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ग्रह दोष के निवारण के लिए शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ उपाय ग्रहों का पूजा अनुष्ठान और दान बताया गया है. इसके इतर ग्रहों के लिए औषधि स्नान और रत्न धारण करने से भी उन ग्रहों का दोष निवृत्त होता है और शुभ परिणाम मिलते हैं, इसलिए ये भी महत्वपूर्ण उपायों में सम्मिलित है. ज्योतिष में अकेला ग्रह कुछ नहीं करता, ग्रहों की पांच दशाएं होती हैं अर्थात पांच ग्रह मिलकर किसी परिघटना को अंजाम देते हैं. इनमे तीन प्रमुख ग्रह होते हैं जो महादशा, अंतरदशा और प्रत्यंतर दशा के स्वामी होते हैं. इन दशाओं के शुभाशुभ परिणाम लग्न स्वामी अर्थात लग्नेश और सूर्य-चन्द्रमा के बल पर भी निर्भर करता है. ऐसे में सभी ग्रहों का सम्मिलित प्रभाव होता है यदपि की महादशा स्वामी राजा होता है और उसके अनुसार अन्यों को कार्य करना पड़ता है.

ग्रहों के अशुभ परिणाम से बचने के लिए और शुभ परिणाम की प्राप्ति के लिए कुछ रत्न हमेशा ही धारण करना चाहिए. लग्नेश का रत्न सदैव धारण करना चाहिए, इसमें किसी से पूछने की जरूरत नहीं है. सूर्य आत्मकारक है इसलिए उसका रत्न धारण करने में कोई बुराई नहीं है अथवा कुंडली में जो चर आत्मकारक है उसकी अंगूठी धारण करना चाहिए. कुडली में सबसे शुभ ग्रह नवमेश या पंचमेश की भी कुंडली में उनकी स्थिति के अनुसार देख कर धारण करना लाभदायक रहता है. यदि सूर्य कुंडली में बुरे घर का स्वामी हो तब भी उसका रत्न धारण करने में कोई बुराई नहीं है.

ज्योतिष शास्त्रों में एक रत्न की जगह नवरत्नों की अंगूठी या लॉकेट धारण करने का सुझाव पुराने ज्योतिष दैवज्ञों ने दिया है. एक रत्न की जगह नवरत्न समुदाय को धारण करना विशेष लाभप्रद कहा गया है. इस नवरत्न समुदाय की अंगूठी कभी भी ज्योतिष कम्पनियों या ज्योतिष का बिजनेस करने वाले ज्योतिषियों से नहीं लेना चाहिए जो इसका मास स्तर पर घटिया उत्पादन करते हैं. इस विशेष अंगूठी को यत्न पूर्वक स्वयं किसी अच्छे सुवर्णकार से बनवाना चाहिए और किसी अच्छे आचार्य से प्राण प्रतिष्ठा पूजन करवा कर शुभ मुहूर्त और लग्न में इसे धारण करना चाहिए. एक बार पैसा नहीं खर्च कर सकते तो रत्नों को धीरे धीरे एक एक करके संग्रहित कर लेना चाहिए.

वज्रं शुक्रेब्जे सुमुक्ता प्रवालं भौमगो गोमेदोमार्को सुनीलम।
केतौ वैदूर्यं गुरौ पुष्पकं ज्ञे पाचि: प्रानग्माणिक्यमर्के तु मध्ये ।।

सोने की अंगूठी में रत्न जड़ने के स्थान पर रत्नों को जड़ने के लिए 9 कोष्ठों का सुंदर चतुरस्र या अष्टदल कमल का आकार किसी सुवर्णकार से बनवाना चाहिए. इस कोष्ठ में शुक्र के लिए पूर्व में हीरा, चन्द्रमा के लिए अग्नि कोण में मोती, मंगल के लिए दक्षिण में मूंगा, राहु के लिए नैऋत्य कोण में गोमेद, शनि के लिए पश्चिम में सुंदर नीलम और केतु के लिए वायव्य में वैदूर्य, गुरु की प्रसन्नता के लिए उत्तर में पुखराज (पुखराज को पुष्पक भी कहा जाता है), ईशान कोण में बुध के लिए पन्ना तथा मध्य में सूर्य देव के लिए माणिक्य को शुभ मुहूर्त में अपने समक्ष जड़वाना चाहिए. इस नवरत्न समुदाय की अंगूठी को जड़वा कर उसकी अपने राशि के दिन अथवा अपने लग्न स्वामी के दिन में शुभ मुहूर्त में विधिवत नवग्रह पूजा के साथ प्राण पप्रतिष्ठा करवानी चाहिए और उसे धारण करना चाहिए. ऐसा करने से सभी ग्रह अनुकूल होते हैं.