
श्री कृष्ण की भगवद्गीता के इतर दो और गीता उनके द्वारा और कही गई है. भगवद्गीता के बाद पुराण काल में दो गीता और लिखी गई. लेकिन अर्जुन से सम्बन्धित तीन गीता में, दो भगवद्गीता और उत्तरगीता महाभारत का हिस्सा है . भागवत में उद्धव को कही गई उद्धवगीता है. भगवद्गीता प्रसिद्ध होने के बाद अनेक गीता लिखी गई जैसे रामायणी सम्प्रदाय ने मध्य युग में बहुत बाद राम द्वारा कही गई रामगीता लिखी जो आध्यात्म रामायण में मिलती है. अष्टावक्र गीता इत्यादि अद्वैत वेदांत की गीता, आदि शंकराचार्य द्वारा अद्वैत वेदांत की प्रतिष्ठा के बाद लिखे गये ग्रन्थ हैं. उत्तरगीता महाभारत का हिस्सा है लेकिन इस गीता में कृष्ण का नाम प्रयोग नहीं किया गया है बल्कि केशव या विष्णु का प्रयोग हुआ है. इसमें प्रमुख रूप से ज्ञान मार्ग का अर्थात अद्वैत वेदांत का प्रवचन किया गया है.
उत्तर गीता के बारे में कहानी यह है कि अर्जुन राजपाट में बहुत व्यस्त हो गये और भोगविलास करने लगे. उनकी भगवद्गीता के उपदेश की स्मृति जाती रही. अपनी स्मृति को पुन: नया करने के लिए अर्जुन ने कृष्ण से एक बार और भगवद्गीता का उपदेश करने के लिए कहा. लेकिन भगवद्गीता का उपदेश किसी देश-काल में ही सम्भव था, वह बार बार नहीं कहा जा सकता है. तब श्री कृष्ण ने संक्षिप्त में योग, अद्वैत वेदांत इत्यादि का उपदेश किया. यही उपदेश उत्तरगीता है.
उत्तर गीता के निम्नलिखित चार श्लोकों में श्री कृष्ण ने पृथ्वी लोक से लेकर सत्य लोक तक के सभी सात लोकों भू-लोक, भुवः लोक, स्वः लोक, तपः लोक, महः लोक, जनः लोक और सत्यम लोक की स्थिति मनुष्य देह में नाभि से मूर्धा तक में अवस्थित बताया है. अर्थात सभी लोक मनुष्य की देह में ही स्थित हैं इन्हें बाहर खोंजने की जरूरत नहीं है. नरक और स्वर्ग इस देह से ही भोगा जाता है.
भूलोकं नाभिदेशं तु भुवर्लोकं तु कुक्षितः । हृदयं स्वर्गलोकं तु सूर्यादिग्रहतारकाः ॥ २९॥ सूर्यसोमसुनक्षत्रं बुधशुक्रकुजाङ्गिराः । मन्दश्च सप्तमो ह्येष ध्रुवोऽतः स्वर्गलोकतः । हृदये कल्पयन्योगी तस्मिन्सर्वसुखं लभेत् ॥ ३०॥ हृदयस्य महर्लोकं जनोलोकं तु कण्ठतः । तपोलोकं भ्रुवोर्मध्ये मूर्ध्नि सत्यं प्रतिष्ठितम् ॥ ३१॥