रहना आवश्यक है साथ राजयोगकारक ग्रह भी किसी प्रकार से पापन्वित नहीं होना चाहिए.