मुझे खेद के साथ सूचित करना पड़ा रहा है कि आगे मन्त्रों के गूढ़ रहस्यों के कारण दुर्गा माता ने मुझे यह व्याख्या यहाँ न करने का आदेश दिया है. यह व्याख्या अब किताब में ही सम्पन्न होगी.
देवीं वाचमजनयन्त देवास्तां विश्वरूपाः पशवो वदन्ति ।
सा नो मन्द्रेषमूर्जं दुहाना धेनुर्वागस्मानुप सुष्टुतैतु ॥ १०॥
प्राणरूप देवों ने जिस प्रकाशमान वैखरी वाणी को उत्पन्न किया, उसे अनेक प्रकार के प्राणी बोलते हैं। वह आनंददायक वाक् रूपिणी कामधेनुरूपा, अन्न तथा बल देनेवाली भगवती उत्तम स्तुति से संतुष्ट होकर हमारे समीप आयें।
कालरात्रीं ब्रह्मस्तुतां वैष्णवीं स्कन्दमातरम् ।
सरस्वतीमदितिं दक्षदुहितरं नमामः पावनां शिवाम् ॥ ११॥
काल का भी नाश करने वाली कालरात्री, वेदों द्वारा स्तुत वैष्णवीं, स्कन्दमाता, सरस्वती, देवमाता आदिती और दक्षकन्या, पापनाशिनी कल्याणकारिणी भगवती को हम प्रणाम करते हैं।
महालक्ष्म्यै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥ १२॥
हम महालक्ष्मी को एकमात्र सत्य के रूप में जानते हैं और उन सर्वशक्तिस्वरूपिणी का ही ध्यान करते हैं। वह महादेवी हमें तद्त्त विषय में (कर्म-ज्ञान-उपासना इत्यादि) प्रवृत्त करें।

