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हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. साल में कुल 12 मासिक शिवरात्रियाँ पडती है जिसमे फाल्गुन महीने की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को सृष्टि का प्रारम्भ इसी दिन से हुआ था. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग के उदय से हुआ था. इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था और सृष्टि कर्म का प्रारम्भ हुआ. महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी माता पार्वती की पूजा होती हैं और इसी दिन शिव की नगरी काशी में शिव और पार्वती का भव्य विवाह कराया जाता है तथा बारात निकलती है. इस बार यह शुभ तिथि 8 मार्च को पड़ रही है. फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और चतुदर्शी के संधी को ही शिवरात्री कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन शिव की पूजा विशेष फलदायी होती हैं। इस दिन शिवलिंग पर आठों प्रहर जल अपर्ण कर शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

शिवरात्रि मुहूर्त –

हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष महाशिवरात्रि के दिन श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्र के साथ शिवयोग का निर्माण हो रहा है. शिव योग बनने से यह शिवरात्रि विशेष हो गई है. महादेव की निशिथ पूजा के दौरान भद्रा है. रात्री के 09:58 बजे से अगले दिन प्रात: 08:09 तक भद्रा रहेगी. इसी दौरान शिव योग भी रहेगा. इसलिए भद्रा में ही पूजन और सभी कार्यक्रम किये जायेंगे. महाशिवरात्रि जैसे पर्व में समस्त तिथि पुण्यदाई होती है इसलिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती है.

महाशिवरात्रि पूजन –
महाशिवरात्रि के दिन शिव के लिए रात्रि जागरण अवश्य करना चाहिए. इस दिन शिव के लिए व्रत रखना और त्रिकाल पूजन करना विहित है. शिवरात्रि पर भगवान भोले के पूजा में बेलपत्र, आंक, धतूरा, भांग और जंगली बेर जरूर शामिल करना चाहिए क्योंकि भगवान शिव को यह सभी वस्तुएं अतिप्रिय है. आक और कनेर के पुष्प से भगवान शिव का पूजन करने से कामनाएं पूर्ण होती हैं. शिव का गंगा जल या पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए तदुपरांत उन्हें चन्दन लगाना चाहिए और विल्व आदि, अक्षत और काला तिल भी अर्पण करना चाहिए. इससे भगवान भोलेनाथ को बड़ी प्रसन्नता होती है. प्रसन्न होते ही शिव जी सभी तरह की बाधाओं से मुक्ति कर देते हैं. सब कुछ नश्वर है, मुक्ति की प्राप्ति ही परम उद्देश्य है.