पिछले दिनों कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी ने ‘सत्यं शिवं सुन्दरं’ शीर्षक से एक लेख लिखा था जो indian express में प्रकाशित हुआ था. यह लेख मीडिया में चर्चा में भी रहा और उन्होंने इसे ट्विटर पर शेयर भी किया था. मेरे देखे यह लेख थोड़ा वायवी था और यह उनके हिन्दू धर्म की कच्ची समझ को सामने लाता है. यह सत्य है कि मानवता किसी न किसी दुःख में जीती है और सनातन हिन्दू धर्म ने मानवता को इससे परे जाने का मार्ग बताया हैं. यह एक पक्ष है जिसको ट्विटर पर उन्होंने लिखा था-
एक हिंदू अपने अस्तित्व में समस्त चराचर को करुणा और गरिमा के साथ उदारतापूर्वक आत्मसात करता है, क्योंकि वह जानता है कि जीवनरूपी इस महासागर में हम सब डूब-उतर रहे हैं। निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही उसका धर्म है।
इसमें भी कोई संदेह नहीं है हिन्दू धर्म सबको आत्मसात करता है, सबकी रक्षा करता है और सत्य अहिंसा उसके मूल में स्थित है. यह हिन्दू बखूबी जानता है और उसका आचरण भी करता है इसलिए हिन्दू दुनिया की सबसे शांतिप्रिय कौम है. इन गुणों के कारण सभी धर्मों में हिन्दू धर्म सबसे श्रेष्ठ है. दूसरी तरफ दुनिया का सबसे बड़े धर्म ईसाईयत और इस्लाम हैं. इस्लाम किसी भी अन्य मजहब को मानने वालों को स्वतंत्र रूप में अंगीकार नहीं करता इसलिए किसी इस्लामिक देश में हिन्दू या किसी अन्य मजहब के लोग महफूज नहीं रहते. यहाँ तक कि भारत में भी जिन राज्यों में इनकी संख्या थोड़ी अधिक है, वहां हिन्दू महफूज नहीं रहता. कश्मीर एक महत्वपूर्ण उदाहरण है. लेकिन आश्चर्य है कि शांति से रहते हुए आत्मा की खोज करने, सबको अंगीकार करने का उपदेश राहुल जी ने जिहाद को धर्म मानने वाले मुस्लिम समाज को नहीं दिया? सेक्युलर मत को मानने वाले लेखकों, नेताओं को सदैव हिन्दू को ही यह बताने की जरूरत क्यों है कि हिन्दू शांतिप्रिय है और शांति से आत्मा की खोज करना ही इसको शोभा देता है! मेरे देखे, यह लेख लिखते समय उनके मस्तिष्क में हिन्दू नहीं, हिंदुत्व था जिसने हिन्दुओं की एक बड़ी आबादी को विगत दो दशकों में हिंसक बनाया है. इस मद्देनजर उन्होंने दो बातों पर जोर दिया, पहला- हिंदू अपने अस्तित्व में समस्त चराचर को करुणा और गरिमा के साथ उदारतापूर्वक आत्मसात करता है, क्योंकि वह जानता है कि जीवनरूपी इस महासागर में हम सब डूब-उतर रहे हैं। निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही उसका धर्म है। ….हिन्दू सभी प्राणियों से प्रेम करता है. वह सभी रास्तों से प्रेम करता है।
दूसरा – जो हिंदुत्व कहता है वह हिन्दू धर्म का अल्प पाठ है. हिन्दू परम्पराओं, सांस्कृतिक मान्यताओं तक सीमित नहीं है. इसे किसी भूभाग में बंधना इसकी अवमानना है. उनका तात्पर्य था कि हिन्दू अपनी परम्पराओं, सांस्कृतिक मान्यताओं को ही धर्म न माने ? इसके लिए लड़ना उचित नहीं, अपनी परम्पराओं के लिए लड़ने वाले अल्प बुद्धि हैं. हिन्दू का उद्देश्य भय से मुक्ति है, आत्मा की खोज है! इन्हीं दो बिन्दुओं पर राहुल गाँधी का यह लेख सिमट गया है और इन दोनों बिन्दुओं को वे ठीक से सामने नहीं रख पाए हैं और फंस गये हैं.
हिन्दू हिंसा में विश्वास नहीं करता और यह इतिहास से समस्त विश्व को ज्ञात है. यह हिन्दू को बताने की आवश्यकता नहीं है. यह बात इब्राहिम से प्रकट हुए इब्राहिमियों को, समस्त पश्चिम जगत को बताने की जरूरत हैं, जिन्होंने हिंसा में पिछले 200 वर्षों में World War I में 40 million, World War II में 70–85 million people , ईसाईयों की Nazi सत्ता ने 40 million, कम्युनिस्टों की Stalin सरकार ने 20 million people, अमेरिका ने भी जोर्ज बुश के समय से अब तक लाखों लोगों को मारा है, इजराइल रोज कुछ न कुछ फिलिस्तीनियों को मारता है, मौका मिलते ही फिलिस्तीनी भी यहूदी मारते हैं. इब्राहीम से प्रकट हुए दोनों ही धर्म विश्व मानवता के लिए अब तक महाविनाशक सिद्ध हुए हैं. मुस्लिम देश हिंसा में ही जीवित हैं, वे अपने मस्जिद पर भी बम फेंकते हैं. उपदेश की जरूरत उनको है जिनके धर्म का आधार सत्य नहीं है, हिंसा है; जो अनेकानेक विधियों से धर्म परिवर्तन करते हैं और जिहाद करते हैं. राहुल गांधी इस उपदेशपरक लेख को समग्रता में लिख सकते थे.
यह कहना भी कि भय के साथ अपने आत्म के सम्बन्ध को समझने की पद्धति हिन्दू धर्म है, इसका एकदम गलत पाठ है. हिन्दू भय के साथ यदि धर्म की खोज करता तो हिन्दू धर्म उत्सवधर्मी नहीं होता, यहाँ कृष्ण नहीं जन्म लेते. हिन्दुओं की हर तिथि और पर्व जीवन का उत्सव ही है. हिन्दू अमरत्व की खोज करता है. ईसाई धर्म, इस्लाम धर्म ये मृत्यु के धर्म हैं; उनका सब कुछ हिंसा, भय और पाप पर आधारित है. हिन्दू धर्म के सभी शास्त्र ‘अथ’ या ॐ से प्रारम्भ होते हैं. ब्रह्म सूत्र की ‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’ या योग का ‘अथ योगानुशासनं’ अथवा भक्ति का ‘अथातो भक्तिं जिज्ञास्याम:” किसी भय से प्रारम्भ नही हुआ. बुद्ध का प्रथम आर्य सत्य “भय” नहीं है, दुःख है. मनुष्य के पास अनेकानेक दुःख हैं, इन दुखों से आत्यंतिक निवृत्ति के लिए ही धर्म के समस्त प्रयोजन हैं. मनुष्य के इन दु:खों को कम करने का प्रयास विज्ञान भी अपने ढंग से करता है. दुनिया में जो बड़े बड़े अविष्कार हुए उनसे मनुष्य के भौतिक दुखों में कमी आई है लेकिन मनुष्य के अन्य दो अधिदैविक और आध्यात्मिक दु:खों की निवृत्ति करने में विज्ञान सक्षम नहीं हुआ. यह एक वजह है कि धर्म घोर भौतिकवादी विकास में भी मनुष्य के मानसिक और आध्यात्मिक सुख का एक मात्र साधन है. पंडित जवाहरलाल नेहरु ने इस बात को अपनी डिस्कवरी ऑफ़ इण्डिया में लिखा है.

