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मगल चण्डिका सभी संकटों का नाश करती हैं. जिनकी कुंडली में मंगल नीच का है, जातक मंगला है या मंगल अशुभ है उनके लिए भी मंगल चण्डिका की पूजा फलदायक होती है. मंगल की वजह से विवाह, काम-धंधे में आ रही रूकावट आती है, कर्ज बढ़ता है और जातक घर इत्यादि नहीं ले पाता. मंगल चण्डिका की पूजा से सभी समस्याओं का निवारण होता है. मगल चण्डिका के दो मन्त्र हैं और दोनों ही तांत्रिक मन्त्र हैं, दूसरा भागवत पुराण में वर्णित है-
1-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं’ सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके ऐं क्रू फट् स्वाहा ।।
2-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके हूँ हूँ फट् स्वाहा ।।

। श्री मंगलचंडिका मन्त्र ।।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके I 
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः II 
पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः I
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् II
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः I
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् II 
नीचे दिए भागवत पुराण के यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा के इक्कीस अक्षरों वाले मन्त्र से देवी को पाद्य, अर्घ्य, वस्त्र, पुष्प, नैवेद्य आदि विभिन्न वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए.

‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवि मंगलचण्डिके हुं हुं फट् स्वाहा ।’

यह मन्त्र दस लाख जप करने का विधान है या जितने वर्ण हैं उतने लाख जप करना चाहिए.

ध्यान मन्त्र –
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् I 
सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम् II 
श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् I
वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् II 
बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम् I
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् II 
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् I 
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् II 
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे II 
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने I
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः II

देवी मंगलचण्डिका सोलह वर्ष की यौवना हैं, उनके बिम्बाफल के समान लाल होष्ठ हैं, चम्पा के समान श्वेत वर्ण है, कमल के समान मुख वाली हैं, मुस्कुरा रही हैं, उनकी आंखें खिले हुए नीलकमल के सदृश हैं. सबका भरण-पोषण करने वाली ये देवी सबको सभी वस्तुएं प्रदान करने में समर्थ हैं. संसाररूपी घोर समुद्र में पड़े हुए व्यक्तियों के लिए वे नाव स्वरूप हैं.
मंगल चण्डिका दुर्गा ही हैं इसलिए दुर्गा माता की विधिवत पूजा करके मंगल चंडिका मन्त्र का जप करें और मंगल चण्डिका स्तोत्र का पाठ करें.

मंगल चण्डिका स्तोत्र –
शंकर उवाच
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके I
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II
हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके I 
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके II
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले I 
सतां मंगलदे देवि सर्वेषां मंगलालये II
पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते I 
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् II
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले I 
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि II
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् I 
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे II
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम् I 
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः II
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः I
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम् II
II इति श्री ब्रह्मवैवर्ते मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम् II