
हर नए साल का पहला पर्व सदैव मकर संक्रांति होता है. मकर संक्रांति को हिंदू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक पर्व माना जाता है. जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं अर्थात उत्तरायण होते हैं तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. इस बार मकर संक्रांति रविवार यानी 15 जनवरी को पड़ रही है. 14 जनवरी शनिवार को रात 02:53 बजे सूर्य मकर राशि पर प्रवेश करेगा. मकर संक्रांति सूर्य गोचर के बाद प्रात: सूर्योदय से मनाया जाएगा. मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है. इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए खिचड़ी दान करने का भी विधान है. मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का प्रसाद भी बांटने की परम्परा है.
धर्मशास्त्रों के अनुसार पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं अपने और परिवार के स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं- तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण, तिल से आहुति और तिल का उबटन लगाना. सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है. इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है. इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है. इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं.
मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए. दान में सब कुछ सजा कर रखें-चावल, आटा, दाल, तिल, गुड़ और शब्जी कमसे कम एक परिवार भर के लिए पर्याप्त हो. महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही प्राणोंत्सर्ग परित्याग किया और उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण में हुआ था. इस वजह से ही पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है. ऐसा माना जाता है कि सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है. सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है. इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है. भारत में सूर्य पूजा सबसे प्राचीन है. इच्छवाकू वंश के कुलदेवता सूर्य थे. राजा भगीरथ सूर्यवंशी थे, जिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था. राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था. तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है.
मकर संक्रांति में तिल के फायदे –
पुष्य महीना सर्दी का सबसे सर्द महीना होता है. तिल में गर्मी प्रदान करने का गुण है. तिल के लड्डू इत्यादि से देह गर्म बना रहता है. तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन, मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. एक चौथाई कप या 36 ग्राम तिल के बीज से 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है. तिल में मोनो-सैचुरेटेड फैटी एसिड होता है जो शरीर से कोलेस्ट्रोल को कम करता है,दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए भी यह बेहद फायदेमंद है. तिल में सेसमीन नाम का एन्टीऑक्सिडेंट पाया जाता है जो कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है. तिल लंग कैंसर, पेट के कैंसर, ल्यूकेमिया, प्रोस्टेट कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर होने की आशंका को कम करता है. तिल में कई तरह के लवण जैसे कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और सेलेनियम होते हैं जो हृदय की मांसपेशियों को सक्रिय रूप से काम करने में मदद करते हैं. तिल में डाइट्री प्रोटीन और एमिनो एसिड होता है जो बच्चों की हड्डियों के विकास को बढ़ावा देता है, इसके अलावा यह मांस-पेशियों के लिए भी बहुत फायदेमंद है.
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मकर संक्रांति में गुड के फायदे –
गुड़ सूर्य से जुड़ा हुआ अन्न है. मकर संक्रांति पर सूर्य अपने ही नक्षत्र में होता है. गुड शरीर के खून को साफ करता है और हिमोग्लोबीन काउंट बढ़ाता है जिससे इम्यूनिटी बूस्ट होती है. इस गुण के कारण ही पीरियड्स के दौरान दूध के साथ गुड़ खाने की सलाह दी जाती है. सर्दियां अस्थमा के मरीज़ों के लिए काफी दिक्कत लेकर आती है, हवा में ऑक्सीजन की कमी और बढ़ता प्रदूषण उन्हें सांस लेने में दिक्कत देता है. सर्दियों में खांसी और कफ की वजह से भी सांस लेने में दिक्कत आती है. ऐसे में उनके शरीर को गर्म रखने के लिए और कफ को बाहर निकालने के लिए रोज़ाना काले तिल को मिलाकर लड्डू बनाकर दूध के साथ देंने से लाभ मिलता है. गुड़ पाचन तंत्र को बीमारियों से बचाता है, खाने को जल्दी पचाता है और पेट में गैस नहीं बनने देता, खासकर सर्दियों में होने वाली पेट की परेशानियों से गुड़ राहत देता है.
मकर संक्रांति में खिचड़ी के फायदे –
खिचड़ी एक संतुलित पौष्टिक भोजन है. इसमें पोषक तत्वों का सही संतुलन होता है. चावल, दाल और घी का संयोजन आपको कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन सी, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और पोटेशियम प्रदान करता है. इसमें सब्जियां भी मिला देने से यह रिच हो जाता है. खिचड़ी पेट और आंतों को स्मूथ बनाती है. सुपाच्य और हल्की होने की वजह से ही बीमारी में खिचड़ी खाने की सलाह दी जाती है. इसके सेवन से देह में जमा हुए विषाक्त भी साफ होते हैं. खिचड़ी आयुर्वेदिक आहार का एक मुख्य भोजन है, क्योंकि इसमें तीन दोषों, वत्ता, पित्त और कफ को संतुलित करने की क्षमता होती है. यह क्षमता ही खिचड़ी को त्रिदोषिक आहार बनाती है. शरीर को शांत व डीटॉक्सीफाई करने के अलावा खिचड़ी की सामग्री में ऊर्जा, प्रतिरक्षा और पाचन में सुधार करने के लिए आवश्यक बुनियादी तत्वों का सही संतुलन होता है. ग्लूटेन अर्थात लस से परहेज कर रहे लोगों के लिये भी खिचड़ी एक बेहद फायदेमंद आहार विकल्प होती है. इसमें मौजूद दालों, सब्जियों व चावल में ग्लूटेन नहीं होता है और सभी लोग इसका निश्चिंत होकर सेवन कर सकते हैं. प्रोटीन से भरी दाल में एक प्रकार का अमिनो एसिड नहीं होता इसलिए केवल दाल का सेवन न कर दाल-चावल या खिचड़ी के रूप में खाने का लाभ है.
मकर संक्रांति में गंगा-नर्मदा-गोदावरी स्नान के फायदे –
हमारे शरीर के जलीय भाग या अंश का सूक्ष्मतम रूप प्राण है और जल को प्राणमय बताया गया है। अर्थात जल से प्राणमय ऊर्जा का निर्माण होता है. आयुर्वेदीय ग्रंथों में जल का शोधपूर्ण वर्णन ‘वीरवर्ग’ में है. आयुर्वेद के महान वैज्ञानिक आचार्य आत्रेय के शिष्य हारित ने अपनी ‘हारित संहिता’ में देश की संपूर्ण नदियों के जल पर शोध के क्रम में हिमालय पर्वत से उत्पन्न नदियों के जल को इस प्रकार वर्णित किया कि हिमालय से निकली नदियां पवित्र हैं, देव ऋषियों से सेवित हैं, भारी पत्थर और बालुका से युक्त बहने वाली हैं. उनका जल निर्मल, वात, कफ नाशक है, श्रम निवारक पित्त नाशक तथा त्रिदोष को शांत करता है.
इस प्रकार हिमालय से निकलने वाली सभी नदियां गुणों में समान हैं. 900 नदियां छोटी-बड़ी हिमालयी जड़ी-बूटियों से ओत-प्रोत होने के कारण गंगा बनी है. इसी प्रकार आत्रेय ने चर्मण्यवती, वेत्र वति, पासवती, क्षिप्रा, महानदी, शैवालिनी व सिंधु इन नदियों का जल, वात, पित्त, कफ नाशक, श्रम हारक, ग्लानि निवारक, वीर्यवर्धक बताया है. नर्मदा का जल अत्यंत पवित्र कहा गया है. यह जल घन, शीतल, पित्त नाशक, कफ कारक, वात विकार निवारक, हृदय के लिए हितकारी होता है.
मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव की निम्न मंत्रों से पूजा करनी चाहिए-
ऊं सूर्याय नम: , ऊं आदित्याय नम: , ऊं सप्तार्चिषे नम:
अन्य मंत्र हैं- ऋड्मण्डलाय नम: , ऊं सवित्रे नम: , ऊं वरुणाय नम:
ऊं सप्तसप्त्ये नम: , ऊं मार्तण्डाय नम: , ऊं विष्णवे नम: