
महामृत्युन्जय मन्त्र के कई भेद हैं. सबसे बड़ा मन्त्र महामृत्युंजय मन्त्र है – “ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ” इसकी विधि भी थोड़ी लम्बी है और सभी इसका जप नहीं कर सकते. अरिष्ट निवारण के लिए यजुर्वेद के अनुसार इस मन्त्र का जप दोपहर में करना चाहिए जब रूद्र का सूर्यमंडल में युवा रूप प्रकट होता है. इस त्रयक्षरी मृत्यंजय मन्त्र का भी जप दोपहर में ही करना चाहिए. त्रयक्षरी मन्त्र – ॐ जूँ सः है. इस मन्त्र की महिमा ये हैं कि कोई भी मन्त्र जो फल देने में सक्षम नहीं है यदि उसका इस मन्त्र से सम्पुट कर दिया जाय तो वह भी सजीव होकर फल देने लगता है. कई मन्त्र मृत होते हैं. इस मन्त्र का वर्णन शैव ग्रन्थों में मृत्युंजय मन्त्र के रूप में ही किया गया है. ये भगवान शिव त्रिनेत्र कहे गये हैं. सर्व प्रथम विधि पूर्वक शिव पूजन करें, विल्वपत्र के बगैर शिवपूजन अधुरा रहता है. शिव पूजन के लिए विल्व पत्र जरुर रखें. शिव मन्त्र से ही अभिषेक करें. इस मन्त्र के लिए विनियोग और न्यास दिया जा रहा है –
विनियोग: -ॐ अस्य श्रीत्र्यक्षरात्मकमृत्युञ्जयमन्त्रस्य कहोलऋषिः, देवी गायत्रीछन्दः, श्रीमृत्युञ्जयो देवता, जूँ बीजं, सः शक्तिः, ॐ कीलकं, सर्वारिष्टाल्पमृत्युनाशार्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यास :-
कहोलऋषये नमः शिरसे । देवीगायत्रीच्छन्दसे नमः मुखे । श्रीमृत्युञ्जयदेवतायै नमः हृदि । जूँ बीजाय नमः गुह्ये । सः शक्तये नमः पादयोः । ॐ कीलकाय नमः सर्वाङ्गे ।
इति हृदयादिन्यासः ॥
अथ करन्यासः –
सां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । सीं तर्जनीभ्यां नमः ।
सूँ मध्यमाभ्यां नमः । सैं अनामिकाभ्यां नमः ।
सौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः । सः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥
अथ हृदयादिन्यासः –
सं हृदि । सीं शिरसि । सूँ शिखायै ।
सैं नेत्रत्रयाय । सौं कवचाय हुँ । सः अस्त्राय फट् ॥
फिर इस प्रकार न्यास करके मूलमंत्र ॐ जूँ सः से आठ बार व्यापक न्यास (दोनों हाथों से शिखा से लेकर पैर तक सभी अंगों का ) स्पर्श करें।
अथ ध्यानं –
चन्द्रार्काग्निविलोचनं स्मितमुखं पद्मद्वयान्तः स्थितम्
मुद्रापाशमृगाक्षसूत्रविलसत्पाणिं हिमांशुप्रभम् ।
कोटीरेन्दुगलत् सुधास्नुततनुं हारादिभूषोज्ज्वलम्
कान्त्या विश्वविमोहनं पशुपति मृत्युञ्जयं भावयेत् ॥ १॥

ध्यान इस तस्वीर के अनुसार ही किया जाना चाहिए. भगवान शिव अपने हाथों से ही अमृत कलश से अपना अभिषेक कर रहे हैं, उनके हाथों में अमृत कलश है, अक्षमाला है और एक हाथ ज्ञान मुद्रा में है.
मूलमन्त्रः – ॐ जूँ सः सः जूँ ॐ
इस मन्त्र का तीन लाख जप करें और उस जप का दशांश इत्यादि सम्पन्न हवन करें.