
हिन्दू धर्म मकर संक्रांति का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. मकर संक्रांति हिन्दू कलेंडर के माघ महीने में पड़ती है जब सूर्य मकर राशि में गोचर करता है. मकरगत सूर्य उत्तरायण का सूर्य कहा जाता है. उत्तरायण हिन्दू धर्म में देवताओं का अयन कहा गया है इसलिए यह शुभ माना जाता है. भगवद्गीता में उत्तरायण को ब्रह्मलोक की प्राप्ति के महत्वपूर्ण बताया गया है. तुलसी दास के अनुसार – माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई ॥ माघ में जब सूर्य मकर राशि पर जाते हैं तब सब लोग तीर्थराज प्रयाग को आते हैं. इस समय प्रयागराज में माघ मेला का प्रारम्भ होता है और श्रद्धालु यहाँ कल्पवास करते हुए धर्म-कर्म करते हैं.
देश के अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. उत्तर भारत में मकर संक्रांति को खिचड़ी, गुजरात और महाराष्ट्र में उत्तरायण पर्व, दक्षिण भारत में पोंगल, असम में बिहू पर्व और बंगाल में गंगासागर स्नान के रूप में इस पर्व को हिन्दू मनाते हैं. सभी क्षेत्रों की अपनी परम्परा है तदनुसार हिन्दू इस पर्व को मनाते हैं. सनातन धर्म में पुण्य प्रदान करने वाले महत्वपूर्ण चार काल में मकरसंक्रांति सबसे महत्वपूर्ण काल है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य मकर राशि में आते हैं तब मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. इस साल सूर्य देव का गोचर मकर राशि में 14 जनवरी को सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर होगा. गोचर सुबह हो रहा है इसलिए मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही मनाई जायेगी. मकर संक्रांति पर गंगा स्नान और दान आदि पुण्य काल में करने का विशेष महत्व माना गया है.
मकर संक्रान्ति पुण्य काल –
14 जनवरी को मकर संक्रांति का पुण्य काल मुहूर्त सुबह 07:20 बजे से शाम तक है, वहीं मकर संक्रान्ति का महा पुण्य काल सुबह सूर्योदय से ही प्रारम्भ हो जायेगा. 07:30 बजे से दोपहर तक का काल स्नान दान के लिए प्रशस्त होता है. इसमें मुहूर्त देखने की कोई आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह सम्पूर्ण काल ही शुभ होता है.
मकर संक्रांति का स्नान और दान 14 जनवरी को पुण्य काल में पूरे समय तक मान्य रहेगा. महा पुण्य काल में सुबह सूर्योदय के बाद कभी भी स्नान और दान कर लें. मकर संक्रांति सूर्य के समक्ष खड़े होकर डलिया में सभी दान की सभी वस्तुओं को भगवान के नाम मन्त्र ॐ से स्पर्श करना चाहिए और उसे किसी ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए. दान कमसे कम एक व्यक्ति के भोजन की आवश्यक वस्तुओं का होना चाहिए. इसके इतर कम्बल, तिल, गुड इत्यादि का भी दान करना चाहिए.