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मनुष्य अपने सुख दुःख, सौभाग्य दुर्भाग्य के स्वयं उत्तरदायी है. पूर्वार्जित शुभाशुभ कर्मों से सुख दुःख दोनों की प्राप्ति होती है. इसमें ईश्वर पर आरोप मढ़ना मूर्खता है.
सुखस्य दुःखस्य न करोति दाता ।
परो ददाति कुबुद्धिरेषा ।
अहं करोमि वृथाभिमान: ।।
स्वकर्मसूत्रगथितो हि लोका: ।।-
वाल्मीकि रामायण
यह वृथाअभिमान है कि ” मैं कर लूँगा . जन्म कुंडली तुम्हारी नियति है. उसी नियति को ज्योतिषी उजागर करते हैं. महर्षि पराशर ने भी यही लिखा –
कर्मणां फलदातृत्वे ग्रहरूपी जनार्दन: ।
ग्रहयोगवियोगाभ्यां कुलदेशादि देहिनाम ।।

ग्रहरूपी जनार्दन प्राणियों के कर्म फल को देने वाले है, ग्रहों के योग और दुर्योग से मनुष्यों के कर्मों के अनुसार कुल देश आदि में उन्हें तत्तफल प्राप्त होता है.

भगवद्गीता में भी कृष्ण ने अर्जुन से यही कहा था कि तेरी नियति तय है, “तू युद्ध कर रहा है, या तू मार देगा? यह तेरा भ्रम है. तू कुछ भी नहीं, तेरी नियति तय है, तू युद्ध से भाग नहीं सकता. युद्ध तेरी नियति है, तू एक माध्यम भर है, तेरे द्वारा अशुभ शक्तियों का नाश होगा. तू मिथ्या अभिमान और मोह का त्याग कर, युद्ध कर.
तुलसी दास ने यही बात रामचरित मानस में लिखा –
जनम मरन सब दुख सुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा।
काल करम बस होहिं गोसाईं। बरबस राति दिवस की नाई ।।

गोविंदा इस इंटरव्यू के समय 24 साल के थे. उनकी कुछ दो फ़िल्में “इल्जाम” और “लव 88” बॉक्सऑफिस पर हिट हो चुकी थी ..