
माहूरगढ़ महाराष्ट्र में माँ रेणुका माता का प्रसिद्द मंदिर है. रेणुका माता की पूजा दक्षिण भारत में विशेष रूप से की जाती है. दक्षिण भारत में इन्हें येल्लम्मा देवी के नाम से भी जाना जाता है. माता रेणुका की पूजा मुख्य रूप से केरल , कर्नाटक , तमिलनाडु , तेलंगाना , आंध्र प्रदेश , महाराष्ट्र में की जाती है. रेणुका जमदग्नि ऋषि की पत्नी और भगवान परशुराम की माता है. माहूरगढ़ रेणुका मन्दिर में देवी के मुख भाग की पूजा की जाती है. ये महाराष्ट्र के अनेक परिवार की ये कुलदेवी है. हर नवरात्रि में यहाँ भव्य लगता है और भक्त दूर दूर से यहाँ दर्शन के लिये आते हैं. माता रेणुका का चेहरा स्वयंभू माना जाता है जो माता अदिति का ही रूप है. ऋग्वेद में उषा को आदितीमुखा कहा गया है. देवी रेणुका का मुख भी रक्ताभ सूर्य की तरह ही लाल है. महर्षि जमदग्नि की शक्ति के रूप में माता रेणुका का सम्बन्ध छिन्नमस्ता से भी है, दोनों हो प्रवर्ग्य कर्म की देवता है. जमदग्नि को छिन्नमस्ता सिद्ध थी जिसे उन्होंने पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर परशुराम को भी प्रदान किया था. महर्षि जमदग्नि ने कुष्मांड हवन और ससर्परी विद्या का प्रचलन किया था. महाराष्ट्र में देवी के साढ़े तीन शक्तिपीठ हैं, माहूर उन्ही में से एक है. मन्दिर के पास ही देव देवेश्वरी में भगवान दत्तात्रेय का मंदिर भी है. ऐसा माना जाता है कि दत्तात्रेय नित्य ही यहाँ भिक्षा मांगने आते हैं. महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत श्रीधर स्वामी की यह कुलदेवी रही हैं.
देवी रेणुका शक्तिपीठ को मातापुर कहा जाता है क्योकि ये देवो की माता अदिति हैं. माता रेणुका के पांच पुत्र थे- 1- रुमण्वान, 2- सुषेण, 3- वसु, 4- विश्वावसु एवं 5- परशुराम. रेणुका का सम्बन्ध प्रमुख रूप से परशुराम से है, यह उनके द्वारा पूजित हैं. इनकी विशेष पूजा द्वितीया तिथि को की जाती है. रेणुका आरती में कहा गया है “द्वितीयेच्या दिवशी चौसठ योगिनी मिलनी हो रेणुका” समर्थराम दास के अनुसार चामुंडा की गर्जना कर जिसकी स्तुति की जाती है वह शक्ति ही रेणुका हैं. माता रेणुका की पूजा शाक्त विधि से ही की जाती है और दुर्गा शप्तशती का ही पाठ हर जगह किया जाता है.
रेणुका माता की कथा :-
रेणुका माता की यह कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार रेणुका माता प्रतिदिन मलप्रभा नदी में स्नान करने जाती थीं और नदी से पानी भरकर लाया करती थी. इसके बाद जमदग्नि ऋषि स्नान करने के लिए जाते थे. स्नान के बाद ऋषि जमदग्नि शिवजी की पूजा अर्चना किया करते थे. एक दिन माता रेणुका को पानी लाते समय देर हो गई. कथा के अनुसार जब रेणुका नदी के पास जल लेने गई, तो वहां उन्होंने एक राजा को अपनी पत्नियों के साथ प्रेम करते देखा. वह इस दृश्य से मोहित हो गई. जमदग्नि ऋषि को उनके मोह से यह आभास हुआ कि उनका ब्राह्मणत्व समाप्त हो गया है. क्रोधित जमदग्नि ने अपने पुत्रों को आदेश दिया कि अपनी माता का सिर तत्काल काट दो. किन्तु उन सभी में से उनके चार पुत्रों ने अपने पिता के इस आदेश का पालन नहीं किया. किन्तु परशुरामजी ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी माता रेणुका का सिर काट दिया. इस प्रकार पिता की आज्ञा का पालन करने पर उनके पिता उनसे बहुत ही प्रसन्न और संतुष्ट हुए और उन्होंने पुत्र परशुराम को वरदान मांगने को कहा.
परशुरामजी ने ये तीन वरदान मांगे 1- माता को पुनर्जीवित कर दो 2- उन्हें अपने मृत होने की स्मृति न रहे 3- सभी भ्राता चेतना-युक्त हो जाए. महर्षि जमदग्नि ने तीनो वर पूरा किया और परशुराम को प्रवर्ग्य से सम्बन्धित यह गूढ़ विद्या प्रदान किया था.