
हनुमान जी वैष्णव हैं और उनकी मूलभूत रूप से उपासना सात्विक ही होती है. हनुमान जी रामायणी सम्प्रदाय के प्रमुख देवता हैं और राम परिवार के अभिन्न अंग हैं. लेकिन हजारों वर्षों में हनुमान जी के साधकों ने हनुमान से सम्बन्धित तंत्र को भी जन्म दिया जिसमे सात्विक और तामसिक दोनों ही प्रकार की उपासनाएं हैं . पंचमुखी हनुमान की उपासना वैष्णव विधि से कम ही होती है, यह मूलभूत रूप से तांत्रिक देवता हैं और इनकी ज्यादातर राजसिक या तामसिक उपासना ही होती है. पंचमुखी हनुमान की पूजा गृहस्थ घर में नहीं कर सकता है क्योंकि पंचमुखी हनुमान घोर तांत्रिक देवता हैं .
श्री कृष्ण ने भी हनुमत की साधना की थी ऐसा प्रमाण महाभारत में मिलता है. रामायणी सम्प्रदाय में हनुमान जी चिरंजीवी माने जाते हैं और बहुत सारे साधकों को इसका अनुभव होता है. यह सदैव ध्यान में रखना चाहिए कि देवता भावनागम्य होते हैं. मनुष्य अपनी भावना के द्वारा अर्थात संकल्प-विकल्पात्मक मन द्वारा विचार मात्र को साकार रूप दे सकता है. तुलसीदास जी ने हनुमान को अपना गुरु बना कर सारी साधनाएं की थीं और उन्हें हनुमान जी द्वारा मार्गदर्शन मिलता था. उन्होंने शास्त्रीय बात ही लिखा “जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तीन तैसी” स्पष्ट है, देवता सदैव भावना के अनुकूल ही प्रकट होता है. वह छवि सिर्फ तुम्हारी है, उस रूप में तुमने दर्शन किये हैं. लेकिन देवता का सिर्फ वही रूप नहीं है, वह अनंत नाम-रूप वाला है जैसा उपनिषद कहती हैं “रूपं रूपं प्रतिरूपो बभूव”.
इसप्रकार हनुमान जी की उपासना भी भावनानुकूल अनेक प्रकार की है. हनुमान जी का घोर तन्त्र भी है जिसमें मांस-मदिरा का भी प्रयोग करते हैं. बन्दर जाति सिर्फ शाकाहारी नहीं होती, बंदरों को शिकार करते और मांस भक्षण करते हुए भी देखा जाता है. यही बात पंचमुखी हनुमान की साधना में सामने रखी गई है. मनुष्य को अपनी प्रवृत्ति के अनुसार देवता को चुनना चाहिए और उसका पूजन करना चाहिए. यही शास्त्रसम्मत बात है. भेड़चाल का हिस्सा नहीं बनना चाहिए कि फलां बाबा प्रसिद्ध हो गया या कर दिया गया, सब वहां कुछ लूटने जा रहे, चलो हम भी वहां चलें. ऐसे बाबाओं के यहाँ कुछ मिलेगा नहीं बल्कि कुछ देना ही पड़ेगा, क्योंकि उनको प्रसिद्ध कर जेब काटने का ही प्रयोजन है. उदाहरण के लिए बागेश्वर धाम वाले ने 50 हजार के श्रीयंत्र बेच दिए. यदि कोई बाबा सबको एक ही चीज बाँट रहा हो तो समझ लेना कि वह एक धूर्त है. शास्त्र में आचार्य को भैषज कहा गया है अर्थात वह सबको एक ही दवा नहीं देता, जिसका जैसा रोग वैसी दवा देता है .
अपने स्वभाव के अनुसार देवता की उपासना करनी चाहिए क्योंकि इसी की प्रधानता है. फ़िलहाल यहाँ एक छोटा प्रयोग बताया जा रहा है-
यह मन्त्र सिद्ध है – ॐ हरिमर्कट मर्कटाय स्वाहा
पहला प्रयोग- इस मन्त्र का फल प्राप्त करने के लिए आम के पत्तों पर गुलाल बिछा कर अनार की कलम से इस मन्त्र को 1 लाख बार लिखें. संकल्प पूर्वक करने से मंत्री पद की प्राप्ति, राजनीतिक उत्थान, या कोई बड़े पद की प्राप्ति हो जाती है.
दूसरा प्रयोग – पंचमुखी हनुमान मन्दिर में पूजन पूर्वक सहस्रधारा अभिषेक का आयोजन कराएँ. सहस्रधारा के लिए कलश में 1000 छेद करवा कर आसानी से कर सकते हैं अथवा पांच छेद का कलश से भी कर सकते हैं. हनुमान जी का अभिषेक होता रहे और “ॐ हरिमर्कट मर्कटाय स्वाहा” मन्त्र का सवा लाख जप पूर्ण करें. इस प्रकार करने से राज्य की प्राप्ति होती है. इस अनुष्ठान से कोई भी पद की प्राप्ति कर सकते हैं. शुभ वार में, तिथि में, शुभ योग में संकल्प पूर्वक यह अनुष्ठान करना चाहिए.
ये दोनों अनुष्ठान ही अनेक महात्माओं द्वारा अनुभूत है. इसमें संदेह की कोई गुंजाईश नहीं है.