दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चन्द्रमा से किया था. चन्द्रमा उनके साथ सुख से रहने लगे लेकिन वे रोहिणी के यहाँ ज्यादा समय व्यतीत करते थे. यह देख चन्द्रमा की अन्य पत्नियाँ बड़ी दुखी थी. एकदिन वे पिता दक्ष प्रजापति के पास गईं और उन्होंने दक्ष को बताया की कैसे चंद्र देव सिर्फ रोहिणी का ही ख्याल रखते हैं और अपनी अन्य पत्नियों से प्रेम नहीं करते हैं. राजा दक्ष को अपनी बेटियों का ये दुख जानकर काफी दुख हुआ और वो चंद्र देव से मिलने के लिए चले गए. चंद्र देव से मिलकर राजा दक्ष ने उन्हें समझाया की वो जिस तरह से रोहिणी से प्यार करते हैं और उसकी देखभाल करते हैं, उसी तरह से उनकी अन्य पुत्रियों का भी ध्यान रखें. राजा दक्ष के समझाने पर चंद्र देव ने उनसे वादा किया कि वो उनकी सभी पुत्रियों का भी ध्यान रोहिणी की तरह ही रखेंगे..
जब राजा दक्ष को ये बात पता चली तो उन्होंने चंद्र देव को फिर से समझाने की कोशिश की मगर चंद्र देव नहीं माने और रोहिणी काममन्दिर में विचरण करते रहे. जिसके बाद राजा दक्ष ने गुस्से में आकर ‘राज यक्ष्मा’ को प्रकट किया और चंद्र देव को ‘क्षयग्रस्त’ हो जाने का श्राप दे दिया. राजयक्ष्मा चन्द्रमा के पास पहुंच कर क्षिद्र देख उनके हृदय में प्रविष्ट हो गया. इसके प्रविष्ट होते ही चंद्र देव क्षय रोग (TB) से ग्रस्त हो गए और धीरे- धीरे उनकी चमक कम होने लग गई. चन्द्रमा के क्षय होने से औषधियां नष्ट हो गईं, औषधियों के नष्ट होने से यज्ञ नष्ट होने लगा, यज्ञ न होने से वर्षा रुक गई जिससे अन्न नष्ट हो गया. अन्नं नष्ट होने से देवताओं को हविष्य की प्राप्ति नहीं होती थी जिसकी वजह से देव लोक के सभी देवता काफी चिंतित हो गए. 
 तब देवराज इंद्र को आगे कर सभी देवता पितामह ब्रह्मा के पास गये और कहने लगे – भगवान ! अन्न के अभाव में प्रजा संकट में है और हविष्य न मिलने से हम क्षीण होते जा रहे हैं. वक्र गति से चन्द्रमा सदैव रोहिणी के घर में निवास कर रहा है. वृष में उच्च का होकर भी चांदनी से क्षीण हो गया है. वह अपनी कलाओं से हीन एक कला मात्र रह गया है. कर्मो का सर्वत्र उल्टा परिणाम हो रहा है. व्यतिक्रम देख हम आपकी शरण आये हैं आप ही इस समस्या का समाधान बताएं. ब्रह्मा जी ने देवताओं को श्राप देने वाले दक्ष प्रजापति से उपाय पूछने के लिए उनके पास भेजा. दक्ष ने देवताओ की प्रार्थना पर चन्द्रमा को दिए श्राप को आधा कर दिया और कहा- श्राप के अनुसार यह एक पक्ष में ह्रास को प्राप्त होगा और दूसरे पक्ष में पुन: वृद्धि को करके अपनी कलाओं को पूर्ण करेगा. इस प्रकार दक्ष के कहे वचनों के अनुसार चन्द्रमा वृद्धि और ह्रास को प्राप्त होने लगे.
दक्ष प्रजापति के द्वारा चन्द्रमा के श्राप को आधा करने का आशीर्वाद प्राप्त कर देवता रोहिणी के घर से चन्द्रदेव को लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. ब्रह्मा जी ने तब चन्द्रमा को बृहल्लोहित सरोवर में स्नान कराया, स्नान करते ही राजयक्ष्मा चन्द्रमा के शरीर से बाहर निकला. तदन्तर ब्रह्मा जी ने उसको निचोड़कर चन्द्रमा के अर्क को अलग किया जिससे राजयक्ष्मा शक्तिहीन हो गया.
 शक्तिहीन राजयक्ष्मा ने ब्रह्मा जी को प्रणाम कर पूछा -मैं अब कहाँ जाऊं क्या करूं ? आप जगत पिता हैं, आप मेरे अनुकूल रहने का स्थान, मेरी पत्नी और कार्यों का निर्देश कीजिये.  तब ब्रह्मा जी ने कहा- हे राजयक्ष्मा ! जो जिन-रात स्त्रियों में असक्त हो अनियंत्रित सम्भोग करता हो उसमें निवास करो. जो सर्दी जुकाम स्वांस-कास से युक्त होने पर भी मैथुन करे, श्लेष्मा से युक्त ये व्यक्ति ही तुम्हारे निवास योग्य स्थान हैं. क्षीण करना तुम्हारा मुख्य कर्म होगा. तुम अपनी पत्नी कृष्णा के साथ तीनो लोको में भ्रमण करो. चन्द्रवंशी राजा ययाति को राजयक्ष्मा का रोग अनियंत्रित सम्भोग के कारण ही हुआ था जिससे उनकी मृत्यु हुई थी. इस कथा से यह स्पष्ट है कि प्राचीन काल से ही चन्द्रमा इस रोग का प्रमुख कारक ग्रह मान्य है.
-राजेश शुक्ला ‘गर्ग’ (Rajesh shukla ‘garg’)

