शनि-सूर्य की पौराणिक कहानी भी ज्योतिषीय सन्दर्भ लिए हुए है. पहले मैंने कई लेखों में बताया है कि पुराणों में ज्यादातर कथाओं के ज्योतिष सन्दर्भ के कारण ही उसका रहस्य है और यह पुराण लिखने वाले बाबाओं की तपस्या या उनके प्रज्ञा चक्षु का परिणाम नहीं है. स्कंदपुराण के काशी खंड में वर्णित एक कथा के अनुसार सूर्यदेव का विवाह दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुआ था. संज्ञा अपने पति सूर्यदेव के तेज से काफी परेशान रहती थीं. सूर्य के तेज को न सहन कर पाने से परेशान होकर संज्ञा अपने पिता के पास गईं और सब बताया. लेकिन उनके पिता ने उन्हें सूर्य लोक वापस जाने का आदेश देते हुए कहा कि अब पति का घर ही उनका घर है. कुछ दिन बाद संज्ञा के गर्भ से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना का जन्म हुआ. उसके बाद संज्ञा ने सूर्य देव से दूर रह कर सूर्य के तेज को कम करने का विचार किया. सूर्य के तेज को सहन करने के लिए संज्ञा ने अपनी हमशक्ल सवर्णा नाम की छाया को प्रकट किया और अपने बच्चों की देखरेख की जिम्मेदारी उन्हें सौंपकर स्वयं तपस्या करने चली गईं. सवर्णा तमोगुणी छाया थी इस कारण उस पर सूर्य देव के तेज का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता था. छाया को संज्ञा समझ सूर्य देव आनंद से विचरण करने लगे. कुछ समय बाद सूर्य देव और सवर्णा से तपती, भद्रा और शनि का जन्म हुआ. संज्ञा में सत्व था तो शुभगुणों वाली सन्तति हुई, छाया में तमस था तो क्रूर संताने उत्पन्न हुईं.
शैव पुराण में यह ज्योतिष से सम्बन्धित कथा है इसलिए कथा के अनुसार सवर्णा भगवान शिव की बड़ी भक्त थीं( ब्रह्म पुराण में शनि देव कृष्ण के भक्त हैं). जब शनि देव उनके गर्भ में थे तब वह महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करना शुरू कर दिया. उनकी तपस्या बहुत कठोर थी. सवर्णा के भूख प्यास, धूप-गर्मी प्रभाव शनि पर भी पड़ा और जब शनि का जन्म हुआ तो शनि देव का रंग काला निकला. जब शनि देव का जन्म हुआ तो स्वर्णा उन्हें लेकर सूर्य देव के पास गईं. काला रंग देखकर सूर्यदेव को संदेह हुआ कि उनकी सन्तान काली नहीं हो सकती. उन्होंने कहा शनिदेव उनकी संतान नहीं हैं और सवर्णा को बहुत अपमानित किया.
अपनी मां सवर्णा का अपमान देखकर शनि देव को क्रोध आ गया और तभी शनि की क्रोधपूर्ण दृष्टि से सूर्य को देखा तो और सूर्यदेव भी काले पड़ गए. सूर्य का रथ रुक गया. परेशान होकर सूर्य देव भगवान शिव के पास गये. भगवान शिव ने सूर्य देव को गलती का एहसास कराया और फिर समझौता हुआ. सूर्य देव का रंग पुन: वैसा ही हो गया. इसी घटना के बाद से शनि-सूर्य दुश्मन हो गये.
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि और सूर्य एक ही घर में हों या आमने सामने हों तो उस व्यक्ति की अपने पिता से कभी नहीं बनती और दोनों में कलह बनी रहती है. यदि सूर्य -शनि सप्तम में हों तो पति-पत्नी में नहीं बनती, नवम-दशम में हो तो पिता से शत्रुता होती है. कथा में यह बताया गया है कि सूर्य दृष्टि इतनी खराब है कि सूर्य जैसा प्रकाशमान ग्रह भी काला पड़ जाता है अर्थात दूषित हो जाता है. शनि सूर्य की राशि में हो तो ज्यादातर मामले में जातक की पिता से नहीं बनती या पिता को पसंद नहीं करता. सिंह लग्न में शनि मुख्य मारकेश होता है, वहीं शनि की मूलत्रिकोण राशि के कुम्भ लग्न में सूर्य मारकेश होता है. शनि सूर्य के नक्षत्रों में ज्यादातर अशुभ फल देता है.
सूर्य और शनि दोनों ही क्रूर ग्रह हैं लेकिन एक तमोगुणी पाप ग्रह है, दूसरा सत्वप्रधान है. ऐसे में इनकी क्रूरता के कारण इनकी युति अशुभ स्थान में अर्थात दु:स्थान में ही कुछ शुभ परिणाम देती है परन्तु इनके पापत्व के फल की कोई गारंटी नहीं, यह निर्भर करता है कुंडली के योगों पर. प्रकाश और अंधकार का विरोधी स्वभाव होता ही है. सूर्य-शनि आमने सामने 180 डिग्री पर हों तो क्या कर सकते हैं इसे इस चार्ट से देखें, यहाँ जब ट्रांजिट में ही दोनों आपने सामने आये तो जातक की मृत्यु हुई. यहाँ भी एक अमेरिकन लड़ाके की कुंडली में ओपोजिशन का वैसा ही फल है. दोनों एकदूसरे की क्रूरता और अशुभत्व में वृद्धि कर देंगे, यदि शनि मारक होगा तो सूर्य के कारण उसकी मारकता और बढ़ जाएगी. दोनों की युति राजयोग देने वाली भी होती है, यदि ये दशम में हों और योग अच्छे हों तो डिक्टेटर बना सकते हैं..

