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शास्त्रों में ग्रह की परिभाषा दी गई है और कहा गया है जो कुछ ग्रसित करता है, ग्रहण लगाता है वह ग्रह है “गृह्णाति इति ग्रहः ।” ऐसे में ग्रसित करने वाले ग्रहों की संख्या अनेक हैं जिनमे कुछ 9 ग्रह प्रत्यक्ष दिखते हैं लेकिन सैकड़ों ग्रह अप्रत्यक्ष ग्रह हैं. मसलन दैव, राक्षस, यक्ष इत्यादि ग्रह अप्रत्यक्ष होते हैं जो जातकों को पीड़ित करते हैं. भारतीय आयुर्वेद में भी इनका विचार किया गया है. यहाँ कुछ ग्रहों का वर्णन किया जाता है जो बच्चों या शिशुओं को ग्रसित करते हैं-

घरों में बच्चों का पालन-पोषण करने वाली धाय तथा माता के दुष्टाचरणों से अर्थात शरीर और मानसिक पवित्रता पर ध्यान नहीं देती, बच्चों को साफ़ सुथरा नहीं रखतीं, दुग्धपान कराते समय स्तन नहीं धुलती या पानी से नहीं पोंछती तथा जिस घर में स्वस्तिवचन, शान्ति पाठ, आयुष्यमन्त्र जप, आदि कर्म नहीं होते, जहाँ बच्चों को प्रताणित किया जाता है, प्यार नहीं किया जाता, जिनके कुल में देवी देवता, पितर, कुलदेवता की पूजा नहीं होती, माता-पिता, पितामह इत्यादि की सेवा नहीं होती, जहाँ वेदपाठी विप्र, ब्राह्मण, साधु की सेवा नहीं होती बल्कि अपमान होता है, जो मनुष्य वेदविरोधी अमर्यादित आचरण करते हैं, जिनके घर में बलिवैश्वे देव आदि कर्म नहीं होते, जिनके परिवार में भूखे, भिक्षुक, रोगी, अंधे, पंगु, विकलांग, आदि को अन्नदान नहीं दिया जाता, जिन घरों में फूटे कांसे के बर्तन , टूटी खाट रहती है. ऐसे घरों में बच्चों को ग्रह, बाल ग्रह, भूत-प्रेत पिशाचादि कष्ट देते हैं और उचित व्यवस्था न होने पर उनके प्राण भी ले लेते हैं.

इनमें बच्चों को ये 9 प्रकार के बाल ग्रह पीड़ित करते हैं –

1-स्कन्द ग्रह – स्कन्द ग्रह से पीड़ित शिशु की ऑंखें सूजी हुई रहती हैं. उसके शरीर से रक्त के समान गंध आती है. उसका मुख टेढ़ा हो जाता है. वह दूध नहीं पीता और उसकी एक पलक चलती रहती है. वह जोर से मुट्ठी बांधे रहता है. वह चिडचिडाता है तथा उसका मल गाढा होता है.

2-स्कन्दापस्मार – इस ग्रह से पीड़ित शिशु बेहोश हो जाता है फिर थोड़ी देर में होश भी आ जाता है. फिर बालक मीठी आवाज में रोते हुए हाथ पैर नचाने लगता है. जम्भाई लेते समय उसके मुख से झाग निकलता है और वह अपान वायु के साथ मल-मूत्र का त्याग करता है.

3- शकुनि ग्रह – जो बच्चे शकुनि ग्रह से पीड़ित होते हैं उनके अंग शिथिल हो जाते हैं. उनके चेहरे पर भय तथा घबराहट होती है. उसके शरीर मांसाहारी पक्षियों चील, कौआ. गीध इत्यादि की दुर्गन्ध आती है. उसके शरीर पर मवाद और फोड़े हो जाते हैं जिसकी जलन से वह चिल्लाता है.

4-रेवती ग्रह- इस ग्रह से पीड़ित शिशु का मुख लाल, मल हरा और शरीर अति पांडु वर्ण का या काला हो जाता है. उसे अक्सर ज्वर, मधु पाक तथा वेदना रहती है. वह निरंतर कानों तथा नाक को मलता रहता है.

5-पूतना ग्रह-पूतना ग्रह से पीड़ित शिशु के अंग शिथिल हो जाते हैं. इससे पीड़ित बालक दिन में सोते हैं रात में नहीं सोते. ये शिशु पतला मल त्याग करते हैं. उनके शरीर से कौए के समान गंध आती है. ये अक्सर वमन करते हैं और इनमे रोमांच और प्यास की अधिकता होती है.

6- अंध पूतना –अंध पूतना से पीड़ित शिशु स्तन से द्वेष करता है. वह अतिसार, कास, श्वांस, हिक्का, वमन, ज्वर आदि से पीड़ित रहता है. वह औंधे पेट के बल सोता है. उसके आँतों में आवाज होती है तथा शरीर से खट्टी गंध आती है.

7- शीत पूतना –शीतपूतना से पीड़ित शिशु अतिशय बेचैन, वमनशील तथा रुदनशील होता है. वह खाट की पाटी पकड़कर सोता है. शरीर से विचित्र दुर्गन्ध आती है तथा दस्त लगने लगता है.

8-मुख मण्डिका – इस ग्रह से पीड़ित बच्चे के शरीर का मध्य भाग दुर्बल तथा हाथ, पैर, मुख सुंदर सुडौल दिखते हैं. वह बहुत खाता है और उसके पेट की नसें नीली दिखती हैं. उसके देह से मूत्र के समान दुर्गन्ध आती है.

9-नैगमेष ग्रह- नैगमेष ग्रह से पीड़ित बालक के मुख से झाग निकलता है. वह शरीर के मध्य भाग से झुका सा रहता है. वह बेचैन होकर ऊपर की तरफ मुख करके रोता है. उसे सदैव ज्वर रहता है. वह अक्सर बेहोश होता है और देह से चर्बी की गंध आती है.

इन बाल ग्रहों का विशेष ईलाज और हवन के लिए विशेष औषधियां बताई गई हैं. ज्योतिष परम्परा में जन्म से बारह वर्ष पर्यन्त आयु निर्णय नहीं किया जाता और न कुंडली बनाई जाती है इसलिए इस अवस्था तक जातक की जप, होम, पूजा और चिकित्सा द्वारा रक्षा करने के लिए आदेश दिया गया है. जन्म के बारह वर्ष तक पिता के दोष से, बाल ग्रहों से या अन्य बालारिष्ट से बालक मर जाते हैं. श्री कृष्ण को बाल्यावस्था में अनेक प्रकार के बालारिष्ट हुए थे जिनमे पूतना इत्यादि का जिक्र आता है.

भागवतपुराण में जिक्र है कि पूतना ग्रह के कुप्रभाव से बचाने के लिए यशोदा और रोहिणी ने बाल कृष्ण को गाय की पूंछ से झाड़ा था ताकि उनकी रक्षा हो ..
यशोदारोहिणीभ्यां ता: समं बालस्य सर्वत: ।
रक्षां विदधिरे सम्यग्गोपुच्छभ्रमणादिभि: ॥ १९ ॥
भागवत में यह भी वर्णन है कि श्रीकृष्ण को गाय के मूत्र से स्नान कराकर गोरज को माथे पर लगाया था-

गोमूत्रेण स्‍नापयित्वा पुनर्गोरजसार्भकम् ।
रक्षां चक्रुश्च शकृता द्वादशाङ्गेषु नामभि: ॥ २० ॥
तदुपरांत विधिवत हवन इत्यादि सम्पन्न करवाए गये थे.