
वैष्णव धर्म में एकादशी तिथि का सबसे ज्यादा महत्व है इस दिन विष्णु और विश्वेदेव की पूजा की जाती है. यह दिन भगवान विष्णु की पूजा-आराधना के लिए विशेष रूप से समर्पित है. हर साल माघ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी पडती है. इस दिन भगवान विष्णु के शरीर से उत्देपन्वीन देवी ने मुर नामक असुर का वध किया था. यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है. इस बार 20 फरवरी को जया एकादशी है. एकादशी का विधि-विधान से व्रत रखने और विष्णुजी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. साथ ही घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है.
जय एकादशी मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 07 फरवरी को रात 09 बजकर 26 मिनट पर होगा और 08 फरवरी को रात 08 बजकर 15 मिनट पर तिथि समाप्त हो रही है. इस बार 08 फरवरी को जया एकादशी व्रत किया जाएगा.
जया एकादशी की कथा-
सभी एकादशियों की कथा श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई है. जया एकादशी की कथा भी उन्होंने युधिष्ठिर को सुनई थी. कथा के अनुसार किसी समय देवराज इंद्र नंदन वन में अप्सराओं संग विहार कर रहे थे व गंधर्व गान कर रहे थे. गंधर्वों में पुष्पदंत व उसकी कन्या पुष्पवती, चित्रसेन व उसकी स्त्री मालिनी सहित उसके दो पुत्र पुष्पवान व माल्यवान भी उपस्थित थे. माल्यवान पर मोहित गंधर्व कन्या पुष्पवती ने माल्यवान को रूप लावण्य से मोहित कर लिया. गंधर्व इंद्र हेतु गान करने लगे परंतु भ्रमित चित्त होने के कारण उनका गान बेसुर-ताल का होने लगा, इससे कुपित इंद्र ने उन्हे पिशाच होने का श्राप दे दिया. जिसके अनुसार पुष्पवती व माल्यवान ने मृत्यु लोक में पिशाच बन गये और कर्मफल का भोग करने लगे. एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे, उस दिन उन्होंने कुछ नहीं खाया. रात्रि के समय दोनों को बहुत ठंढ़ लग रही थी अत: दोनों ने रात भर एक पीपल के नीचे जागकर भगवान विष्णु का स्मरण किया. इस प्रकार जया एकादशी का व्रत हो जाने से दोनों की पिशाच योनि से मुक्ति मिल गयी. जया एकादशी के दिन व्रत कर विष्णु पूजन करने से सभी संकट से मुक्ति मिलती है, शत्रुओं पर जीत मिलती है व मनोकामनाओं की पूर्ति होती है.