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वैदिक ज्योतिष में अनेक प्रकार के अशुभ योग और दोष का वर्णन मिलता है. शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के योग लेकर मनुष्य जन्म लेता है. शुभ योगो में उसकी उन्नति और उसे अनेक प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं जबकि अशुभ योगों से उसके जीवन में अनेकानेक दुःख और संकट आते रहते हैं. कुछ जन्म दोष होते हैं जिनका बड़ा खराब प्रभाव जातक के जीवन पर पड़ता है जैसे गण्डान्त, अमावस्या, चतुर्दशी इत्यादि में जन्म होना, इसी प्रकार त्रिखल दोष एक खराब जन्म दोष है. यह दोष मातापिता के पाप कर्मों के कारण ही होता है. त्रिखल दोष को त्रीतर दोष भी कहते हैं. यह दोष मुख्यत: दो प्रकार को होता है- जब किसी घर में तीन पुत्रियों के बाद पुत्र संतान का जन्म हो या तीन पुत्रों के बाद पुत्री संतान का जन्म हो तो त्रिखल दोष होता है. पहला दूसरे की अपेक्षा शुभ फल देने वाला है जबकि दूसर अत्यंत अशुभ फल देता है. इन दोनों प्रकार के जन्म से पितृकुल और मातृकुल को कष्ट होता है लेकिन पहला उतना अशुभ नहीं होता है.

पराशर ऋषि के अनुसार –
अथाsन्यत स्मप्रवक्ष्यामि जन्मदोषप्रदं द्विज।
सुतत्रये सुताजन्म तत्त्रये सुतजन्म चेत ।।
तदाsरिष्टभयं ज्ञेयं पितृ-मातृकुलद्वये ।
तत्र शांतिविधिं कुर्यात वित्तशाठ्यं विवर्जितं ।।

तीन पुत्र के बाद पुत्री जन्म का फल

यदि किसी के घर में तीन पुत्र संतान के बाद कन्या का जन्म हुआ हो तो यह शुभ संकेत माना जाता है. जिस दिन से कन्या का जन्म होता है उसी दिन से घर की उन्नति शुरू हो जाती है. यदि घर के मुखिया के पास आजीविका का कोई साधन ना हो तो पुत्री जन्म के बाद से उसे आय के साधन प्राप्त होना शुरू हो जाते हैं. व्यापार इत्यादि में वृद्धि होना शुरू हो जाती है. लेकिन इस प्रकार की कन्या का जन्म उसकी माता के लिए शुभ नहीं होता है. कन्या जन्म के बाद से माता शारीरिक रोगों से पीड़ित हो जाती है. उसे बार-बार बीमारियां घेर लेती हैं, एक बीमारी दूर होते ही दूसरी शुरू हो जाती है अर्थात उसकी रोग मुक्ति नहीं होती.

तीन पुत्रियों के बाद पुत्र जन्म का फल

तीन पुत्रियों के जन्म के बाद यदि पुत्र का जन्म हुआ हो तो यह उस बच्चे के पिता और परिवार के लिए बेहद अशुभ होता है. पुत्र के जन्म के बाद से उसके घर में मुसीबतों का प्रारम्भ हो जाता है, लगातार कोई न कोई परेशानी आने लगती है. पिता के काम धंधे पर असर पड़ता है और उसे आर्थिक हानि तथा कर्ज होता है. कार्यों में रूकावटें आती हैं. ऐसे पुत्र के जन्म से पिता तथा नाना के पक्ष को भय, रोग एवं धनहानि होती है. पिता को लगातार मानसिक तनाव बना रहता है और उसे बीमारी से दैहिक कष्ट की प्राप्ति होती है. इस दोष में जन्में पुत्र को भी जीवन में कई बार मृत्युतुल्य कष्टों का सामना करना पड़ता है.

त्रिखल दोष के उपाय –

जब त्रिखल दोष हो तो इसका निवारण करवाना अत्यंत जरूरी है. यह उपाय जाननाशौच की निवृत्ति के बाद किया जाता है अर्थात जब जन्म का सूतक खत्म जाता है. इसके लिए शुभ मुहूर्त में पति-पत्नी शुद्ध आसन पर पूर्वाभिमुख होकर, संकल्प पूर्वक आचार्यों का वरण करे. उसके उपरांत विधिवत गणपति पूजन, नवग्रह पूजन आदि करवाये. उसके बाद धान की ढेरी पर कलश स्थापना करते हुए उसके ऊपर पर ब्रह्मा-विष्णु-शिव और इंद्र की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करके पूजन करे और रूद्र सूक्त का पाठ करवाए. आचार्य घी, तिल, तथा चरु से चारो देवताओं के वैदिक मन्त्रों से हवन करवाए और 1008 आहुति दे. पूजन के उपरांत पूर्णाहुति करके जातक परिवार सहित कलश के जल से अभिषेक करे और शांति पाठ करे. आचार्यों को यथा शक्ति दक्षिणा प्रदान करे और ब्राह्मण भोजन करवाए. ब्राह्मण भोजन कराने ले बाद कास्य के पात्र में घी लेकर उसमे अपना मुख देखे और उसे दान कर दे. त्रिखल पूजा में तीन प्रकार के अन्न्, तीन वस्त्र, तीन धातु (सोना, चांदी, तांबा) तथा साथ में गुड़, एक लाल पर्ण व नारियल और दक्षिणा सहित संकल्प पूर्वक पुत्र/पुत्री और उसकी माता का हाथ लगवा कर ब्राह्मण को दान करना चाहिए.