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प्रयागराज महाकुम्भ धूर्तों का राजनीतिक प्रपंच बन गया था और उसे राजनीतिक कार्यक्रम बनाया गया था. इस काम में आरएसएस प्लेटफोर्म से जुड़े कथावाचक और पुजारी कार्यरत रहे और झूठा दुष्प्रचार किया कि प्रयाग 2025 का कुम्भ 144 साल बाद लगा है. वास्तव में 144 साल बाद घटित हुए कुंभ का कोई धार्मिक और आध्यात्मिक तर्क नहीं है. महाकुंभ सदैव बृहस्पति के एक संवत्सर चक्र के अनुसार 12 वर्ष में होता रहा है. यही नियम शुरू से रहा है, जब से कुंभ शुरू हुआ. माघ मेला कुंभ से भी पहले से हो रहा है. पूर्व काल में यह माघ मेला ही प्रसिद्ध था जिसमे हिन्दू कल्पवास करते थे और गंगा स्नान कर जप तप करते थे तथा साधु महात्माओं के प्रवचन सुन कर आत्मकल्याण करते थे. यह माघ मेला प्रमुख रूप से गृहस्थों के लिए बनाया गया था ताकि वे अपने संसारिकता से कुछ समय के लिए मुक्त होकर आध्यात्मिक जीवन का अनुभव ले सकें.

माघ महीना सूर्य के मकरसंक्रांति और सूर्य उत्तरायण होने पर शुरू होता है. यह एक पवित्र महीना इसीलिए माना जाता है. माघ का जिक्र बौधकाल के ग्रन्थों में भी मिलता और महाभारत में भी प्रयाग स्नान का माहात्म्य है. लेकिन कुंभ का कहीं भी जिक्र ईसापूर्व के शास्त्रों में नहीं प्राप्त होता है. कुम्भ मेला समुद्र मंथन के पौराणिक आख्यान से मध्ययुग में प्रकट हुआ. इसका कोई शास्त्रीय आधार नहीं है. पुराण धर्म के बारे प्रमाण भी नहीं है. यदि यह श्रुतियों के खिलाफ जाता है तो इसका त्याग किया जाना आवश्यक है.

कुम्भ के 144 वर्ष बाद घटित होने और अमृत गिरने पर अयोध्या के महंथ आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण जी ने सटीक बात कही है. उनका कहना है कि जो काम आपके पूर्वज नहीं कर सके,जो आपकी पीढ़ियाँ नहीं कर पाएंगी, वो करना धर्म नहीं. 144 साल में महाकुंभ सिर्फ प्रचार मात्र है, कुम्भ 12 साल पर ही होता है. पूरा वीडियो देखें –