सनातन हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से पंचदेवोपासना प्रचलित है और इन पांच देवों के सम्प्रदाय, दर्शन, पूजा पद्धति और मन्दिर ही भारत में मिलते हैं. इन पंचदेवों में विष्णु, शिव, देवी और सूर्य तो आदि काल से मान्य हैं. गणेश पंच देवों में बाद में सम्मलित किये गये हैं. मूलभूत रूप से चार देवता ही वैदिक काल से भारत वर्ष में पूजित होते आ रहे हैं. यज्ञ पुरुष विष्णु और सूर्य प्रारम्भिक वैदिक देवता हैं इसलिए इनका सम्प्रदाय ही सबसे पहले विकसित हुआ और इनमे भी सूर्य पूजा सबसे प्राचीन है. वैदिक काल में सूर्य समस्त उपासनाओं के केंद्र में थे. गायत्री सूर्य केन्द्रित उपासना ही है. पुरे भारत वर्ष में प्राचीन सूर्य मन्दिर पाए जाते हैं जो विष्णु मन्दिरों से भी प्राचीन हैं. यदि देखा जाय तो सबसे प्राचीन हिन्दू मन्दिर सूर्य मन्दिर ही है जो BC 500 के आसपास बनाया गया था या उससे भी प्राचीन है. यह सूर्य मन्दिर वर्तमान में पाकिस्तान के मुल्तान में पड़ता है. इस मन्दिर का वर्णन 6-7वीं शताब्दी में रचित सूर्य सम्प्रदाय के साम्ब पुराण में मिलता है. सम्भवत: यह महाभारत कालीन है क्योंकि साम्ब कृष्ण का पुत्र था. पंचदेवों के सम्प्रदाय अनगिनत हैं क्योंकि इन देवताओं के सदस्यों के इदगिर्द भी सम्प्रदायों और मन्दिरों का विकास हुआ है. विष्णु परिवार के विष्णु, लक्ष्मी, शेष, गरुण के अलग अलग मन्दिर हैं, शिव परिवार है तो उनके सदस्यों गणेश, कार्तिकेय, नाग देवता के अलग अलग मन्दिर हैं. नागदेवताओं के सहस्रों मन्दिर दक्षिण में हैं और इनके सम्प्रदाय भी रहे हैं. दुर्गा देवता हैं तो उनके परिवार के अलग अलग मन्दिर हैं. देवी से प्रकट हुई दस महाविद्यायें हैं और उनके अलग अलग सम्प्रदाय, दर्शन, मन्दिर, पुराण और तन्त्र हैं. कार्तिकेय का सम्प्रदाय बहुत बृहद है और उनके सैकड़ों मन्दिर दक्षिण भारत में है जबकि उत्तर भारत में शिव परिवार के गणेश के मन्दिर बहुतायत में हैं और मध्ययुग में गणेश का सम्प्रदाय बहुत तेजी से विकसित होकर पुरे भारत में फैला है.

इन पंच देवों में देवि दुर्गा या शक्ति आद्या हैं, इनकी पूजा ही सभी देवता, दैत्य और मनुष्य करते रहे हैं. महाभारत काल में बड़े बड़े यज्ञ होते थे, वैदिक देवताओं के साथ शक्ति पूजा ही प्रमुखता से की जाती थी. शक्ति पूजा दुनिया में सबसे प्राचीन और प्रिमिटिव है. महाभारत में कुंती वैदिक देवताओं का ही मन्त्रों से अवाहन करती है सूर्य, इंद्र, वायु, धर्म ये प्रारम्भिक वैदिक देवता थे. कुंती ने माद्री को अश्विन कुमारों का मन्त्र बताया था जिनसे नकुल सहदेव पैदा हुए थे. अश्विन कुमार प्रारम्भिक ऋग्वेदिक काल के प्रमुख देवता थे,उन्होंने प्रसिद्ध मधु विद्या द्वारा सोम पीने का अधिकार प्राप्त किया था. तंत्र ग्रन्थों में बताया गया है कि उन्होंने शक्ति की उपासना द्वारा ही आथर्वण दधीचि का शिर काट कर अश्व का सिर लगाने की शक्ति प्राप्त की थी. महाभारत की हिडिम्बा भी किसी घोर देवी शक्ति की पूजा करती थी. महाभारत युद्ध के प्रारम्भ में कृष्ण के कहने से पांडवों ने शक्ति पूजा संम्पन की थी. कृष्ण भी मूलभूत रूप से शाक्त ही थे. दिल्ली स्थित कालका मन्दिर को महाभारत कालीन बताया जाता है. मन्दिर में देवी विग्रह के रूप में एक शिला मात्र है. अति प्राचीन वैष्णव देवी मन्दिर में भी देवी का मूर्ति विग्रह नहीं है तीन शिला ही है. कर्ण सूर्य पुत्र था और सूर्य की ही पूजा करता था लेकिन वह एक शक्ति उपासक भी था. बिहार के मुंगेर जिले में स्थित महाभारत कालीन चण्डिका मन्दिर कर्ण की शक्ति पूजा का साक्षी है. ऐसी मान्यता है कि अंगराज कर्ण माता चंडिका की पूजा कर उनसे प्राप्त सवा मन सोना का दान प्रतिदिन करता था.
कर्ण ब्रह्म मुहूर्त में चंडिका स्थान स्थित खौलते तेल के कड़ाह में कूद जाता था और उसके मांस का चौंसठों योगिनियां भक्षण कर लेती थीं। इसके बाद देवी चण्डिका उसके अस्थि पंजर पर अमृत छिड़क उसे पुन: जीवित कर देती थी और पुरस्कार स्वरूप सवा मन या पचास किलो सोना देती थी. भारत का सबसे प्राचीन मन्दिर भी शक्ति मन्दिर ही है. यह मन्दिर देवी मुंडेश्वरी का मन्दिर है जो बिहार के भभुआ जिले के रामगढ़ गाँव के कैमूर पहाड़ियों पर स्थित है. ऐतिहासिक कारणों से यह मन्दिर विश्व विख्यात है. इस मन्दिर का निर्माण काल 100 AD या इससे भी प्राचीन है. वर्तमान मन्दिर गुप्त काल 389 ईस्वी के आसपास का है. मुंडेश्वरी देवी का मन्दिर पत्थरों से बना हुआ एक अष्टकोणीय मन्दिर. यह मन्दिर अनोखी नागरा शैली में बना हुआ है. देवी विग्रह बहुत भव्य है, देवी मां यहाँ वाराही रूप में विराजमान हैं. उनका वाहन महिष है और वे मुंड नामक दैत्य के सिर पर खड़ी बध मुद्रा में हैं. मां मुंडेश्वरी के मंदिर में गर्भगृह के अंदर चतुर्मुख शिवलिंग है , ऐसी मूर्ति भारत में बहुत कम ही पायी जाती है. मन्दिर में गणेश की प्रतिमा भी मौजूद है जिसकी प्राचीनता संदिग्ध है.

मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि की प्रथा है. जब माता से मांगी हुई मनोकामना पूरी हो जाती है तो भक्त इस मंदिर में आकर बकरे की बलि देते हैं. अब उस मन्दिर में बलि बंद कर दी गई है. इस मन्दिर का वर्णन शैव-शाक्त सम्प्रदाय के मार्कण्डेय पुराण में है. मार्कण्डेय ऋषि को महान शैवाचार्य और शाक्त माना जाता है, उनके द्वारा रचित देवी महात्म्य शक्ति सम्प्रदाय का सबसे पवित्र और प्रमुख ग्रन्थ है. मन्दिर पौराणिक काल से निःसंदेह बहुत प्राचीन है.

Mundeshwari Temple, Bhabhua, Bihar.

