Spread the love

एक ही कर्म भिन्न भिन्न परिस्थितियों में अलगअलग तरीके से फलदायी होता है. जिस प्रकार से जब दो स्त्री पुरुष सहमती से सम्भोग करते हैं तो वह पाप नहीं है, लेकिन वहीं बलपूर्वक बलात्कार से करने पर यह पाप कर्म है. वैसे ही कोई ग्रह विभिन्न परिस्थितियों और सम्बन्धों में भिन्न भिन्न फल करता है. एक ही ग्रह अपनी दशा में शादी कराता है और अपनी ही दशा में उसे भंग करता है और जातक के दुःख का मार्ग प्रशस्त करता है. शनि एक जन्मकुंडली में मारक ग्रह है लेकिन वह किसी परिस्थिति में राजयोग दे सकता है या राजयोग को क्रम से बढ़ा सकता है. कर्क लग्न की कुंडली में शनि मारक है लेकिन उसकी दशा में कर्क लग्न की जातिका इंदिरागांधी को राजयोग था. लेकिन फिर उसकी ही दशा में बहुत अशुभ फल भी हुआ था, उनकी हत्या हो गई. बृहस्पति एक मारक ग्रह नहीं है लेकिन पापन्वित होने पर वह मारक बन जाता है जैसे कोई साधु किसी शक्तिशाली क्रिमिनल के प्रभाव में अपना शुभत्व खो देता है और क्रिमनल बन जाता है.

क्रिमिनल एक पापी है लेकिन किसी नेता के सम्बन्ध से वह उसके लिए शुभ फलदायक बन जाता है. उसके सहयोग से नेता कोई बड़ी उपलब्धि कर लेता है. परन्तु वही सम्बन्ध उस नेता के लिए नुकसानदेह भी हो जाता है और उसका राजनीतिक पतन हो जाता है. शुभ का शुभ से सम्बन्ध शुभ होता है. अशुभ का अशुभ से सम्बन्ध अशुभ होता है. कोई अशुभ व्यक्ति भी यदि किसी सत्यधर्मा गुरु के संसर्ग में हो तो उसमे थोड़ा शुभत्व आ जायेगा क्योंकि उस गुरु में शुभत्व की प्रतिष्ठा है. शुभ ग्रह को अशुभ ग्रह से शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि सत्व और सत्य सबसे बली होता है. उसके संसर्ग का उसे शुभ फल प्राप्त होगा. ऐसे ही ग्रहों के साथ है.

ग्रह का अर्थ है जो ग्रहण लगाता है. यह ग्रह 9 ग्रह हो सकते हैं. इसके इतर भूतादि बाहरी ग्रह भी हैं. यह ग्रह कोई मनुष्य भी हो सकता है जिसके सम्बन्ध से ग्रहण लग जाता है और वह किसी के लिए अत्यंत पीड़ादायक होकर मारक हो जाता है. जैसे किसी महिला की कुंडली में उसका पति ही मारक हो जाता है. उसके अत्याचार से आजीज आ कर कारण वह आत्महत्या कर लेती है. ऐसे ही ज्योतिष में ग्रह की दूसरी परिभाषाएं हैं . किसी जातक को किसी ग्रह की दशा में भूतोन्माद, पितृजुष्टोन्माद , नाग दोष से उन्माद, मनोविघात और उससे उन्माद इत्यादि होते हैं. एक भूत या प्रेत भी ग्रह है. पितृदोष से जो उन्माद होता है वह भी ग्रह ही है. वह मन-बुद्धि-चित्त का अधिग्रहण कर लेता है जिससे उन्माद के लक्षण प्रकट हो जाते हैं. इनकी मारकता भी अत्यंत प्रबल होती है और यदि यह जातक को न मारे तो इतना प्रबल कष्ट देने में सक्षम हैं जो जातक के लिए मरण तुल्य ही होता है.

उदाहरण के लिए कोई नेता जो अत्यंत क्रूर और आसुरी सम्पत से सम्पन्न है. वह ऐसा प्रोपगेंडा करता है कि जनता उसके गहरे प्रभाव में घृणा, क्रोध इत्यादि पाप भावों से भर जाती है और वह हत्यारी या आत्मघाती (suicidal) हो जाती है. वह भी एक अशुभ ग्रह है क्योंकि उससे जनता का या किसी वर्ग विशेष का चित्त विनष्ट होकर उन्मादी हो जाता है. यह तुम्हारे लिए भी घातक हो सकता है. जर्मनी में हिटलर ने जर्मन जनता के भीतर यहूदियों के प्रति इतना कूट कूट कर घृणा को भर दिया कि जर्मन आत्मघाती बन गये थे. नाजी पार्टी के अनेकानेक सैनिकों, समर्थकों और नेताओं ने आत्महत्या की थी. भारत में फासिस्ट आरएसएस-भाजपा ने भी ऐसा अधर्म, अज्ञानता और घृणा का प्रचार किया कि जनता पाप प्रभाव में उन्मादी हो गई. इस घृणा के दुस्तर प्रभाव में अनेक मीडिया, ज्योतिषी और बाबा भी आ गये थे और उन्होंने फासिस्ट तन्त्र में अपने दायरे में जितना घृणा को फैला सकते थे उसे फैलाया. हिंदुत्व फासिस्ट तन्त्र में सभी मिलकर जनता के लिए मारक बने.

घृणा एक दुस्तर पाप भाव है, इसमें एक मारक प्रभाव होता है. यह किसी भी समय विनाशक हो सकता है. घृणा और क्रोध एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. यह सब निःसंदेह नेताओं के अशुभ पाप-मारक ग्रहों के प्रभाव में ही होता है. कभी कभी कोई अभिचार कर्म द्वारा भी किसी को पीड़ित करता है. अभिचार अशुभ भाव की उत्पत्ति को ही कहा जाता है. यदि कोई मनुष्य किसी के सिर पर बैठ कर सिर्फ उसमें किसी के प्रति द्वेष/घृणा जैसे पाप भाव भरता है तो उसके प्रभाव में वह व्यक्ति मारक बन जाता है. उस जनित घृणा का वेग प्रभावशाली हो सकता है और वह व्यक्ति किसी की हत्या कर देता है. नाथूराम गोडसे के कान में आरएसएस ने गाँधी के प्रति घृणा का इतना विष भर दिया था कि वह गाँधी के लिए मारक बन गया. किसी ग्रह की मारकता आठ प्रकार की बताई गई है इसलिए मृत्यु 8 प्रकार की होती है.
व्यथा दुखं भयं लज्जा रोगो शोकस्तथैव च । मरणंचापमानं च मृत्युरष्टविधः स्मृतः।।

1-व्यथा अर्थात निरन्तर क्लेशग्रस्त रहना 2- लगातार दुःख से घिरा रहना 3-सदा भयग्रस्त रहना 4- हर जगह लज्जित होना · 5- भयंकर रोग से पीड़ित रहना 6- शोकान्वित होना अर्थात पति/पत्नी या किसी अपने के मरण से शोक में होना 7- अपमानित होना 8-मृत्यु को प्राप्त हो जाना

मलिन भावों से चित्त मलिन हो जाता है और उसके कारण दुःख, भय, क्लेश इत्यादि सम्भव होते हैं. महर्षि पतंजली ने पांच क्लेश आत्मा के लिए हानिकारक बताये हैं -“अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः क्लेशाः” इसमें द्वेष / घृणा बहुत आसुरी स्वभाव की वृत्ति है. इस वृत्ति में प्रबल मारकता है. इस आसुरी वृत्ति का नरेंद्र मोदी ने अभिचारात्मक प्रयोग जनता पर किया जिसके कारण जनता के भीतर यह भाव कूट कूट कर इतना भर गया कि मुस्लिम समुदाय की लिंचिंग होने लगी, घृणा से उनकी मस्जिदों पर हमले होने लगे, उनके सामने हिंदुत्व ठग हनुमान चलीसा पढ़ कर हिंसा का आह्वान करने लगे जबकि अनेक सिर तन से जुदा का नारा देने लगे. यह अशुभ का विस्तार पाप-मारक ग्रहों के सम्मिलित प्रभाव से ही सम्भव है.