
मार्गशीर्ष मास का आज से प्रारम्भ हो चूका है. इसे प्राचीन काल में आग्रहण्य कहते थे और ग्रामीण इसे अगहन का महीना कहते थे. इस महीने को आग्रहण्य इसलिए कहते थे क्योंकि अब देवता जागृत हो चूके हैं और सूर्य देव जो विष्णु का प्रतीक हैं वो आगे उत्तरायण होंगे, अपनी उच्च राशि की तरफ बढ़ेंगे. इसको मार्गशीर्ष कहते हैं क्योंकि मृगशिरा नक्षत्र में इसकी पूर्णिमा होती है. मार्गशीर्ष का महीना कृष्ण भक्तों के लिए भी’ विशेष है क्योंकि यह कृष्ण का स्वरूप है. इस महीने में जप, तप और ध्यान का बड़ा महत्व हैं. गीता में लिखा है कि-“मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर” अर्थात – ” मासों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसन्त ऋतु मैं हूँ।”
मार्गशीर्ष महीना भगवान का स्वरूप है क्योंकि इस महीने से दैवी शक्तियों का पृथ्वी लोक पर प्रभाव बढ़ जाता है. इसी महीने के बाद मकर संक्रांति पडती है. पुराणों के अनुसार,भगवान की कृपा प्राप्त करने की कामना रखने वाले श्रद्धालुओं को अगहन मास में धार्मिक नियमों का पालन करना चाहिए.
अगहन मास में जप,तप,ध्यान एवं दान करना शीघ्र फलदाई माना गया है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मार्गशीर्ष माह में भगवान नारायण की विशेष पूजा की जाती है. इस माह में पूजा-पाठ करने से घर में आर्थिक समृद्धि आती है. भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और उनके मंत्रों का जाप करना इस माह में बहुत पुण्यदायी है. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र मार्गशीर्ष माह में जरूर जाप कर लेना चाहिए. संतान से जुडी हर परेशानी को दूर करने के लिए मार्गशीर्ष माह में कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जप करना लाभकारी रहेगा.
इस महीने में लग जाएगा खरमास –
इसी महीने में सूर्य संक्रांति के साथ खरमास लग जायेगा. पंचांग के अनुसार, 16 दिसंबर को सूर्य देव शाम 03 बजकर 58 मिनट पर वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करेंगे. ज्योतिष मान्यता के अनुसार इस खरमास महीने में शादी, विवाह, विदाई, उपनयन, मुंडन आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं.
मार्गशीर्ष माह में पड़ने वाली प्रमुख तिथियाँ –
1-30 नवम्बर को गणपति संकष्टी चतुर्थी
2-8 दिसम्बर उत्पन्ना एकादशी
3-16 दिसम्बर सूर्य की धनु संक्रांति (खरमास प्रारम्भ )
4-22-23 दिसम्बर मोक्षदा एकादशी
5-26 दिसम्बर मार्गशीर्ष पूर्णिमा
6-30 दिसम्बर अखुरठा संकष्टी