
कुरुक्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली मंदिर एक ऐतिहासिक मन्दिर बताया जाता है. यह 51 शक्तिपीठों में से एक है, इस मंदिर में माता सती के दाएं पैर का टखना गिरा था. धर्म भूमि पर यह सावित्री शक्ति पीठ भद्रकाली के नाम से विख्यात है. यह प्राचीन मन्दिर कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन के करीब है. यह स्टेशन मुख्य दिल्ली-अंबाला रेलवे लाइन पर स्थित है. दिल्ली कुरुक्षेत्र से 160 किलोमीटर की दूरी पर है. ट्रेन से 3 घंटे का रास्ता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध से पहले, भगवान कृष्ण के साथ पांडवों ने यहां भद्रकाली की पूजा की थी. अर्जुन ने भी यहाँ विशेष पूजा की थी. युद्ध में विजय के लिए कृष्ण ने अपने रथों के घोड़ों को दान दिया था. उस समय से ही यहां घोड़े अर्पित करने की परंपरा चली आ रही है और श्रद्धालु आज भी यहां सोने, चांदी और मिट्टी के घोड़े अर्पित करते हैं. यहां पर प्रणव मुखर्जी व देवी प्रतिभा पाटिल सिंह समेत कई राष्ट्रपतियों व अति विशिष्ट व्यक्तियों ने पूजा अर्चना की है और घोड़े दान किये हैं.
पुराणों के अनुसार यहीं पर कृष्ण का मुंडन संस्कार हुआ था. इस मन्दिर में श्री कृष्ण की बचपन से आस्था रही है. इस मन्दिर में देवी सावित्री नाम से स्थित हैं और शिव स्थाणु कहे गये हैं. यहाँ सबसे पहले स्थाणु शिव का दर्शन और पूजन करने की परम्परा है फिर देवी का दर्शन किया जाता है. यहाँ नवरात्रों में बहुत भीड़ होती है. यहाँ मन्दिर के पास ही द्वैपायन सरोवर है जहाँ ग्रहण पर लाखों लोग स्नान करते हैं. तीर्थों में कुरुक्षेत्र को काशी की तरह है पवित्र माना गया है. पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण अपने बन्धु बांधवों के साथ यहाँ सूर्य ग्रहण पर स्नान करने आये थे. यह एक सिद्ध शक्तिपीठ कहा गया है. यहाँ पूजन दर्शन से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.