श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा हैं. इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है. तंत्र ग्रन्थों में इन्हें चण्डेश्वर्या भी कहा गया है. नवरात्रि के तृतीय दिन इनका ही पूजन और अर्चना किया जाता है. इनका पूजन मणिपुर चक्र में करना चाहिए. मणिपुर चक्र जाग्रत होने से साधक को चक्र की समस्त सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं तथा सभी कष्टोंसे मुक्ति मिलती है. मणिपुर चक्र की स्वामिनी होने के कारण ही इन्हें चण्डेश्वर्या कहा जाता है. मणिपुर अग्नितत्वात्मक है. रावण देवी चंद्रघंटा का परम उपासक था. इनकी आराधनासे मनुष्य के हृदय में अहंकार की वृद्धि भी होती है और उसका नाश भी होता है. इनकी प्रसन्नता से उपासक सुख और शांति की सहज ही प्राप्ति कर लेता है. भगवद्गीता में कहा गया है कि जिसको शांति नहीं, उसे सुख कहाँ से मिल सकता. सुख-शांति एक दूसरे पर्यायवाची हैं. माँ चन्द्रघण्टा मंगलदायनी है तथा भक्तों को निरोग बनती हैं और उन्हें वैभव तथा ऐश्वर्य प्रदान करती हैं. उनके घंटो का नाद सुनकर दैत्य समूह स्तम्भित हो जाता है.
नमस्कार मन्त्र –
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
चन्द्र घंटा का ध्यान –
ध्यान1-पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
ध्यान 2-वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
चन्द्रघंटा देवी का स्वरूप तपे हुए स्वर्ण के समान कांतिमय है. चेहरा शांत एवं सौम्य है और मुख पर सूर्यमंडल की आभा छिटक रही है. माता के सिर पर अर्ध चंद्रमा मंदिर के घंटे के आकार में सुशोभित हो रहा है. मां चन्द्रघंटा अपने प्रिय वाहन सिंह पर आरूढ़ होकर अपने दस हाथों में खड्ग, तलवार, ढाल, गदा, पाश, त्रिशूल, चक्र,धनुष, भरे हुए तरकश, पद्म और कमंडलू लिए हुए हैं और एक हाथ वरद मुद्रा में है. देवी नाना अलंकारों से सुशोभित हैं, उनके गले में फूलों हार है तथा देवी मंद मंद मुस्कुरा रही हैं. माता का ऋषिगण वेद मंत्रों द्वारा देवी चन्द्रघंटा की स्तुति कर रहे हैं. देवी चंद्रघंटा की छवि ऐसे है मानों सदैव युद्ध के लिए आतुर हैं.
देवी चंद्रघंटा पूजा विधि :
देवी चन्द्रघंटा की जो भी श्रद्धा एवं भक्ति भाव सहित पूजा करता है उसको देवी की कृपा प्राप्त होती है. वह संसार में यश, कीर्ति एवं सम्मान प्राप्त करता है. देवी घंटे की ध्वनि से सदैव भक्तों की प्रेत-बाधा आदि से रक्षा करती है, उपासक के घर से भूत, प्रेत एवं अन्य प्रकार की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. इनकी पूजा का विधान भी लगभग उसी प्रकार है जैसी दूसरे दिन की पूजा का है. सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता, तीर्थों, योगिनियों, नवग्रहों, दशदिक्पालों, ग्रम एवं नगर देवता की पूजा अराधना करें फिर माता के परिवार के देवता, गणेश, लक्ष्मी, विजया, कार्तिकेय, देवी सरस्वती ,एवं जया नामक योगिनी की पूजा करें फिर देवी चन्द्रघंटा की पूजा अर्चना करें.
चन्द्रघंटा की मंत्र :
1-ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं चन्द्रघंटायै नम:
2-ॐ क्रीं क्रीं हूं हूं हूं हूं क्रों क्रों क्रों श्रीं ह्रीं ह्रीं छ्रीं छ्रीं फ्रें स्त्रीं चन्द्रघंटे शत्रून् स्तम्भय स्तम्भय मारय मारय हूँ फट स्वाहा
3-या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
चन्द्रघंटा की स्तोत्र :
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥
चन्द्रघंटा की कवच :
रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥

