हिन्दू धर्म में पंचोपचार, दसोपचार, षोडशोपचार के साथ भगवान की पूजा की जाती है, इसके इतर राजोपचार से भी पूजा की जाती है. पंचोपचार में गंध , फूल , धूप , दीप और नैवेद्य से ही पूजन कर लेते हैं. षोडशोपचार पूजन में 16 उपचार से पूजा की जाती है. इसमें पाद्य, अर्घ्य, आमचन, स्नान, वस्त्र, उपवस्त्र (यज्ञोपवीत या जनेऊ) आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, स्तवन पाठ, तर्पण और नमस्कार किया जाता है. पंचोपचार पूजन पर्याप्त माना जाता है, विशेष पर्वों, उत्सव में षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए. पंचोपचार का वास्तविक अर्थ क्या है ? यहाँ समझें –
जल अर्पण करने से अर्थ है अपना समग्र श्रद्धा देवसत्ताओं, सत्प्रवृत्तियों, श्रेष्ठताओं के समुच्चय को समर्पित करना.
गंध-अक्षत से तात्पर्य है- हमारा जीवन सद्गुणों की सुगंधि से भरा पूरा हो जैसा देव सत्ताओं का होता है तथा कर्म अक्षत हों. अक्षत अर्थात्- जो संकल्प लें, वे कभी क्षत न हों, टूटें नहीं. निष्ठा श्रेष्ठता के प्रति अटूट बनी रहे.
पुष्प से अर्थ है- खिले हुए फूल का उल्लास अपने जीवन व्यवहार में सदैव समाहित रखेंगे. देवताओं के चरणों में खिला पुष्पित फूल ही भेंट चढ़ाया जाता है. कभी उदास न रह सदैव प्रसन्नता बिखरेंगे.
धूप–दीप समर्पण से अर्थ है श्रेष्ठ कार्यों के लिए तिलतिल कर जलेंगे-सर्वत्र अपने सत्कार्यों की सुगंध का विस्तार करेंगे.
नैवेद्य का अर्थ है- अपने श्रम-साधनों का एक अंश देव-सत्ताओं को समर्पित करते हैं-समाज के हर पुण्य कार्य के लिए इसे नियमित रूप से अर्पित करते रहेंगे. हिन्दू धर्म में हर कर्मकाण्ड के पीछे प्रेरणात्मक शिक्षण समाहित है.

