
पहले भी मैंने श्राद्ध में मांस के प्रयोग का वर्णन किया था. अनेक पुराणों में ऐसा जिक्र आया है. इससे यह स्पष्ट होता है कि मांसाहार हिन्दू धर्म में वैदिक काल से ही होता रहा है. मार्कण्डेयपुराण में विस्तार से वर्णन है कि किस जानवर के मांस से कितने दिन पितर गण तृप्त रहते हैं. उस आर्टिकिल को यहाँ क्लिक करके पढ़ें. यहाँ राजा राम के पितर अर्थात सूर्य वंश के सबसे पहले राजा इक्ष्वाकु के श्राद्ध का वर्णन किया जा रहा है.
इक्ष्वाकु वंश प्राचीन वैदिक भारत के सूर्यवंशी क्षत्रिय शासकों का वंश है. इनकी उत्पत्ति सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु की छींक से उत्पन्न हुए राजा इक्ष्वाकु से हुई थी. ये प्राचीन कोशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी. अयोध्या से ही इस राजवंश के राजाओं ने राम के समय में अपनी सीमा का विस्तार दक्षिण भारत तक किया था. इक्ष्वाकु वंश में ही एक प्रतापी राजा रघु हुए थे जिस कारण इसको रघुवंश कहा जाता है. सभी पुराणों, रामायण और महाभारत में इस वंश के शासकों का उल्लेख मिलता है. इस वंश के प्रतापी राजा श्री राम ने इस वंश में ही जन्म लिया था.
राजा इक्ष्वाकु खरगोश के मांस से श्राद्ध कर रहे थे और महर्षि’ वसिष्ठ श्राद्ध करवा रहे थे. विकुक्षि को श्राद्ध के लिए खरगोश का शिकार करने के लिए भेजा गया. उसने शिकार किया लेकिन उसमे से एक खरगोश को भून कर खा गया. इस कारण उसका नाम शशाद पड़ गया था.
महर्षि पराशर विरचित सबसे प्राचीन पुराणों में एक विष्णु पुराण से यह उद्धरण स्निपेट के साथ दिया जा रहा है-

वाल्मीकि रामायण में सीता भी अयोध्या लौटने पर मांस-मदिरा से गंगा की पूजा की कामना करती है –
सुराघट सहस्रेण मांस भूतोदनेन च। यक्ष्ये त्वाम प्रयता देवि पुरीमपुनरगतां।।
रामायण में अनेक स्थान पर जो जिक्र आये हैं उससे राम-सीता द्वारा मांस खाने और मदिरापान करने की पुष्टि होती है.