
मुंडेश्वरी मंदिर भारत के प्राचीन मन्दिरों में से एक है. यह मन्दिर बिहार के कैमूर जिले के रामगढ़ गाँव के पंवरा पहाड़ी पर स्थित है जिसकी ऊँचाई लगभग 600 फीट है. मुण्डेश्वरी भवानी के मंदिर के नक्काशी और मूर्तियों गुप्तकालीन बताई जाती हैं. वास्तव में यह मन्दिर गुप्तकालीन नहीं है बल्कि उससे बहुत पुराना है. गुप्तकाल में इसका जीर्णोद्धार किया गया था या फिर से बनाया गया था. ऐसा माना जाता है कि इस मन्दिर में पूजा महाभारत काल में भी होती थी. यह पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है. इस मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुण्डेश्वरी की पत्थर से बनी भव्य व प्राचीन मूर्ति मुख्य आकर्षण का केंद्र है. माँ वाराही रूप में विराजमान है, जिनका वाहन महिष है. इस मंदिर के मध्य भाग में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है जो सूर्य की स्थिति के साथ साथ रंग भी बदलता रहता है. मुख्य मंदिर के पश्चिम में पूर्वाभिमुख विशाल नंदी की मूर्ति है, जो आज भी अक्षुण्ण है. यहाँ पशु बलि में बकरा तो चढ़ाया जाता है परंतु उसका वध नहीं किया जाता है बलि की यह सात्विक परंपरा भारतवर्ष में अन्यत्र कहीं नहीं है. सोशल मीडिया पर अम्बेडकरवादी इसे बौध मन्दिर बता रहे हैं. अम्बेडकरवादियों का तर्क है कि मुंडेश्वरी देवी के बाल घुंघराले हैं इसलिए यह बौध मूर्ति है क्योकि भारत में घुंघराले बाल केवल बुद्ध की मूर्तियों में ही दिखाए जाते हैं.

पहाड़ी पर बिखरे हुए कई पत्थर और स्तंभ हैं जिनको देखकर लगता है कि उन पर श्री यंत्र सिद्ध यंत्र मंत्र उत्कीर्ण हैं. बौध धर्म में तन्त्र मन्त्र का प्रचलन पांचवीं छठवीं शताब्दी के आसपास शुरू हुआ और जब बौध धर्म को वेदांत गुरुओं ने भारत से खदेड़ दिया तब यही इनका धर्म बन गया. गौतम बुद्ध की शिक्षाओं में तंत्र-मन्त्र और मूर्ति पूजा का वर्णन कहीं भी नहीं है. बुद्ध भगवान में विश्वास नहीं करते थे. बौध धर्म नास्तिक धर्म माना जाता है. बुद्ध तो कपिल मुनि के योगमार्ग पर चलने वाले योगी थे. उन्हें मन्त्र का कोई ज्ञान नहीं था फिर बौध मन्त्र कैसे जान गये? पराजित होने और भगाए जाने बाद बौध हिन्दुओं की नकल करने लगे और मन्त्र चुरा कर गढ़ने लगे. फिर इनका सबसे गंदा तंत्र युग शुरू हुआ. पराजय और भगाए जाने से फ्रस्ट्रेट बौध अपनी मूर्तियों के पैरों तले हिन्दू देवताओं को कुचलने लगे. यह सब विकास सातवीं शताब्दी के बाद हुआ. बौध पूरी तरह खत्म हो गये और बाद में पूरी तरह घृणित और गंदे. यहाँ तक कि ये औरतों का मूत्र और मासिक धर्म से निकले गंदे रक्त पीने लगे. बौध युग में भी बौध बलात्कारी थे ऐसा इतिहास में प्राप्त होता है. बौधों ने राज सत्ता की मदद से हिन्दुओं के मन्दिरों और मठों पर भी कब्जा किया था. मुंडेश्वरी मंदिर भारत में मूर्ति कला के विकास के प्रारम्भिक दौर की मूर्ति है इसलिए इस पर गांधार शैली का प्रभाव है. यह समझना चाहिए. बुद्ध की मूर्ति कोई भारतीय मूर्ति नहीं है, सिर के बाल ग्रीक शिल्प का प्रभाव है. ग्रीस में अनेक देवता और बुद्ध ग्रह के सिर पर भी घुंघराले बाल होते हैं.

Mercury AD 50-100, Roman period
बुद्ध के सिर पर बाल की स्टाइल ग्रीक स्टाइल है और यह इसलिए है क्योकि बुद्ध का प्रमोशन विदेशी सत्ता (इंडो-ग्रीक शासकों) ने हिन्दू धर्म के खिलाफ किया था. महायान के ग्रन्थ में एक वर्तालाप बौद्ध भिक्षु नागसेन तथा भारत-यूनानी शासक मिलिन्द के बीच प्रसिद्ध है जिसे मिलिन्दपञ्ह या मिलिन्दपन्ह कहा जाता है. इसका गौतम बुद्ध से कोई लेना देना नहीं है. सारी मूर्तियाँ गांधार से बन कर आती थी और देश भर में फैलाई जाती थीं तथा सनातन हिन्दू धर्म के खिलाफ प्रोपगेंडा किया जाता था. गांधार शैली का प्रभाव प्रारम्भिक दौर में हुआ जब भारत में शिल्प कला तेजी से विकसित होनी शुरू हुई थी.