
हिंदू पंचांग के अनुसार, सफला एकादशी व्रत पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. जैसा कि नाम ही स्पष्ट है कि सफला यानी सफलता देने वाली एकादशी. सफला एकादशी व्रत करने से कार्यों में उन्नति व सफलता मिलती है. पुराणों के अनुसार, जो व्यक्ति एकादशी व्रत विधि-विधान के साथ करता है उसे लंबी आयु की प्राप्ति होती है. सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक को अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है. पद्मपुराण में पौषमास के कृष्णपक्ष की एकादशी के बारे में श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया है कि बोले-बडे-बडे यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है. इसलिए यह एकादशी-व्रत अवश्य करना चाहिए. सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं. मान्यता है कि एकादशी व्रत से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं. सफला एकादशी के दिन श्रीहरिके विभिन्न नाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए फलों के द्वारा उनका पूजन करना चाहिए. धूप-दीप से देवदेवेश्वरश्रीहरिकी अर्चना करें, सफला एकादशी के दिन दीप-दान जरूर करें. रात को वैष्णवों के साथ नाम-संकीर्तन करते हुए जगना चाहिए. सफला एकादशी को ब्राह्मण को फल दान करना बहुत ही फलदायक होता है. कहा गया है कि इस एकादशी का रात्रि में जागरण करने से जो फल प्राप्त होता है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने पर भी नहीं मिलता. पंचांग के अनुसार,26 दिसंबर को सफला एकादशी व्रत रखा जाएगा.
मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 25 दिसंबर को रात 10 बजकर 29 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 26 दिसंबर को रात 12 बजकर 43 मिनट पर होगा. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार इस साल की आखिरी एकादशी यानि सफला एकादशी का व्रत 26 दिसंबर 2024 को रखा जाएगा.
सफला एकादशी की कथा –
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि हे राजन! प्राचीन समय की बात है. चंपावती नगर में महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था. उसके चार बेटे थे, इसमें से लुम्पक नाम का बेटा अनाचारी था. वह बुरे कर्म में लगा रहता था और पिता का धन नष्ट करता था. इससे तंग आकर राजा ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया. राज्य से निकाले जाने से उसने वन में एक पीपल के पेड़ के नीचे आश्रय लिया, दिन में वह वन में रहता और रात में पिता के राज्य में रहकर चोरी करता और प्रजा को तंग करता. इससे नगर के लोग भयभीत रहते थे. धीरे-धीरे वह पशु मारकर खाने लगा, राज्य कर्मचारी उसे पकड़ भी लेते तो छोड़ देते। लेकिन कुछ समय बाद पौष का महीना आया, तब तक उसके वस्त्र फट गए थे. इसके कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन सर्दी के कारण वह रात में सो नहीं सका, उसके हाथ पैर भी अकड़ गए थे.
सुबह होते-होते वह बेहोश हो गया. एकादशी के दिन दोपहर बाद सूर्य की गर्मी से उसको होश आया. लेकिन वह निशक्त था, किसी तरह वह भोजन की तलाश में निकला. आज वह पशुओं को मारने में समर्थ नहीं था, इसलिए वृक्षों के नीचे फल चुनकर पीपल के पेड़ के नीचे लौट आया. इस वक्त तक सूर्यास्त हो चुका था. इससे भोजन के प्रति उसका लगाव भी खत्म हो चुका था. इस पर उसने सारे फल वृक्ष के नीचे रखकर कहा कि हे भगवन! अब आपके ही अर्पण हैं ये फल, आपही तृप्त हो जाइये. इसके बाद उसने सोने की कोशिश की, लेकिन रात को नींद नहीं आई. लुंपक के इस उपवास और जागरण से भगवान प्रसन्न हो गए और उसके सारे पाप नष्ट हो गए. एक सुंदर घोड़ा आकर्षक वस्तुओं से सजा हुआ उसके पास आया और आकाशवाणी हुई कि हे लुंपक, श्रीनारायण की कृपा से तेरे सारे पाप नष्ट हो गए हैं. अपने पिता के पास जा और राज्य प्राप्त कर. इस पर लुंपक भगवान की जय बोलता हुआ अपने राज्य लौट गया. पिता ने उसे राज्य सौंप दिया. वृद्ध होने पर वह पुत्र को राज्य सौंपकर तपस्या करने चला गया. इससे उसे बैकुंठ प्राप्त हुआ.
इस सफला एकादशी व्रत के समान कोई दूसरा व्रत नहीं है. पांच हजार साल तप से जो फल मिलता है, उससे अधिक पुण्य फल सफला एकादशी से मिलता है.