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जातक को आयुर्दाय है अर्थात उसकी उम्र कितनी है इसका निर्णय कठिन है. ज्योतिष में जातक अल्पायु है, मध्यायु है या पूर्णायु है इसके अनेक योग बताये गये हैं और उन योगों द्वारा भी आयु के बारे में जाना जा सकता है. 32 वर्ष तक अल्पायु, 32 से 65 तक मध्यायु और 65 से 100 तक दीर्घायु माना जाता है. इससे ज्यादा कलियुग में आयु बहुत कम लोगों की होती है. लेकिन विंशोत्तरी दशा के अनुसार 120 वर्ष अधिकतम आयु मानी गई है. इस बाबत अलग अलग मत प्राप्त होते हैं. कलियुग में मनुष्य की आयु क्षीण होती जाएगी ऐसा पुराणों में लिखा गया है. भागवत पुराण में 50 वर्ष की आयु बताई गई है. ज्योतिष के कुछ सामान्य योग हैं जिस पर ध्यान देना चाहिए जैसे त्रिक भावों में लग्नेश के होने, अष्टमेश के नीच राशि में होने या पाप ग्रहों से युक्त होने से ही आयु कम हो जाती है. लग्न , चन्द्रमा, चन्द्र राशि का स्वामी और लग्नेश का पीड़ित होना, अस्त या नीच होकर कमजोर होने मात्र से जातक की आयु अल्प होती है. राशि संधि में जन्म हो, चन्द्रमा गंडमूल नक्षत्र में हो, चन्द्रमा मृत्यु भाग में हो, जन्म के समय मारक दशा हो, षष्टाष्टम स्थिति में स्थित पाप ग्रह की दशा-भुक्ति हो, लग्न में सर्प, निगड़ आदि द्रेश्काण हो, जन्म के समय विष संज्ञक नवांश हो, अमावस्या में जन्म हो, कृष्ण चतुर्दशी के षष्टम भाग में जन्म हो, यमघंट, शूलयोग , वैधृति योग, परिघ इत्यादि योग में जन्म हो और लग्नेश, चन्द्रमा पीड़ित हो और शुभ दृष्टि से रहित हों तो ऐसे में अल्पायु के योग बनते हैं. नीचे अल्पायु के कुछ योग दिए जा रहे हैं –

1-अष्टम स्थान का स्वामी पाप ग्रह से युक्त हो, अष्टम में पाप ग्रह हों तथा पंचम में भी पाप ग्रह हों तो जातक अल्पायु होता है.
2-अष्टम स्थान में पाप ग्रह हो, अष्टम स्थानाधिपति अपनी नीच राशि में हो और लग्नेश निर्बल हो तो अल्पायु होता है.
3-केंद्र में पाप ग्रह हों और उन पर शुभ दृष्टि न हो तथा लग्नेश निर्बल हो
4-यदि लग्नेश निर्बल हो और शुभ ग्रह युत या दृष्ट न हो तथा 6, 8, 12 भावों में पाप ग्रह हों तो जातक अल्पायु हो सकता है.
नीचे दी गई कुंडली एक नवजात शिशु की कुंडली है जिसमे लग्नेश अष्टम में मारकेश के साथ स्थित है और मारकेश मंगल और अष्टमेश में राशि परिवर्तन योग है तथा साथ में द्वितीयेश भी वहां स्थित है. चन्द्रमा शुभ दृष्टि से रहित है और केतु द्वारा अधिगृहित है. अष्टमेश शनि द्वारा दृष्ट है जबकि मंगल अष्टमेश द्वारा दृष्ट है. लग्न पर भी कोई शुभ दृष्टि नहीं है. यह बालक जन्म के तीसरे दिन चन्द्रमा-शनि-मंगल दशा में मृत्यु को प्राप्त हुआ था. अष्टमेश और लग्नेश पाप युक्त हो तो अल्पायु योग बनता है.

5-यदि 3, 6, 9, 11 भाव अपोक्लिम भी पाप ग्रहों से युक्त हो और द्वादश में पाप युक्त या पीड़ित अष्टमेश हो और अष्टम में लग्नेश हो तो भी अल्पायु होता है.
6-अष्टमेश, लग्नेश और दशमेश में दो निर्बल हो और कोई एक ही बलवान हो तो भी अल्पायु होता है.
7-लग्नेश यदि सूर्य का शत्रु हो और लग्नेश शत्रु ग्रह की राशि में शत्रु ग्रह के साथ हो तो अल्पायु होता है.
9-सप्तम भाव के भोगांश से लग्न के भुक्तांश तक में सभी ग्रह शुभ अशुभ हों तो भी जातक अल्पायु होता है.
10-व्ययेश और अष्टमेश निर्बल हों और द्विस्वभाव लग्न में शनि हो तो जातक अल्पायु होता है.