चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. देवी कालरात्रि को काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यू-रुद्राणी, चामुंडा, चंडी,रौद्री , धूम्रवर्णा और दुर्गा के कई नामों से जाना जाता है. माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं. शुभ फलदायिनी होने के कारण इनका एक नाम ‘शुभंकारी’ भी है. मार्कंडेय पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप ने चण्ड-मुण्ड और रक्तबीज सहित कई राक्षसों का वध किया था. देवी कालरात्रि को काली और चामुण्डा भी कहा जाता है. इनकी उपासना महाभारत काल से हो रही है. देवी महात्म्य के अनुसार दुर्गा के क्रोध से ही मां कालरात्रि प्रकट हुई थीं. इस दिन साधक को ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित देवी की उपासना करना चाहिए.
कालरात्रि के मन्त्र –
1- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः जगतत्रयविमोहिनी भुवनव्यापिनी दंडधारिणीं दुर्गा दुर्गति हन्त्री नानासिद्धि विधायिनी सर्वं वशं कुरु क्रुरु स्वाहा
2-ॐ कालरात्रि देव्यै नम:
ध्यान मन्त्र –
एकवेणीजपाकर्णपुरानना खरास्थिता ।
लम्बोष्ठीकर्णिकाकर्णीतैलाभ्यङ्गशरीरिणी ॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।
वर्धनामूर्धजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी ॥
देवी का स्वरूप भयंकर रौद्र रूप है. इनकी भृकुटियां क्रोध में तनी हुई हैं. इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है. सिर के बाल बिखरे हुए हैं. गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है. इनके तीन नेत्र हैं. ये तीनों नेत्र गोल एवं रक्तवर्ण हैं. इनकी नाक से अग्रि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं. देवी गधे सवार हैं. देवी कालरात्रि के हाथ में रक्त से भरा एक पात्र है. देवी का ये स्वरूप रक्तबीज के वध का प्रतिक है. उन्होंने रक्तबीज नाम के राक्षस को मारकर उसके रक्त को एक पात्र में इकट्ठा कर के पी लिया था.
मां कालरात्रि की पूजा करने से भूतप्रेत, पिसाच और दुरात्मायें घर के आसपास से भाग जाते हैं. मां कालरात्रि बेहद शक्तिशाली हैं, जो लोग विधि विधान से मां कालरात्रि की पूजा अर्चना करते है, उसे सभी संकटों से मुक्ति मिलती है.
कालरात्रि का तांत्रिक ध्यान “आरक्तभानु सदृशीं कामिनी .. ” अलग है और पूजा भी अलग होती है जो गृहस्थ के लिए प्रशस्त नहीं है इसलिए यहाँ नहीं दिया जा रहा है.
पूजा विधि –
देवी की पूर्ववत करें जैसा अन्य देवियों की विधि बताई गई है. देवी की मूलभूत रूप से तांत्रिक पूजा की जाती है. सप्तमी की पूजा अन्य दिनों की तरह ही होती है लेकिन रात में पूजा का विशेष विधान है. सप्तमी की रात्रि सिद्धियों की रात भी कही जाती है. ग्रहस्थ सौम्य रूप की पूजा सामान्य विधि से ही करें. कालरात्रि को गुड़ का भोग प्रिय है. सातवें नवरात्रि पर मां को गुड़ का नैवेद्य चढ़ाने से देवी अति प्रसन्न होती हैं.
चामुण्डा स्तुति-
जयस्व देवि चामुण्डे जय भूताऽपहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥ १॥
विश्वमूर्तियुते शुद्धे विरूपाक्षी त्रिलोचने ।
भीमरूपे शिवे विद्ये महामाये महोदरे ॥ २॥
मनोजये मनोदुर्गे भीमाक्षि क्षुभितक्षये ।
महामारि विचित्राङ्गि गीतनृत्यप्रिये शुभे ॥ ३॥
विकरालि महाकालि कालिके पापहारिणि ।
पाशहस्ते दण्डहस्ते भीमहस्ते भयानके ॥ ४॥
चामुण्डे ज्वलमानास्ये तीक्ष्णदंष्ट्रे महाबले ।
शिवयानप्रिये देवी प्रेतासनगते शिवे ॥ ५॥
भीमाक्षि भीषणे देवि सर्वभूतभयङ्करि ।
करालि विकरालि च महाकालि करालिनि ॥ ६॥
कालि करालविक्रान्ते कालरात्रि नमोऽस्तुते ।
सर्वशस्त्रभृते देवि नमो देवनमस्कृते ॥ ७॥
कालरात्रि कवच-
ऊँ क्लीं मे हृदयम् पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततम् पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनाम् पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशङ्करभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥
कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय जय महाकाली। काल के मुंह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतारा॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खड्ग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदन्ता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवे। महाकाली माँ जिसे बचावे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय॥

