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कालसर्प योग भारतीय ज्योतिष के सभी प्रसिद्ध क्लासिक ज्योतिष की किताबों में अनुपस्थित है, इसका कोई जिक्र नहीं है. कालसर्प योग का  ज्योतिषियों ने हालिया में अविष्कार किया है. कालसर्प योग मूलभूत रूप से राहु-केतु के अक्ष पर निर्मित बताया गया है. राहु और केतु छाया ग्रह हैं, इनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है. ये दोनों ग्रह  हमेशा एक दूसरे के सापेक्ष 180 डिग्री पर होते हैं अर्थात आमने सामने रहते हैं. यदि राहु कुंडली के दूसरे भाव में स्थित है तो केतु हमेशा आठवे भाव में स्थित होगा. अब यदि किसी की कुंडली में राहु 2nd हॉउस में है और केतु  8th हॉउस में है और सभी ग्रह इनके  axis के एक तरफ स्थित हों अर्थात सभी ग्रह 3, 4, 5, 6, 7 हॉउस में हों तो कालसर्प योग नामक  दुर्योग बन जायेगा.

जब सभी ग्रह पांच हॉउस में होते हैं तो पाश योग बनता है. कालसर्प योग के जातक कभी न कभी अपने जीवन में जेल अवश्य जाते देखे गये हैं. यह पाश योग का भी प्रभाव होता है. जब सभी ग्रह 7 राशियों में हों अर्थात यदि काल सर्प योग में एक एक ग्रह राहु केतु के साथ भी हों  या 5 में ही हों तब सूर्य और चन्द्र भी इसमें होंगे. ज्योतिष की दृष्टि से सूर्य के करीब जो ग्रह होंगे वो अस्त होंगे और चन्द्रमा का पक्ष बल कम होगा. चन्द्रमा का सबसे महत्वपूर्ण बल उसका पक्ष बल ही होता है. ऐसे में जातक के लिए कई तरह की समस्याएं खड़ी हो सकती हैं. यदि यह एक्सिस कुछ तिथियों में कुंडली में बने मसलन कृष्ण चतुर्दशी, अमावस्या, शुक्ल प्रतिपदा तो चन्द्रमा बुरी तरह प्रभावित होगा और जातक के लिए बुरा फल प्रदान करने वाला होगा. प्राचीन ज्योतिष विद्वान् मानते हैं कि चन्द्रमा के बलवान होने से सभी ग्रह बली होते हैं, चन्द्रमा ही फलभोग कराता है. राहु-केतु एक्सिस के भीतर सभी ग्रहों के होने से शनि की दृष्टि से भी अनेक ग्रह बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं. इस दुर्योग में शनि कई प्रकार से पापकर्तरी योग का भी निर्माण कर देगा जो जातक के लिए बहुत बुरा कर सकता है.

काल सर्प योग की स्थिति में कुंडली में बने राजयोग के खराब होने या निरस्त होने की प्रबल सम्भावना रहती है. जब सभी शुभ-शुभ ग्रह पांच या सात राशियों में होंगे तो शुभ ग्रह पाप ग्रह से युत हो सकता है, मंगल-शनि दृष्टि सम्बन्ध द्वारा शुभ ग्रहों के शुभत्व को नष्ट कर सकते हैं, ग्रह दुश्मन के हॉउस में स्थित हो सकता है, कुछ ग्रह नीच अवस्था में हो सकते हैं. बृहस्पति जो भारतीय ज्योतिष में सबसे शुभ ग्रह होता है और धन, धर्म, विद्या और सन्तान का प्रमुख कारक है, उसकी पूर्ण दृष्टि किसी ग्रह पर नहीं होगी, पंचम दृष्टि की सम्भावना रेयर ही बनेगी. ऐसे में कुंडली शुभत्व से व्यतिरिक्त होगी. काल सर्पयोग की ऐसी परिस्थिति में जातक का राजयोग या कोई शुभ योग यदि चल भी जाय तो बुरे परिणाम ही लाते है.
बारह भावों में राहु केतु की स्थिति से 12 प्रकार के काल सर्पयोग बताये जाते हैं –

1. अनंत कालसर्प योग

यदि राहु प्रथम भाव में स्थित हो और केतु सप्तम भाव में, और उनके अक्ष के एक ही तरफ सारे अन्य ग्रह स्थित हो जाएँ तो अनंत कालसर्प योग बनता है.
2. कुलिक कालसर्प योग

यदि राहु दूसरे भाव में और केतु अष्टम भाव में स्थित हो तथा उनके बीच सारे अन्य ग्रह स्थित हो जाएँ तो कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है.
3-बासुकी कालसर्प योग

जब कुंडली के तृतीय भाव में राहु और नवम भाव में केतु स्थित हों और उनके बीच सारे ग्रह आ जाएँ तो इस योग को बासुकी कालसर्प योग कहा जाता है.

4. शंखपाल कालसर्प योग

यदि राहु चतुर्थ भाव में स्थित हो और केतु दशम भाव में और बाकी सारे ग्रह इन दोनों के अक्ष के एक ही तरफ स्थित हो जाएँ तो ऐसी स्थिति में शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण होता है.

5-पद्म कालसर्प योग

जब कुंडली के पंचम भाव में राहु स्थित हो और ग्यारहवें भाव में केतु और बाकी सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तो इस स्थिति में पद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा व्यक्ति अपने पूर्वजों (यथा दादा,परदादा आदि) के शाप से शापित होता है या फिर उसके किसी पूर्वज ने ही उसके रूप में जन्म लिया होता है.

6. महापद्म कालसर्प योग

जन्मकुंडली के छठे भाव में राहु स्थित हो और बारहवें भाव में केतु हो और बाकी सारे ग्रह इनके अक्ष के एक ही तरफ स्थित हो जाएँ तब महापद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है.

7-तक्षक कालसर्प योग

यदि कुण्डली के सातवें भाव में राहु और प्रथम भाव में केतु स्थित हो एवं अन्य सभी ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक तरफ ही आ जाएँ तब तक्षक कालसर्प योग बनता है.

8. कर्कोटक कालसर्प योग

यदि जन्मकुंडली के आठवें भाव में राहु और दूसरे भाव में केतु स्थित हो और इनके अक्ष के एक ही ओर बाकी सारे ग्रह स्थित हो जाएँ तब कर्कोटक कालसर्प योग बनता है.

9. शंखनाद कालसर्प योग

जब जन्मकुंडली के नौवें भाव में राहु एवं तीसरे भाव में केतु हो और अन्य सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तो ऐसे योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते हैं.

10. घातक कालसर्प योग

यदि कुंडली के दशम भाव में राहु एवं चतुर्थ भाव में केतु हो और बाकी सारे ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ आ जाएँ तो घातक कालसर्प योग का निर्माण होता है.

11-विषधर कालसर्प योग

जब कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु और पंचम भाव में केतु हो और अन्य सभी ग्रह इनके अक्ष के एक तरफ हों तब ऐसे योग को विषधर कालसर्प योग कहेंगे.

12-शेषनाग कालसर्प योग

यदि जन्मकुंडली के बारहवें भाव में राहु एवं छठे भाव में केतु स्थित हो और अन्य सभी ग्रह राहु-केतु अक्ष के एक ही तरफ स्थित हों तब इस योग को शेषनाग कालसर्प योग कहते हैं.

काल सर्प योग के दुष्परिणाम –

काल सर्प योग जातक के पूर्व जन्म में किये गए किसी जघन्य अपराध या शाप के फलस्वरूप कुंडली में बनता है. काल सर्पयोग में  व्यक्ति शरीरिक-मानसिक परेशानियों और आर्थिक तंगी को झेलता है. उसे संतान संबंधी कष्ट भी होते हैं. यदि बालक धनाढय घर में पैदा हुआ है फिर भी उसको आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. जातक के जीवन में अक्सर उठापटक लगी रहती है, सफलता के शिखर से अकस्मात नीचे गिर जाता है या अमीर से गरीब बन जाता है. घटना-दुर्घटना, चोट लगना, बीमारी लगे रहते हैं. ये जातक अक्सर आत्महत्या के लिए उद्धत हो जाते हैं, उसे जीवन में सफलता नहीं मिलती या बहुत देर से मिलती है. 

काल सर्प योग का प्रसिद्ध उदाहरण जवाहरलाल नेहरु की जन्म कुंडली है-

जवाहर लाल नेहरु ने शुक्र की महादशा में राजनीति में प्रवेश किया और स्वतन्त्रता आन्दोलन में शरीक हुए, इसके बाद क्रमश: सूर्य और चन्द्रमा की दशाएं चलीं जिनमे वे कुल 3259 दिन जेल में रहे. इस दौर में उन्हें अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ा था और आर्थिक तंगी भी झेलनी पड़ी थी. लेकिन इसी दौर में वे एक कद्दावर नेता के रूप में , एक  स्मेंटेट्समैन , बुद्धिजीवी के रूप में भी उभरे और चंद्रमा की महादशा में ही भारत के पहले प्रधानमन्त्री के रूप में प्रसिद्ध Tryst with Destiny भाषण दिया.