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वर्णाश्रम धर्म व्यवस्था सनातन हिन्दू धर्म के केंद्र में स्थित है. जाति व्यवस्था सनातन है. ऋग्वेद से भगवद्गीता और रामायण तक इसका एकसम वर्णन मिलता है. भगवद्गीता बहुत उदात्त दार्शनिक ग्रन्थ है जिसमे श्री कृष्ण द्वारा इसका उपदेश किया गया है –
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।4.13।।
गुण और कर्मों के विभाग से चातुर्वण्य मेरे द्वारा रचा गया है। यद्यपि मैं उसका कर्ता हूँ, तथापि तुम मुझे अकर्ता और अविनाशी जानो।।
रामायण और भागवत आदि पुराणों में भी इसकी ही स्थापना की गई है. इसका स्वरूप क्या है? जाति और वर्ण क्या है? इसका शास्त्रीय स्वरूप क्या है? इसपर News18 के पत्रकार ने पुर्वाम्नाय गोवर्धन मठ के 45वें शंकराचार्य  जगद्गुरु निश्चलानंद सरस्वती जी से विस्तृत बातचीत की है.

यह gargastro.com का मत नहीं है, यह मनु द्वारा स्थापित वैदिक धर्म का मत है.