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इस संसार में धर्मयुक्त निष्काम कर्मों को करते हुए सौ वर्ष तक जीवन जीने की इच्छा करनी चाहिए ऐसा वेदों में कहा गया है. यह भी कर्म सिद्धांत मानता है’ कि आयु पुण्य से प्राप्त होती है. कर्म सिद्धांत को ही आधार मान कर ज्योतिष कहता है कि मनुष्य के पुण्य के अनुसार ही उसकी जन्मकुंडली होती है और सुख तथा आयु होती है.  ज्योतिष ग्रन्थों में दीर्घायु के बहुत सारे योग प्राप्त होते हैं. ऐसे ही शतायुषः (100 वर्ष की आयु ) कुछ दस योग दिए जा रहे हैं –

1-यदि पंचम भाव, नवम भाव, केंद्र अथवा अष्टम में तीन ग्रह हों अथवा यदि केंद्र में 5 ग्रह हों तो जातक धनी , सुखी और 100 वर्ष जीता है.

2-लग्नेश, बृहस्पति केंद्र में हों और केंद्र त्रिकोण पाप रहित हो तो जातक सुखमय जीवन पाता है और शतायु होता है.

3-बृहस्पति केंद्र में हो, सूर्य और मंगल लग्न में अथवा अष्टम में हों तो जातक मनुष्यों पर अधिकार बना कर रखता है और सौ वर्ष जीता है

4-लग्नेश अष्टम हो, चन्द्र दसवें में हो और अन्य सभी ग्रह बलवान होकर नवम में हो तो जातक सौ वर्ष की आयु पाता है

5-लग्न, अष्टम में कोई ग्रह न हो, चन्द्रमा तीसरे हो , बृहस्पति केंद्र में स्वगृही हो और नवम में हो तो जातक सौ वर्ष की आयु पाता है और धर्म के साथ सुख पूर्वक जीवन जीता है.

6- केंद्र, त्रिकोण भाव पाप ग्रहों से प्रभावित न हों और लग्नेश तथा बृहस्पति केंद्र में हों तो जातक सुखपूर्वक 100 वर्ष जीता है.

7-अष्टम में शुभ ग्रह हो तथा शुभ ग्रह से दृष्ट हो तथा चन्द्रमा अनिष्ट स्थान 6 या 12 में कहीं हो तो जातक शतायु होता है.

8-स्वगृही क्रूर ग्रह चन्द्रमा के साथ लग्न, छठवें, या अष्टम में हो और राज्यभाव में दो बलवान ग्रह बैठें हों तो जातक 100 वर्ष जीता है.

9-शनि 9th हॉउस में हो या लग्न में हो और चन्द्रमा द्वादश स्थान में हो तो जातक शतायु होता है .

10-उच्च का बृहस्पति लग्न में हो और केंद्र में स्वगृही शुक्र अकेला पाप ग्रह के प्रभाव से विरहित हो तो जातक सौ वर्ष सुख से जीता है.