 
									आज फाल्गुन कृष्ण पंचमी है. पंचमी नाग देवता की पूजा के लिए प्रशस्त तिथि है. यह नाग देव को समर्पित है. एक पूरी तिथि नाग देवता को समर्पित है अर्थात सनातन धर्म में नाग देवता की पूजा उतनी महत्वपूर्ण है जैसे अन्य देवताओ की पूजा. महाभारत का प्रारम्भ ही सर्प की कथा से होता है. सर्पों को मनुष्य का पूर्वज माना जाता है. भागवत पुराण में बारह आदित्यों के साथ द्वादश सर्पों के उदय और अस्त का जिक्र है.  सात ग्रहों के उदय अस्त से भी नागों को जोड़ा जाता है. सर्प ग्रह रूप हैं.
अनन्त नाग- सूर्य
वासुकि- सोम
तक्षक- मंगल
कर्कोटक- बुध
पद्म- गुरु
महापद्म- शुक्र
कुलिक एवं शंखपाल- शनैश्चर ग्रह के रूप हैं. 
इन सर्पों की पूजा से ग्रह दोष की शांति भी होती है. ज्योतिष में सर्प-दोष बहुत बड़ा दोष कहा गया है. इस दोष से सन्तान बाधा होती है. दूसरे काल-सर्प दोष होने से अनेक प्रकार की परेशानियाँ जैसे -सफलता न मिलना, अपयश, कोर्ट कचहरी, शीघ्र उत्थान पतन , अभिचार कर्म, भूत बाधा, सन्तान बाधा, जेल, अस्थिरता, पारिवारिक क्लेश इत्यादि होते हैं. जिन जातकों के लगन में 7th, 8th, 5th में राहु हो उनको नाग पूजन जरुर करना चाहिये
ऐसे में मासिक नाग पूजन एक श्रेष्ठ उपाय है. मासिक पूजन के लिए हल्दी मि.श्रित चंदन से दीवार पर अथवा पीढे पर नाग का चित्र बनाएं (सप्त नाग या नौ नाग का अंकन किया जाता है. भागवत में द्वादश नागों का वर्णन है तो ईच्छानुसार उनको भी सम्मिलित कर सकते हैं और हर महीने के अनुसार उनका पूजन सम्पन्न कर सकते हैं.). फिर उस स्थान पर नागदेवता का पूजन करें . ‘अनंतादिनागदेवताभ्यो नमः ।’ यह नाममंत्र कहते हुए गंध, पुष्प इत्यादि सर्व उपचार समर्पित करें . जिन्हें नागदेवता की ‘षोडशोपचार पूजा’ करना संभव नहीं, वे ‘पंचोपचार पूजा’ करें एवं दूध, शक्कर, खीलों का अथवा कुल की परंपरा अनुसार खीर इत्यादि पदार्थाें का नैवेद्य प्रदान करें. (पंचोपचार पूजा : चंदन, हल्दी-कुमकुम, पुष्प (उपलब्ध हो तो दूर्वा, तुलसी, बेल) धूप, दीप एवं नैवेद्य, इस क्रम से पूजा करना ।)
नागों के चित्र के स्थान पर आगे दिए नाममंत्रों से नवनागों का आवाहन करें. दाएं हाथ में अक्षत लेकर ‘आवाहयामि’ कहते हुए नागदेवता के चरणों में अक्षत पुष्प चढाते, आसन प्रदान कर विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए.
ॐ अनन्ताय नमः । अनन्तम् आवाहयामि ॥
ॐ वासुकये नम: । वासुकिम् आवाहयामि ॥
ॐ शेषाय नम: । शेषम् आवाहयामि ॥
ॐ शङ्खाय नम: । शङ्खम् आवाहयामि ॥
ॐ पद्माय नम: । पद्मम् आवाहयामि ॥
ॐ कम्बलाय नम: । कम्बलम् आवाहयामि ॥
ॐ कर्कोटकाय नम: । कर्कोटकम् आवाहयामि ॥
ॐ अश्वतरये नम: । अश्वतरम् आवाहयामि ॥
ॐ धृतराष्ट्राय नम: । धृतराष्ट्रम् आवाहयामि ॥
ॐ तक्षकाय नम: । तक्षकम् आवाहयामि ॥
ॐ कालियाय नम: । कालियम् आवाहयामि ॥
ॐ कपिलाय नम: । कपिलम् आवाहयामि ॥
ॐ नागपत्नीभ्यो नमः । नागपत्नीः आवाहयामि ॥
ॐ अनन्तादिनागदेवताभ्यो नम: । ध्यायामि ।
इसी क्रम से सबकुछ प्रदान कर पूजन सम्पन करना चाहिए. यह हर पंचमी को सम्पन्न करने से सभी नाग दोषों और राहु जनित पीड़ा से मुक्ति मिलती है. 


 
					 
					 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			