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गुरुदत्त (08 दिसम्बर, 1894 – 08 अप्रैल, 1989) हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार थे. वे पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक भी थे. विज्ञान के विद्यार्थी और पेशे से वैद्य होने के बावजूद वे बीसवीं शती के एक प्रसिद्ध लेखक बने जिन्होने लगभग दो सौ उपन्यास, संस्मरण, जीवनचरित, आदि का सृजन किया और भारतीय इतिहास, धर्म, दर्शन, संस्कृति, विज्ञान, राजनीति और समाजशास्त्र के क्षेत्र में भी अनेक उल्लेखनीय शोध-कृतियाँ दीं.

गुरुदत्त जी का जन्म लाहौर के एक अरोड़ी क्षत्रिय परिवार में 8 दिसम्बर 1894 में हुआ था. इनके यहाँ अनेक पीढ़ियों से वैद्यक का काम होता रहा है. गुरुदत्त ने पुस्तैनी वैद्यक के व्यवसाय को अपनाया और लाहौर में 1937 किसी गली में वैध बन कर कर काम करने लगे. लेकिन उनका रोजगार नहीं होता था और वे बड़े परेशान रहते थे. वहां एक दिन एक दुर्गा भक्त पंडित आये और बोले-तुम लाहौर छोड़ दो, यहाँ कुछ सुख सुविधा नहीं मिलेगी. कहीं और चले जाओ.” गुरुदत्त ने कहा-साधन कुछ जुट जाये तो चला जाऊंगा. गुरुदत्त ने संस्मरण में लिखा है कि वे उस समय शनि की दशा में चल रहे थे.

कुछ महीने बीते तो फिर पंडित आये और बोले – आप अभी तक गये नहीं?, गुरु दत्त ने कहा -नई जगह जाने के लिए कुछ साधन चाहिए. वही जुटा रहा हूँ. जुटते निकल जाऊंगा. फिर दो महीने बीत गये लेकिन गुरुदत्त वहीं पड़े रहे. पंडित फिर तीसरी बार आये और बोले-‘आपका साधन आने वाला है, मौका मत छोड़ना” पंडित के कहे अनुसार एकदिन डाक से चिट्ठी आई. दिल्ली से किसी आनंद स्वामी ने लिखा था कि “आप लौहर में तंग हैं और कहीं दूसरी जगह जाना चाहते हैं. मैं दिल्ली के क्नाट पैलेस मद्रास होटल के नीचे दुकान चलाता हूँ. मैं यह दुकान छोड़ रहा हूँ. यदि आप जल्द आ जाएँ यह दुकान आपको मिल जाएगी” गुरुदत्त किसी तरह कुछ जुगाड़ कर दिल्ली पहुंचे और उस दुकान को ले लिया. यहीं बैठने लगे और यहीं उन्होंने पहला उपन्यास लिखा. यह उपन्यास चल निकला और वे उपन्यासकार हो गये. दो साल बाद गुरुदत्त किसी काम से लाहौर गये. उन्हें पंडित की बात याद थी. उन्होंने उसे खोजा. पंडित लाहौर के किसी दुर्गा में मन्दिर में रहते थे. जब गुरुदत्त मिलने पहुंचे तब वे पूजा कर रहे थे. गुरुदत्त ने अपना परिचय दिया और फल निवेदन करते हुए बोले – आप मेरे पास तीन बार आये थे और लाहौर छोड़ने का आग्रह किया था. आखिरी बार आपने कहा था “साधन आने वाला है, तुरंत चले जाना. ” साधन बना था और मैं चला गया था. दिल्ली में मेरा काम निकल पड़ा है. आपको धन्यवाद देने आया हूँ ”

पंडित बोले -“यह मेरी कृपा नहीं है. स्वप्न में भगवती ने कहा था कि कृष्ण गली में एक किस्मत का मारा वैद्य बुरी हालत में है. वह सफल नहीं हो रहा है. उससे कहो कि वह लाहौर छोड़ दे. भगवती को धन्यवाद करो और फल उनके समक्ष भेंट करो.” गुरुदत्त आर्यसमाजी थे इसलिए ज्योतिष को नहीं मानते थे लेकिन 1930 में किसी पंडित ने कहा कि शनि की दशा में दरबदर होगे, कामधंधा छूट जायेगा. उन्होंने विश्वास नहीं किया लेकिन समय बीतने लगा और बातें सत्य हुईं. उन्हें मकान से निकाल दिया गया, धंधा रुक गया, ढाबा चलाया तो बंद करना पड़ा, आटा की चक्की खोली तो बंद करना पड़ा, वे दरबदर हुए. पुत्र की मौत हो गई. उन्होंने अपने “भाग्यचक्र”किताब में लिखा है.

गुरुदत्त राष्ट्रवादी विचारक तथा भारतीय सांस्कृतिक विचारधारा के चिन्तक थे. वे भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के उपासक माने जाते हैं. उन्होंने अग्नि परीक्षा , अनदेखे बंधन , अन्तिम यात्रा , अपने पराये , अमानत , अमृत मंथन , अवतरण , अवतरण , अवतरण , अस्ताचल की ओर , अस्ताचल की ओर – भाग 1 , अस्ताचल की ओर – भाग 2 , अस्ताचल की ओर – भाग 3 , आकाश पाताल , आवरण , आशा निराशा , एक मुँह दो हाथ , कामना , कुमकुम , खण्डहर बोल रहे हैं , खण्डहर बोल रहे हैं – भाग 1 , खण्डहर बोल रहे हैं – भाग 2 , खण्डहर बोल रहे हैं – भाग 3 , गंगा की धारा , गुंठन , गृह संसद , घर की बात , चंचरीक , जगत की रचना , जमाना बदल गया – भाग 1 , जमाना बदल गया – भाग 2 , जमाना बदल गया – भाग 3 , जमाना बदल गया – भाग 4 , जिन्दगी , जीवन ज्वार , दासता के नये रूप , दिग्विजय , देश की हत्या , दो भद्र पुरुष , दो लहरों की टक्कर – भाग 1 , दो लहरों की टक्कर – भाग 2 , द्वितीय विश्वयुद्ध , धरती और धन , धर्म तथा समाजवाद , धर्मवीर हकीकत राय , नगर परिमोहन , नास्तिक , पंकज , पड़ोसी , पत्रलता , पथिक , परम्परा , परित्राणाय साधूनाम् , पाणिग्रहण , पुष्यमित्र , प्रगतिशील , प्रतिशोध , प्रवंचना , प्रारब्ध और पुरुषार्थ , प्रेयसी , बनवासी , बन्धन शादी का , बुद्धि बनाम बहुमत , भगवान भरोसे , भग्नाश , भाग्य का सम्बल , भाग्य चक्र , भारत में राष्ट्र , भारतवर्ष का संक्षिप्त इतिहास , भाव और भावना , भूल , भैरवी चक्र , ममता , महाकाल , महाभारत , माया जाल , मृगतृष्णा , मेघवाहन , मैं न मानूँ , मैं हिन्दू हूँ , यह संसार , युद्ध और शान्ति – भाग 1 , युद्ध और शान्ति – भाग 1 , युद्ध और शान्ति – भाग 2 , लालसा , लुढ़कते पत्थर , वर्तमान दुर्व्यवस्था का समाधान हिन्दू राष्ट्र , वाम मार्ग , विकार , विक्रमादित्य साहसांक , विश्वास , विश्वासघात , वीर पूजा , वैशाली विलय , श्री राम , सदा वत्सले मातृभूमे , सफलता के चरण , सब एक रंग , सभ्यता की ओर , सम्भवामि युगे युगे , सम्भवामि युगे युगे – भाग 1 , सम्भवामि युगे युगे – भाग 1 , सम्भवामि युगे युगे – भाग 2 , सर्वमंगला , सागर तरंग , सुमति , सुमति , स्व-अस्तित्व की रक्षा , स्वराज्य दान इत्यादि उपन्यास, इतिहास, दर्शन और कहानियाँ लिखीं.