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मूल नक्षत्र एक अति गण्ड और तीक्ष्ण संज्ञक, अधोमुख नक्षत्र होने से अशुभ, क्षयकारक नक्षत्र है. इसे एक तामसिक, स्त्री नक्षत्र माना गया है. इसकी जाति कसाई, योनि कुत्ता, योनि वैर सर्प, गण राक्षस, नाड़ी आदि है. यह दक्षिण पश्चिंम (नैऋत्य) दिशा का स्वामी है. धनु राशि में मूल नक्षत्र के चारो पाद का विस्तार है जो 00:00:00 से 13:20:00 अंश तक माना जाता है. वृश्चिक राशी में जहाँ ज्येष्ठा खत्म होता है और धनु राशी का प्रारम्भ होता वहीं मूल नक्षत्र की स्थिति है. इस मूल नक्षत्र को वैदिक ज्योतिष में इस संसार का ही मूल माना जाता है क्योकि यह गैलेक्सी के मूल में है. मूल नाम ही इसीलिए पड़ा. इस नक्षत्र में कुछ विद्वान् नौ तथा कुछ ग्यारह तारे मानते हैं, जो लेम्बडा-स्कोर्पियोनिस, इप्सिलोन-स्कोर्पियोनिस, एम-इ-स्कोर्पियोनिस, लोटा-स्कोर्पियोनिस, थीटा-स्कोर्पियोनिस, इटा-स्कोर्पियोनिस, जीटा-स्कोर्पियोनिस, कप्पा-स्कोर्पियोनिस, और उप्सिलन-स्कोर्पियोनिस नाम से पहचाने जाते हैं. वृश्चिक की पूंछ पर स्थित लेम्बडा-स्कोर्पियोनिस और उप्सिलन-स्कोर्पियोनिस इस नक्षत्र के तारों में सबसे चमकीले तारे हैं, जिन्हें आकाशगंगा के केंद्र में देखा जा सकता है. वास्तव में यह वृश्चिक के पूंछ या मूल में स्थित है, इसे प्राचीन अरब में Shaula या शूल कहा जाता था. लेम्बडा-स्कोर्पियोनिस को मूल के रूप में पहचाना जाता है, यह सूर्य से १४ गुना बड़ा और चमक में ३६ हजार गुना ज्यादा है. मूल नक्षत्र रात में उप्सिलन-स्कोर्पियोनिस के साथ देखा जा सकता है. ये तारे यद्यपि की वृश्चिक का हिस्सा हैं लेकिन धनु राशि के बृहत्तर हिस्से में गिना जाता है.

मूल नक्षत्र के पास आकाशगंगा का केंद्र है जिसे आज ब्लैकहोल Sagittarius A* कहा जाता है. सूर्य इस ब्लैकहोल का 250 मिलियन वर्ष में एक चक्कर लगाता है. ब्लैकहोल के आकर्षण की वजह से सूर्य की रफ्तार यहाँ कम हो जाती है और खरमास लग जाता है. खर मतलब गधा, दक्षिणायन की 6 राशियों में भ्रमण से थके घोड़ों को सूर्य यहाँ आराम करने के लिए छोड़ देते हैं और गधे की सवारी करते हैं. खरमास की पौराणिक कथा कुछ ऐसी ही है. मूल नक्षत्र के आकर्षण का इतना गहरा असर सूर्य पर पड़ता है कि रफ्तार ही कम हो जाती है तो चन्द्रमा पर इसके गहरे प्रभाव का क्या कहना! इस नक्षत्र का देवता निर्ऋति एक राक्षस के कंधे पर सवार है. पराशर के अनुसार – “श्यामवर्ण महोग्रं च द्विशिरस्कं वृकाननं खड्गचर्मधरं तद्वत ध्येयं कुणपवाहनं” निर्ऋति दो सिर वाला, काला रंग, भेड़िये जैसा भयानख मुख, तलवार और ढाल लिए हुए, दिखने में भयानक रक्षस पर सवार है. कुछ निर्ऋति को देवी भी मानते हैं. अस्रप – रक्तपायी एक राक्षस का नाम भी मूल था.


ज्योतिष में इस स्टार के उदय और स्थिति महीनों के अनुसार बताई गई है. मूल नक्षत्र का वास अलग अलग महीनों में कुछ इस प्रकार कहा गया है –
मार्गफाल्गुनवैशाखज्यैष्ठे मूलं रसातले ।
माघाश्विननभस्येषु शुचौ मूलं सुरालये ।
पौषश्रावणचैत्रेषु कार्त्तिके भूमिसंस्थितम् ।
भूमिष्ठं दोषबहुलं स्वल्पमन्यत्र संश्रितम् ।।
मार्गशीर्ष, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ में मूल नक्षत्र रसातल में वास करता है, आषाढ, भादो, अश्विन और माघ में स्वर्ग में निवास करता है, पौष, श्रावण, चैत्र, कार्तिक महीने में भूमि में निवास करता है. भूमि में निवास करने का ही सबसे बड़ा दोष होता है.

मूल एक बहुत शक्तिशाली नक्षत्र है और इसका प्रथम चरण बहुत इंटेंस है. इसके कारण इस नक्षत्र में जन्मे जातकों का संस्कार करने की परम्परा प्राचीन समय से है.