
यह वीडियो एक उदाहरण है जिससे आप समझ सकते हैं कि मध्ययुग के बाद पौराणिक वैष्णवों ने किस प्रकार प्रोपगेंडा किया और जनता को पौराणिक मकड़ जाल में फंसाया. ये महोदय भूत-प्रेतों की गपोड़शंख कथा कहते रहते हैं, कई बार भूत इन पर छलांग लगा जाते हैं. इन्होने बताया था कि ज्योतिषी ने इन्हें बताया था कि शनि महादशा में दरबदर होंगे और हुए भी, तब पुराण इनके काम नहीं आया. लेकिन कोई पुराण पंडित नेहरु जी आत्मा को छटपटाहट से मुक्ति दे सकता है?
नेहरु जी की आत्मा इनके गुरु को खोजती हुई मुक्ति के लिए पहुंची, उन्हें कोई अपने लेवल का विद्वान् सिद्ध नहीं मिला, मिला तो राधा का कलाऊन! जिस प्रकार मनगढंत कहानी ये कहते रहते हैं, पुराण उसी प्रकार शुरू हुआ था. कहानी एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ घूमती विचरण करती, कथा सुनती हुई, किसी संस्कृतनिष्ठ बाबा के यहाँ पहुंचती और वह उसे संकलित कर तारतम्य बैठा कर पुराण बना देता था. इसलिए यदि पुराण को पढ़ें तो उसमे लिखावट की भाषा अलग अलग है. फ़िलहाल ये सुनें !