पुराणों के अनुसार बुद्ध विष्णु के ही अवतार हैं. कथा के अनुसार पूर्व काल में जब दैत्यों और असुरों ने देवताओं को पराजित कर दिया. तब हाहाकार करते हुए देवता भगवान विष्णु के पास गये. भगवान विष्णु ने देवताओं को आश्वस्त किया और कहा कि वे स्वयं उनके विनाश का उपदेश करेंगे. भगवान विष्णु समय आने पर शुद्दोधन के पुत्र बन कर महामोहमय बुद्ध के रूप में अवतरित हुए.
उन्होंने अपनी माया से नास्तिक मत का उपदेश कर दैत्यों को मोहित कर दिया. उनके उपदेश से सबने वैदिक मार्ग का त्याग कर दिया और उनके बौध मत का अनुसरण कर विनाश को प्राप्त हो गये. उनके मत का अनुसरण करने वाले दैत्य ही “बौध” कहलाये. उसके बाद महामोहमय ही अर्हत के रूप में प्रकट होकर लोगो को अर्हत बनाया. उनके अनुयायी वेदधर्म से वंचित होकर पाखंडी हो गये और घोर अज्ञानता में चले गये. अर्हतों ने लोगों को नरक में घकेल दिया जिससे सब पतित होकर विनाश को प्राप्त हो गये.
भगवान के स्वधाम गमन के बाद महामोहमय के प्रभाव से अर्हत कलियुग में बलात्कारी, दुराचारी और डाकू हो गये. इन्होने नीच कर्म करके दान प्राप्त किया और वर्णसंकर होकर घोर नरक में गिर पड़े. मनुष्यों का पतन देख कैलाश पर निवास करने वाले भगवान आशुतोष ने आदि शंकर के रूप में अवतार लिया और इन दुराचारी ठगों को वासजनेय अर्थात बृहदारण्यक द्व्रारा बताये मार्ग का उपदेश कर मार भगाया. महामोहमय आर्हत चंडाल देशों में जा कर बसे और वहां चौर्य कर्म कर घोर दुराचार का प्रवर्तन किया. महामोहमय के घोर प्रभाव में डाका-डाकिनी के घृणित तन्त्र मार्ग का अनुसरण कर और भी गहरे नरक में प्रविष्ट हो गये. कलियुग में यही वासजनेय अर्थात बृहदारण्यक सर्वश्रेष्ठ धर्म वेद के रूप में प्रतिष्ठित होगा. कलियुग में वेद की कुछ शखाएं ही प्रमाणभूत मानी जाएँगी.

