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राहु कुछ स्थितियों में राजयोग कारक होता है यदि यह शुभ ग्रहों से दृष्ट या युत हो. राहु का सामान्यत: तीसरे, छठवे, दसवे और ग्यारहवे भाव में उत्तम फल प्राप्त होता है. लग्न में ज्यादातर विद्वानों का मत है कि राहु जातक को अल्पायु करता है और विनाशक होता है लेकिन कुछ राशियों में राजयोगकारक भी होता है. राहु का लग्न में क्या फल होता है यह संक्षिप्त में दिया जा रहा है, शेष कुंडली के विश्लेषण के बाद ही उसका फल निर्धारित किया जा सकता है.

1-लग्न में राहु हो तो जातक अभिमानी, क्रोधी , चिडचिडा और रोगी होता है. जातक बुरे स्वभाव का , कटु वाणी बोलने वाला , दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुंचाता है. यह मिथ्याभाषी, कुसंग करने वाला, निर्दयी, क्रूर और व्यभिचारी होता है. अक्सर अनैतिक मार्ग से धन का उपार्जन करता है.

2-लग्न में राहु जातक को धुन का पक्का और दृढ निश्चयी बनाता है. यह बातचीत करने में कुशल बनाता है. यह श्रम करने वाला, सतत प्रयत्नशील, घुमने वाला, बातूनी और पाप कर्म करने वाला होता है.

३-कोई जातक आत्मकेन्द्रित, स्वार्थी, झगडालू होते हैं. यह ज्यादातर कुबुद्धि, अलगाववादी, असहयोगी, हठधर्मी, स्वच्छन्द होते हैं. ये दूसरे को अक्सर ठेस पहुंचाते हैं और इनके मित्र कम होते हैं.

4- कुछ राशियों में स्थित राहु अच्छा फल देते हैं और दशा में जातक को धन और यश प्राप्त होता है. यह जातक वेश्यागमन करने वाला और कामी होता है. यह जातक सिर्फ दूसरे में दोष देखता है. सामने कड़वी बात सहन कर लेता है लेकिन उसे मन में रखकर समय पर बदला लेता है. व्यक्ति की शिक्षा अच्छी नहीं होती. केतु शुभ न हो तो स्त्री सुख का अभाव रहता है. स्त्री को पुरुष सुख का अभाव होता है.

5-मेष में राहु जातक को दुर्बल, अकर्मण्य, परिश्रम से जी चुराने वाला, चिडचिड़ा बनाता है लेकिन धन सम्पत्ति प्रदान करता है. वृष, कन्या, मिथुन में राहु अच्छा फल करता है यदि कुंडली में ग्रहों का अच्छा योग हो और लग्नेश शुभ स्थान में हो.

6-यदि लग्न स्वामी दसवे, पंचम, नवम, एकादश में हो तो राहु दशा में जातक की उन्नति होती है और कभी राजयोग भी होता है. हलांकि लग्न स्वामी और लग्नस्थ राहु पर पाप ग्रह का प्रभाव हो तो यह विनाशक हो सकता है.