
मछलियों के बारे में एक दिलचस्प और हैरान करने वाला तथ्य यह है कि वे धारा के विपरीत दिशा में तैरती हैं, न कि धारा के साथ. इस घटना को रीओटैक्सिस कहा जाता है, और इसके अनगिनत उदाहरण हैं, सैल्मन से अपने अंडे देने के लिए नदी के ऊपर की ओर पलायन करने से लेकर धारा में बहाव के लिए ट्राउट खोजने तक. फिर भी, एक सदी से अधिक के प्रायोगिक अध्ययनों के बावजूद, रीओटैक्सिस के अंतर्निहित तंत्र को कम समझा गया है. इस बात पर आम सहमति है कि मछलियाँ दृष्टि, वेस्टिबुलर, स्पर्श और अन्य इंद्रियों के लिए पानी और शरीर की गति के संकेतों पर भरोसा करती हैं. मछलियाँ बहाव की दिशा के विपरीत जाती हैं क्योकि उनका विकास की यह एक शर्त है. चन्द्रमा की कलाओं के अनुसार मछलियों का व्यवहार अलग अलग होता है. मछलियाँ मूलभूत रूप से पूर्णिमा के दौरान समुद्र से तट की तरफ आती हैं और अंडे देकर पुन: समुद्र में चली जाती है.
हिन्दू धर्म में मछलियाँ शुभ मानी जाती हैं क्योंकि मछलियों का जोड़ा मीन राशि का प्रतीक हैं. हिन्दू ज्योतिष में मीन राशि मुक्ति का हॉउस है. मछलियों को लक्ष्मी-विष्णु से जोड़ा जाता है इसलिए धन वृद्धि से भी जोड़ा जाता है. वैष्णव धर्म में भगवान विष्णु का मत्स्यअवतार हुआ था इसलिए यह विश्वास है कि इसका धन से सम्बन्ध है और धन की इच्छा करने वालों को मछली को नहीं खाना चाहिए. यदपि की दुनिया के सभी धनी देशों के लोग मछली खाते हैं. जापानी मछली पर ही जिन्दा हैं. मछली लक्ष्मी के चरणों में अंकित रहती है और कामदेव का ध्वज पर भी मछली का चिन्ह बना रहता है इसलिए उन्हें मकरध्वज कहा जाता है.
समंदर लागी आगि, नदियाँ जलि कोइला भई।
देखि कबीरा जागि, मंछी रूषाँ चढ़ि गई।
कबीर ने मछली की उपमा जीवात्मा से दी है. विषया-सक्त अंतःकरण रूपी सागर में ज्ञान-विरह की आग लग गई, फलतः विषय वासनाओं का संवहन करने वाली नदी रूपी इंद्रियाँ जलकर नष्ट हो गईं. कबीर ने जागृत होकर देखा कि जीवात्मा रूपी मछली सहस्रार चक्र के वृक्ष पर चढ़ गई है. विकास की गति भी धारा के विपरीत देखी जाती है. आधुनिकता ऐसी वैचारिक क्रांति थी जो धारा के विपरीत थी. नौ ग्रहों में राहु-केतु का चरित्र भी विपरीत है. दोनों ग्रह धारा के विपरीत चलते हैं और उन विचारधाराओं को बढ़ावा देते हैं जो पारंपरिक नहीं होतीं. राहु के चरित्र और मछलियों के चरित्र में कई प्रकार की समानता है. हिन्दू ज्योतिष में केतु का स्वरूप मत्स्याकार भी दिखाया जाता है क्योकि यह आध्यात्म और अंतर्दृष्टि का ग्रह माना जाता है. केतु की मूलत्रिकोण राशि धनु है इसलिए इसका सम्बन्ध मीन राशि से भी स्वाभाविक रूप से सम्बन्धित हो जाता है. राहु- केतु का विष्णु से सम्बन्ध भी पुष्ट होता है, राहु को गोविन्द वर पात्र कहा गया है. पुराण में विष्णु के नयन का अर कहा गया है. राहु के जो करेक्टर हैं वो पांचरात्री वैष्णवों में भी प्राप्त होते हैं-छद्म आवरण और गुप्त कर्म, धूर्तता,ठगी और छल. यह विष्णु के गुण हैं. मछलियों का चरित्र स्त्रियों से भी मिलता है. स्त्रियाँ भी धारा के विपरीत चलती हैं और नई चीजों के प्रति आकर्षित होती हैं. किसी भी नई बात को स्त्रियाँ जितनी तेजी अपनाती हैं उतना पुरुष नहीं. लक्ष्मी के चरण में मछली अंकित रहती है जिसका अर्थ है कि लक्ष्मी चंचला है और स्वेछाचारिणी है. यह स्त्रियों का भी नैसर्गिक स्वभाव है. स्त्रियों के नैसर्गिक स्वभाव के कारण ही मनुवाद उन्हें कठोर कानून के अंतर्गत रखता है.
इस अर्थ में स्त्रियों के लिए केतु-राहु दोनों ही नैसर्गिक ग्रह हैं. स्त्रियों की वाणी और अंतर्दृष्टि पुरुषों से विकसित होती है. केतु की उच्च राशि वृश्चिक कालपुरुष का अष्टम भाव है जो गुप्त कर्म और गतिविधियों से सम्बन्धित है. इसकी दिशा नैऋत्य है जो मृत्यु से सम्बन्धित है, शास्त्रों में स्त्री को भी पुरुष की मृत्यु कहा गया है. स्त्रियों का चरित्र भी मछली की तरह गुप्त होता है. कालपुरुष का द्वितीय और द्वादश हॉउस उसके नेत्र हैं जिनका सम्बन्ध राहु-केतु से स्थापित होता है. इनकी दृष्टि अधोदृष्टि है और स्त्रियों की दृष्टि भी अधोदृष्टि होती है. वृष नेचुरल zodiac में वाणी का हॉउस है जिसमे राहु उच्च का होता है और धनु केतु की मूलत्रिकोण राशि है जो बृहस्पति की राशि है, बृहस्पति वाणी का कारक माना जाता है इसलिए स्त्री में वाक् प्रारम्भ से विकसित होता है. बचपन में लड़की का वाक् लड़के से पहले प्रस्फुटित होता है. मनुवाद ने स्त्रियों के बोलने पर भांति भांति के प्रतिबन्ध इसीलिए लगा दिए और रामायण इत्यादि द्वारा उन्हें संस्कारित किया गया कि कम बोलना और पुरुष के सामने चुप रहना ही उनके लिए अच्छा है, इसी में उनकी मुक्ति है. यदि स्त्री आगे बढ़ जाती तो पुरुषसत्तात्मक मनु के बलात्कारी समाज क्या होता !