भगवान शिव अपने पंचानन रूप में पंच तत्वात्मक हैं। पृथ्वी , जल , वायु , अग्नि और आकाश इन पांच तत्वों का उनका स्वरूप कहा गया है। इन मुखों के वर्ण पांच तत्वों के जो वर्ण शास्त्रों में बताये गये हैं वैसे ही हैं। पंचानन शिव के चार मुख चार वेद या वैदिक ज्ञान विज्ञानं अर्थात निगम का स्वरूप हैं जबकि पांचवा मुख तंत्र और आगम का स्वरूप है। परम्परा में थोड़े अंतर के साथ इनके स्वरूप का वर्णन किया गया है।
१-पंचानन शिव का पश्चिम दिशा में जो मुख है वो सद्योजात शिव का स्वरूप है। सद्योजात शिव पृथ्वी तत्व, पश्चिम दिशा और ऋग्वेद स्वरूप है | शिव के इसी मुख से लैकिक ज्ञान विज्ञानं का प्रसार जगत में हुआ। इसे पश्चिम्नाय कहा गया है।
मन्त्र: सद्योजातं प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः। भवे भवे नाति भवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः॥
२-पंचानन शिव का जो उत्तर दिशा में मुख है वो वामदेव शिव का स्वरूप है। जल तत्व है , उत्तर दिशा है और यजुर्वेद स्वरूप है। भगवान शिव के इसी मुख से वैदिक यज्ञ के ज्ञान विज्ञानं का जगत में प्रसार हुआ था। इसे उत्तराम्नाय कहते हैं।
मन्त्र : वामदेवायनमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नमः। कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथनाय नमः। सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः॥
३- पंचानन शिव का जो दक्षिण मुख है वो अघोर शिव का स्वरूप है। अग्नि तत्व है , दक्षिण दिशा है और सामवेद स्वरूप है। भगवान के इस दक्षिणाम्म्नाय मुख से ही संसार में प्राणियों के कल्याण के लिए अध्यात्मिक ज्ञान विज्ञान का प्रसार हुआ।
मन्त्र : अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो अघोरघोरेतरेभ्यः। सर्वेभ्यो सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्र रूपेभ्यः॥
४- पंचानन शिव का पूर्वी मुख तत्पुरुष शिव का स्वरूप है। तत्व वायु है , दिशा पूर्व है और वेद अथर्ववेद है। भगवान के इसी मुख से अतिमार्ग का प्रचार हुआ। इसे पूर्वाम्नाय कहते हैं।
मन्त्र: तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

५- पंचानन शिव का उर्ध्व मुख परा विद्या को प्रकट करता है। यह मुख चारो वेदों का अतिक्रमण करके स्थित है। तत्व आकाश है , दिशा उर्ध्व है और शास्त्र तंत्रागम है | भगवान के इसी मुख से तंत्रों और मन्त्रों का प्रकटन हुआ। इसे उर्ध्वंनाय कहते हैं।
मन्त्र : ईशान सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रह्मादिपति ब्रह्मणोऽधिपतिर्। ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम्॥
इन्ही पांच मुख को क्रम से ब्रह्मा , विष्णु , रूद्र , ईश्वर और सदाशिव कहा गया है।
चतुराम्नायशिव के स्वरूप का वर्णन महिम्न स्तोत्र में इस प्रकार से किया गया है –
बहुलरजसे विश्वोत्पत्तौ भवाय नमो नम:
प्रबलतमसे तत्संहारे हराय नमो नम: ।
जनसुखकृते सत्त्वोद्रिक्तौ मृडाय नमो नम:
प्रमहसि पदे निस्त्रैगुण्ये शिवाय नमो नम: ॥
हम किसी अन्य लेख में इसकी विशेष चर्चा करेंगे ..

