सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का एकादशी की तरह ही महत्व है. प्रदोष व्रत भगवान शिव को अतिप्रिय है. प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करनेवाला होता है. माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है. इस समय भगवान शिव कैलाश में रजत भवन में नृत्य करते हैं. प्रदोष काल में महादेव की पूजा-अर्चना संध्याकाल में करने का विधान है. इस बार पौष माह के शुक्ल पक्ष में प्रदोष व्रत 23 जनवरी को है. मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा करने से भगवान भोलेनाथ की कृपा प्राप्त होती है. प्रदोष व्रत करने से दो गायों को दान करने के समान पुण्य मिलता है और भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस व्रत से सभी सुखो की प्रति और शांति मिलती है.
स्कंदपुराण के अनुसार
त्रयोदश्यां तिथौ सायं प्रदोषः परिकीर्त्तितः । तत्र पूज्यो महादेवो नान्यो देवः फलार्थिभिः ।।
प्रदोषपूजामाहात्म्यं को नु वर्णयितुं क्षमः । यत्र सर्वेऽपि विबुधास्तिष्ठंति गिरिशांतिके ।।
प्रदोषसमये देवः कैलासे रजतालये । करोति नृत्यं विबुधैरभिष्टुतगुणोदयः ।।
अतः पूजा जपो होमस्तत्कथास्तद्गुणस्तवः । कर्त्तव्यो नियतं मर्त्यैश्चतुर्वर्गफला र्थिभिः ।।
दारिद्यतिमिरांधानां मर्त्यानां भवभीरुणाम् । भवसागरमग्नानां प्लवोऽयं पारदर्शनः ।।
दुःखशोकभयार्त्तानां क्लेशनिर्वाणमिच्छताम् । प्रदोषे पार्वतीशस्य पूजनं मंगलायनम् ।।
-त्रयोदशी तिथि में सायंकाल को प्रदोष कहा गया है. प्रदोष के समय महादेवजी कैलाशपर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं. अतः धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की इच्छा रखने वाले पुरुषों को प्रदोष में नियमपूर्वक भगवान शिव की पूजा, होम, कथा और गुणगान करने चाहिए. दरिद्रता के तिमिर से अंधे और भक्तसागर में डूबे हुए संसार भय से भीरु मनुष्यों के लिए यह प्रदोषव्रत पार लगाने वाली नौका है. शिव-पार्वती की पूजा करने से मनुष्य दरिद्रता, मृत्यु-दुःख और पर्वत के समान भारी ऋण-भार को शीघ्र ही दूर करके सम्पत्तियों से पूजित होता है.”
प्रदोष व्रत मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार, पौष माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 22 जनवरी 2024 को रात 7 बजकर 51 मिनट पर होगा और अगले दिन यानी 23 जनवरी 2024 को रात 8 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगा। इसलिए उदयातिथि के अनुसार, इस साल 23 जनवरी 2024 को प्रदोष रखा जाएगा।
प्रदोष व्रत विधि :
- दोनों पक्षों की प्रदोषकालीन त्रयोदशी को मनुष्य निराहार रहे. निर्जल तथा निराहार व्रत सर्वोत्तम है परंतु अगर यह संभव न हो तो नक्तव्रत करे. पूरे दिन सामर्थ्यानुसार या तो कुछ न खाये या फल ले. अन्न पूरे दिन नहीं खाना चाहिए. सूर्यास्त के कम से कम 72 मिनट बाद हविष्यान्न ग्रहण कर सकते हैं.
- व्रत में अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, दया, क्षमा इत्यादि का पालन करें. निंदा और इर्ष्या न करें
- जितना संभव हो सके मौन धारण करें.
- स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करें.
- प्रदोषकाल में पूजा करें.
- शिव पार्वती युगल दम्पति का ध्यान करके उनकी मानसिक पूजा करे.
- पूजा के आरम्भ में एकाग्रचित्त हो संकल्प पढ़े तदनन्तर हाथ जोड़कर मन-ही-मन उनका आह्वान करे.
- पंचब्रह्म मंत्र का पाठ करें
- रुद्रसूक्त का पाठ करें
- पंचामृत से अभिषेक करें.
- षोडशोपचार पूजा करें
- भगवान शिव को को साष्टांग प्रणाम करें
- इसके पश्चात् गिरिजापति की प्रार्थना करें
- प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को हलवा का भोग लगाएं. ऐसा माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ को हलवे का भोग लगाने से साधक की मनचाही इच्छा पूरी होती है. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को खीर का भोग लगाएं.
शिव स्तुति –
जय देव जगन्नाथ, जय शंकर शाश्वत।
जय सर्व-सुराध्यक्ष, जय सर्व-सुरार्चित ।।
जय सर्व-गुणातीत, जय सर्व-वर-प्रद !
जय नित्य-निराधार, जय विश्वम्भराव्यय ।।
जय विश्वैक-वेद्येश, जय नागेन्द्र-भूषण !
जय गौरी-पते शम्भो, जय चन्द्रार्ध-शेखर ।।
जय कोट्यर्क-संकाश, जयानन्त-गुणाश्रय !
जय रुद्र-विरुपाक्ष, जय चिन्त्य-निरञ्जन ।।
जय नाथ कृपा-सिन्धो, जय भक्तार्त्ति-भञ्जन !
जय दुस्तर-संसार-सागरोत्तारण-प्रभो ।।
प्रसीद मे महा-भाग, संसारार्त्तस्य खिद्यतः।
सर्व-पाप-भयं हृत्वा, रक्ष मां परमेश्वर ।।
महा-दारिद्रय-मग्नस्य, महा-पाप-हृतस्य च।
महा-शोक-विनष्टस्य, महा-रोगातुरस्य च।।
ऋणभार-परीत्तस्य, दह्यमानस्य कर्मभिः।
ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य, प्रसीद मम शंकर ।।
फल-श्रुतिः
दारिद्रयः प्रार्थयेदेवं, पूजान्ते गिरिजा-पतिम्।
अर्थाढ्यो वापि राजा वा, प्रार्थयेद् देवमीश्वरम्।।
दीर्घमायुः सदाऽऽरोग्यं, कोष-वृद्धिर्बलोन्नतिः।
ममास्तु नित्यमानन्दः, प्रसादात् तव शंकर ।।
शत्रवः संक्षयं यान्तु, प्रसीदन्तु मम गुहाः।
नश्यन्तु दस्यवः राष्ट्रे, जनाः सन्तुं निरापदाः।।
प्रदोषकाल में घी के दीपक जलायें। कम से कम एक अथवा 32 अथवा 100 अथवा 1000
स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषस्तोत्राष्टकम का पाठ करें-
सत्यं ब्रवीमि परलोकहितं ब्रव्रीम सारं ब्रवीम्युपनिषद्धृदयं ब्रमीमि।
संसारमुल्बणमसारमवाप्य जन्तोः सारोऽयमीश्वरपदाम्बुरुहस्य सेवा ॥
ये नार्चयन्ति गिरिशं समये प्रदोषे, ये नाचितं शिवमपि प्रणमन्ति चान्ये।
एतत्कथां श्रुतिपुटैर्न पिबन्ति मूढास्ते, जन्मजन्मसु भवन्ति नरा दरिद्राः॥
ये वै प्रदोषसमये परमेश्वरस्य, कुर्वन्त्यनन्यमनसांऽघ्रिसरोजपूजाम् ।
नित्यं प्रवृद्धधनधान्यकलत्रपुत्र सौभाग्यसम्पदधिकास्त इहैव लोके ॥
कैलासशैवभुवने त्रिजगज्जनिनित्रीं गौरीं निवेश्य कनकाचितरत्नपीठे ।
नृत्यं विधातुमभिवांछति शूलपाणौ देवाः प्रदोषसमये नु भजन्ति सर्वे॥
वाग्देवी धृतवल्लकी शतमखो वेणुं दधत्पद्मजस्तालोन्निद्रकरो रमा भगवती गेयप्रयोगान्विता ।
विष्णुः सान्द्रमृदंङवादनपयुर्देवाः समन्तात्स्थिताः, सेवन्ते तमनु प्रदोषसमये देवं मृडानीपातम् ॥
गन्धर्वयक्षपतगोरग-सिद्ध-साध्व-विद्याधराम रवराप्सरसां गणश्च ।
येऽन्ये त्रिलोकनिकलयाः सहभूतवर्गाः प्राप्ते प्रदोष समये हरपार्श्र्वसंस्थाः ॥
अतः प्रदोषे शिव एक एव पूज्योऽथ नान्ये हरिपद्मजाद्याः ।
तस्मिन्महेशे विधिनेज्यमाने सर्वे प्रसीदन्ति सुराधिनाथाः ॥
एष ते तनयः पूर्वजन्मनि ब्राह्मणोत्तमः ।
प्रतिग्रहैर्वयो निन्ये न दानाद्यैः सुकर्मभिः ॥
अतो दारिद्र्यमापन्नः पुत्रस्ते द्विजभामिनि ।
तद्दोषपरिहारार्थं शरणां यातु शंकरम् ॥
स्कन्दपुराण में वर्णित शिवजी के निम्न 108 नाम का जप करें–
नमो रुद्राय नीलाय भीमाय परमात्मने । कपर्दी सुरेशाय व्योमकेशाय वै नमः ।।
वृषभद्वजाय सोमाय सोमनाथाय शम्भवे ।
दिगम्बराय भर्गाय उमाकान्ताय वै नमः ।।
तपोमयाय भव्याय शिवश्रेष्ठाय विष्णवे ।
व्यालप्रियाय व्यालाय व्यलानाम पतये नमः ।।
महीधराय व्याघ्राय पशुनाम पतये नमः ।
पुरान्तकाय सिंहाय शार्दुलाय मखाय च ।।
मीनाय मीननाथाय सिद्धाये परमेष्ठिने ।
कामान्ताकाय बुद्धाय बुद्धिनाम पतये नमः ।।
कपोताय विशिष्टाय शिष्टाय सकलात्मने ।
वेदाय वेद्जीवाय वेद्गुह्याय वै नमः ।।
दीर्घाय दीर्घ रूपाय दीर्घार्थयाविनाशिने ।
नमो जगत्प्रतिष्ठाय व्योमरूपाय वै नमः ।।
गजासुर महाकालायन्धकासुरभेदिने ।
नीललोहित शुक्लाय चंड मुण्ड प्रियाय च ।।
भक्तिप्रियाय देवाय ज्ञात्रे ज्ञानव्याय च ।
महेशाय नमस्तुभ्यं महादेव हराय च ।।
त्रिनेत्राय त्रिवेदाय वेदान्गाय नमो नमः ।
अर्थाय चार्थरूपाय परमार्थाय वै नमः ।।
विश्वभूपाय विश्वाय विश्वनाथाय वै नमः ।
शंकराय च कालाय कालावयवरूपणे ।।
अरुपाय विरूपाय सूक्ष्मसूक्ष्माय वै नमः ।
शम्शानवासिने भूयो नमस्ते क्रत्तिवासिसे ।।
शशांक शेखराये शायोग्रभूमिशयाय च ।
दुर्गायाय दुर्गपाराय दुर्गावयवसाक्षिणे ।।
लिंगरूपाय लिंगाय लिगानाम पतये नमः ।
नमः प्रलयरूपाय प्रणवार्थय वै नमः ।।
नमो नमः कारणकारणाय मृत्युन्जयायात्मभवस्वरूपणे ।
श्री त्र्यम्बकायासितकंठशर्व गौरीपते सकलमंगाल्हेतवे नमः ।।
वार के अनुसार यह व्रत विशेष फलदायी कहा गया है :
रवि प्रदोष – आरोग्य प्राप्ति और आयु वृद्धि
सोम प्रदोष – मन: शान्ति और सुरक्षा, सकल मनोरथ सफल
भौम प्रदोष – ऋण मोचन
बुद्ध प्रदोष – सर्व मनोकामना पूर्ण
गुरु प्रदोष – शत्रु विनाशक, पित्र तृप्ति, भक्ति वृद्धि
शुक्र प्रदोष – अभीष्ट सिद्धि, चारो पदार्थो (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) प्राप्ति
शनि प्रदोष – संतान प्राप्ति

