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वैदिक ज्योतिष में वर्ग कुंडलियों का विशेष महत्व है. जीवन के विविध पहलुओं को देखने के लिए इन वर्ग कुंडलियों की सहायता ली जाती है. ये वर्ग कुण्डलियाँ सूक्ष्म होती हैं इसलिए जन्म समय का शुद्ध होना आवश्यक है. प्रमुख वर्ग कुंडलियो में होरा, नवमांश, सप्तांश, द्रेष्काण, दशमांश तथा द्वादशांश को माना गया है. वर्ग कुंडलियों में विंशांस, त्रिशांश और अन्य सूक्ष्म कुंडलियाँ भी महत्वपूर्ण हैं. महर्षि पराशर के अनुसार विन्शांश कुंडली उपासना के लिए देखी जाती है. ” उपासनाया विज्ञानं साध्यं विंशति भागके.” यहाँ उपासना का अर्थ है ईश्वर उपासना और साधना. दूसरे अर्थों में सांख्य और कर्म योग को भी उपासना ही कहा गया है. उपासना संस्कृत के उप+अस्+ल्युट् प्रत्यय से बनता है जिसका अर्थ है- ईश्वर के समीप बैठना. यह उसी प्रकार है जैसे उपनिषद का अर्थ है -ब्रह्म विद्या के लिए गुरु के समीप बैठना.

विंशांश कुंडली से जातक के धार्मिक और आध्यात्मिक झुकाव के बारे में जाना जा सकता है. इस वर्ग कुंडली का उपयोग जातक की जीवन के विशेष क्षेत्रों जैसे संगीत, नृत्य, खेलकूद इत्यादि में सफलता के लिए भी देखा जाता है. संगीत, नृत्य आदि भी साधना हैं इसलिए उपासना के अंतर्गत ही आते हैं इसलिए इसका उपयोग किया जाता है. योग कर्म की कुशलता है “योग: कर्मसु कौशलम”.

 आध्यात्मिकता एवं धार्मिक झुकाव के लिए डी-20 चार्ट में शुभ एवं अशुभ योगों को देखें. जितने अधिक शुभ योग, उतनी ही अधिक आध्यात्मिकता एवं धार्मिकता की उन्नति.

– डी-20 में लग्न/लग्नेश, पंचम/ पंचमेश, नवम/नवमेश, दशम और दशमेश का विश्लेषण करना चाहिये. द्वादश भाव भी देखना चाहिए क्योंकि यह मुक्ति का भाव है.

– सूर्य-चन्द्र एवं शनि बली हो तो बेहतर क्योंकि शनि तपस्या का ग्रह है.

-नवम भाव और पंचम भाव का अच्छे से विश्लेषण करना चाहिए. लग्नेश खराब जगह और अशुभ प्रभाव में हो तो सब खराब हो जाता है. आध्यात्मिकता एवं धार्मिकता की उन्नति में सभी हॉउस की भूमिका होती है. मसलन साहस और पराक्रम न हो तो कर्म में सिद्धि नहीं मिल सकती. वाणी का भाव दूषित हो तो आध्यात्मिकता एवं धार्मिकता होगी लेकिन जातक उसका उपदेश ठीक से नहीं कर पायेगा. उसका बेहतर गुरु होना सम्भव नहीं है. आध्यात्मिकता की उपलब्धि मनुष्य की उच्चतम अभिव्यक्ति है इसलिए सभी भाव और ग्रह महत्वपूर्ण हैं. यह कारण है कि अवतारों की कुंडली में सभी ग्रह उच्च के होते हैं. रामकृष्ण परमहंस की कुम्भलग्न की कुंडली में 5 ग्रह उच्च के हैं. लग्न स्वामी, नवमेश, पराक्रमेश, राहु और केतु. पंचमेश लग्न में गुरु दृष्ट है. इस तरह देखें तो आध्यात्मिक जीवन से जो मुक्ति मिलती है उसके लिए सभी ग्रहों का अच्छा होना आवश्यक है क्योंकि यह सबसे दुर्लभ चीज है.

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