
सनातन धर्म में मार्गशीर्ष पूर्णिमा का बड़ा महत्व बताया गया है. पुराणों में इस पूर्णिमा को व्रत करना दीर्घायु, रोग मुक्ति और सभी सुखो को देने वाला बेहद शुभ माना गया है. इस बार मार्गशीर्ष पूर्णिमा 26 दिसंबर को है. सनातन धर्म के अनुसार, इस दिन गंगा स्नान करने का विधान है. इसके अलावा पूजा, जप-तप और दान भी बड़ा महातम्य बताया गया है. मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने से घर में सुख- समृद्धि का आगमन होता है. इस दिन श्री कृष्ण की विशेष पूजा आराधना करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं.
भगवद्गीता में मार्गशीर्ष को सर्वोत्तम मास कहा गया है “‘मासानां मार्गशीर्षोऽहम्‘ ” इसे भगवान ने अपना स्वरूप बताया है. यह पूर्णिमा मृगशिरानक्षत्र में होती है और सूर्य देव धनु राशि में होते हैं. यह गुरु बृहस्पति की मूलत्रिकोण राशि है और इसी पूर्णिमा से सूर्य का उत्तरायण में प्रवेश होता है. प्राचीन रोमवासी इस पूर्णिमा के बाद ही उत्तरायण मान कर उत्सव मनाते थे क्योंकि इसके बाद दिन बड़ा होने लगाता है. यह कालपुरुष की कुंडली का धर्मभाव होने से इसकी महत्ता सबसे अधिक है क्योंकि धर्म ही सबका आधार है. धर्म ही सबको धारण करता है.
ऐसा माना जाता है इस पूर्णिमा के दिन ही वैदिक सोम का अवतरण हुआ था इसलिए यह देवताओं को अमृतत्व प्रदान करने वाली पूर्णिमा हो गई. यह सोम रोगविमुक्त करता है और दीर्घायु प्रदान करता है इसलिए इस पूर्णिमा की वैदिक काल से विशेष महत्ता है. समुद्र मन्थन भी इसी नक्षत्र में हुआ था.
मुहूर्त –
मार्गशीर्ष पूर्णिमा 26 दिसंबर दिन मंगलवार को पड़ रही है.
पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 26 दिसंबर को सुबह 05 बजकर 46 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानि 27 दिसंबर को सुबह 06 बजकर 02 मिनट पर समाप्त होगी. 26 दिसंबर को दिनभर पूर्णिमा के स्नान-दान का मुहूर्त है.
क्या करें –
- लक्ष्मी सहित भगवान विष्णु की पूजा करें, अच्छे पक्वान्न का भोग तुलसी दल के साथ लगायें और रात्रि जागरण करें .
- माता लक्ष्मी को दुग्ध-गंगा जल में श्वेत पुष्प, दूर्वा, अक्षत सहित अर्घ्य प्रदान करें.
- रात्रि में विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें
- गाय को गुड और घी चुपड़ी रोटी खिलाएं
- चन्द्रमा को भी अर्घ्य प्रदान करना चाहिए.