पुराणवादी प्रेमानंद ने ज्योतिष पर अपने विचार रखे जो काफी अंतर्विरोधी है. ज्योतिष के कारण ही इनकी राधा की अष्टमी मनाई जाती है जिनका कोई जिक्र पुराणों में सबसे उत्कृष्ट भागवत पुराण में नहीं है. ज्योतिष पर ही पुराण के सभी व्रतादि आधारित हैं. पुराणवादियों का कोई कर्म बिना ज्योतिष के नहीं हो सकता है. एकादशी ही ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार होती है, अन्यथा पुराण के अतिरिक्त किस श्रुति में लिखा है कि एकादशी से विष्णु प्रसन्न होते हैं और त्रयोदशी व्रत से नहीं होते? ज्योतिष के बगैर तो मुक्ति भी नहीं हो सकती, भगवद्गीता में उत्तरायण में शुक्ल पक्ष में ही मुक्ति कही गई है. ज्योतिष पूर्व जन्म के कर्मों को बता सकता है लेकिन क्या कोई बाबा बता सकता हैं? नहीं बता सकता है. कोई त्रिकालदर्शी महात्मा ही पूर्व जन्म के कर्मों को बता सकता है. ज्योतिष अशुभ को रोकने का प्रयास करता है और यह वैदिक काल से ऋषि महर्षि करते आ रहे हैं. कर्म प्रवाह जो गुणात्मक है, यदि नहीं रोका जा सकता है तो मुक्ति भी सम्भव नहीं है. साधनाओं द्वारा इससे परे जाया जा सकता है, कर्म के संस्कारो को भस्म किया जा सकता है. पतंजली योग सूत्र में भी यही कहा गया है.
“नाभुक्तं क्षीयते कर्म, कल्पकोटिशतैरपि” के साथ यह भी है “यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते।” जिस तरह किसी स्त्री के प्रति वासनात्मक बुद्धि आने पर जब उसका विपरीत माता के रूप में चिन्तन करते हैं तो वासनात्मक बुद्धि का नाश हो जाता है, उसी प्रकार कर्मों के बीज हैं. अनुष्ठान इत्यादि से उसका नाश होना शास्त्रों में कहा गया है. परन्तु सभी कर्मों का नाश सदैव ईशसिद्धि से ही होता है अर्थात जब ईश्वर ज्ञान प्रदान करते हैं तब सभी कर्म भस्मीभूत हो जाते हैं. ईश्वर की उपासना भी अनुष्ठान ही है, वह भी कर्म ही है. यह सत्व में स्थित होने से उर्ध्वगामी है और नीचे गिराने वाले कर्मो से मनुष्य की रक्षा करती है.
यदि अनुष्ठान द्वारा श्री राम पैदा हो सकते हैं तो कर्मों का नाश क्यों नहीं हो सकता?

