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सभी पुराणों में एक कथा है कि किसी समय में अगस्त्य ऋषि के खिलाफ वैदिक ब्राह्मणों ने गो हत्या का षडयंत्र किया था. गोहत्या का षड्यंत्र ब्राह्मण प्राचीन काल से करते रहे हैं. महर्षि ने जब दिव्य दृष्टि से दारु वन में तपस्या करने वाले वेदपाठी ब्राह्मणों के षड्यंत्र को जाना तो वे बड़े क्रोधित हुए. क्रोधित महर्षि अगस्त्य ने वैदिक तपस्वी ब्राह्मणों को शाप दे दिया कि तुम वेद वहिष्कृत हो जाओगे और पाप करोगे तथा जन्म मरण के चक्र में नर्क में गिरते रहोगे.

उस समय अगस्त्य ऋषि के श्राप से भयभीत वैदिक ब्राह्मणों ने शिव का आह्वान किया और पाप से रक्षा की याचना की थी. शिव जी ने उन वैदिक ब्राह्मणों से कहा कि अब तो अगस्त्य जी के श्राप से तुम वेद वाह्य हो चुके हो, इसे कोई निरस्त नहीं कर सकता है, लेकिन तुम्हारी प्रार्थना से प्रसन्न होकर हम तुम्हे मुक्ति के लिए उपदेश करेंगे जिससे क्रम से तुम लोग अनेक कल्पों के बाद पाप मुक्त होकर फिर से वेद भगवान द्वारा अंगीकार किए जाओगे.

शिव जी ने अपने विभिन्न अंशो से अवतार ग्रहण करके उन अवतारों द्वारा पुराण, भैरव, कपालिक, पांचरात्र , नाकुल, तंत्रादि के अनेक संप्रदाय का उपदेश दिया. उन्ही से ये कापिलिक या लिंगवादी शैव या पुराण आदि और भागवती पांचरात्र वाले वैष्णव उत्पन्न हुए. अधिकतर वैष्णव सम्प्रदाय वेद वाह्य हैं और पाप तथा अधर्म का ही विस्तार करते हैं. आदि शंकराचार्य ने भी इन पाखंडियों को वेद वाह्य बताया है.