सभी पुराणों में ग्रहों के छिटपुट स्वरूप का वर्णन मिलता है लेकिन मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन है पुराण में गिना जाता है इस लिए इस पुराण के वर्णन से उस समय के पौराणिकों की ज्योतिष समझ का कुछ अनुमान होता है। अग्नि पुराण में भी नवग्रहों का वर्णन विस्तार में किया गया है। इनके आधार पर ही मन्दिरों में नवग्रहों के विग्रह का विकास हुआ है। मत्स्यपुराण में हुए नवग्रहों के वर्णन में और अन्य ग्रन्थों में हुए वर्णन में सूर्य और चन्द्रमा के स्वरूप में कोई विशेष अंतर नहीं है। अन्य ग्रहों के स्वरूप में जगह जगह वैभिन्यता मिलती है। मत्स्यपुराण में सभी ग्रहों के वाहनों का वर्णन नहीं है, मंगल, शुक्र और गुरु के वाहन का जिक्र नहीं है। । ग्रहों के वाहनों में काफी मतवैभिन्यता है। ग्रहों के मूर्तिशिल्प का विकास बहुत बाद में हुआ। उत्तर और दक्षिण के मन्दिरों में इनके स्वरूप में अंतर मिलता है। केतु का गीध वाहन बताया गया है।

सूर्य का स्वरूप –
पद्मासन: पद्मकर: पद्मगर्भसमद्युति: ।
सप्ताश्व: सप्तर्ज्जुश्च द्विभूज: स्यात् सदा रवि: ।।
सूर्य की दो भुजाएं है, वे पद्मासन पर विराजमान हैं, उनके दोनों हाथों में कमल सुशोभित रहते हैं। उनकी काँटी कमल के भीतरी भाग की सी है और वे सात घोड़ों और सात रज्जुओं से जुते दिव्य रथ पर आरूढ़ हैं।
चन्द्रमा का स्वरूप-
श्वेत: श्वेताम्बरधर: श्वेताश्व: श्वेतवाहन: ।
गदापाणिर्द्विबाहुश्च कर्तव्यो वरद: शशी ।।
चद्रमा गौर वर्ण के, श्वेत वस्त्र धारण किये हुए है और श्वेत अश्व युक्त वाहन पर सवार हैं। उनके दोनों हाथ गदा और वरदमुद्रा से युक्त हैं।
भौम का स्वरूप –
रक्तमाल्याम्बरधर: शक्तिशूलगदाधर: ।
चतुर्भुज: रक्तरोमा वरद: स्यात् धरासुत: ।।
धरणी नंदन मंगल की चार भुजाएं हैं, उनके शरीर के रोयें लाल रंग के हैं, वे लाल रंग के पुष्पों की माला धारण करते हैं
और उनके चारो हाथ क्रमश: शक्ति, त्रिशूल, गदा और वरदमुद्रा से युक्त हैं।
बुध का स्वरूप-
पीतमाल्याम्बरधर: कर्णिकाकारसमद्युति: ।
खडगचर्मगदापाणि: सिंहस्थो वरदो बुध: ।
बुध पीले रंग की माला और वस्त्र धारण करते हैं। उनकी शरीर कान्ति कनेर के पुष्प सरीखी है। वे अपने चारों हाथों में क्रमश: तलवार, ढाल, गदा और वरद मुद्रा धारण किये हुए हैं। तथा सिंह पर सवार रहते हैं।
बृहस्पति और शुक्र का स्वरूप –
देवदैत्यगुरु तद्वत पीतस्वेतौ चतुर्भुजौ।
डंडीनों वरदौ कार्यो साक्षसूत्रकमंडलू ।
देवताओं और दैत्यों के गुरु बृहस्पति और शुक्र क्रमश: पीत और श्वेत वर्ण के होते हैं। उनकी चार भुजाएं हैं, तीन भुजाओं में वे दंड, कमंडलु, जपमाला धारण किये हुए हैं और एक हाथ वरद मुद्रा में है।
शनि का स्वरूप –
इंद्रनीलद्युति: शूली वरदो गृध्रवाहन: ।
बाणबाणासनधर: कर्तव्योऽर्कसुतस्तथा ।।
शनैश्चर की शरीर की कान्ति इंद्रनीलमणि की तरह है, ये गिद्ध पर सवार हैं। इनके हाथ में धनुष बाण, त्रिशूल है और एक हाथ वरद मुद्रा में उठा हुआ है।
राहु का स्वरूप-
करालवदन: खड्गचर्मशूली वरप्रद: ।
नीलसिंहासनस्थश्च राहुरत्र प्रशस्यते ।
राहु का मुख भयंकर है। उनके हाथों में तलवार, ढाल, त्रिशूल है और एक हाथ वरमुद्रा में उठा हुआ है। ये नीलेरंग के सिंह पर सवार हैं।
केतु का स्वरूप –
धूम्रा द्विबाहव: सर्वे गदिनो विकृतानना: ।
गृध्रासनगता नित्यं केतव: स्युर्वरप्रदा: ।
केतु अनेक हैं। उन सबकी दो भुजाएं हैं। उनके शरीर का रंग धूम्रवर्ण का है। उनके मुख विकृत हैं। ये गिद्ध पर आसीन हैं और दोनों हाथों में गदा और वरमुद्रा धारण किये हुए हैं।

