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प्रेमानंद महाराज इधर काफी प्रपंच करके प्रसिद्ध हो गये. लगभग आधी जिन्दगी उन्होंने दशनामी सम्प्रदाय के सन्यासी बन गुजरा और जब सन्यास धर्म के कठिन परमहंसों के मार्ग पर असफल हो गये तो प्रपंच करने लगे. प्रपंच के लिए इन्होने एक गृहस्थ को गुरु बना लिया और आधीरात के बाद वृन्दावन के चक्कर काटने लगे. जिस काल में ऋषि मुनि ध्यान करते है उस काल में निशाचर की तरह ये प्रपंच करने लगे. यह उस राधा बल्लभी सम्प्रदाय में दीक्षित हो गये जो छद्म रूप से तंत्र की प्रेक्टिस करता है और राधा की पूजा करता है. वैष्णव सम्प्रदाय से हट कर ये शाक्त बन गये. स्त्री देवता की पूजा करने वाला ही शाक्त कहा जाता है. लेकिन राधा भक्ति से इन्हें भक्ति योग भी नहीं हुआ और राधा रूप में स्थित स्त्रियों को दुराचारी कहने लगे.
“या देवी सर्वभूतेषु मातृ रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:” यह संकल्प है जो सभी शाक्त लेते हैं और सपने में भी स्त्री का अपमान नहीं करते हैं.

प्रेमानंद का कहना है कि भारत 65 करोड़ महिलाओं में सिर्फ 2.5 करोड़ महिलाएं ही पवित्र हैं. 100 में सिर्फ 4 ही पवित्र हैं, बाकि सब एडल्ट्री करने वाली दुराचारी है. ऐसे में प्रेमानंद को भागवत पढना चाहिए जहाँ सभी गोपियां दुराचारी ही हैं जो गैर पुरुष से रासरचाने गई थीं और कृष्ण ने उन्हें आगाह किया था कि यह लोक में निंदनीय है.
अस्वर्ग्यमयशस्यं च फल्गु कृच्छ्रं भयावहम् ।
जुगुप्सितं च सर्वत्र ह्यौपपत्यं कुलस्त्रिय: ॥


सुनिए इनके ही शब्द –