होली रंगों का उत्सव है लेकिन उसमे वैष्णवों की पौराणिक कहानी भी जुडी हुई है. होलिका प्रहलाद की बहन थी, जिसे हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया था कि वह प्रहलाद को अग्नि में लेकर बैठे. हिरण्यकश्यप प्रहलाद को मारना चाहता था. होलिका जब प्रहलाद को लेकर बैठी तो भगवान के कारण स्वयं ही जल गई जबकि प्रहलाद का बाल बांका भी नहीं हुआ. इसलिए होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है. लेकिन प्रमुख रूप से यह रंगों का त्यौहार है जो रवि की फसल के घर में आगमन की ख़ुशी में मनाया जाया है. इस सीजन में गेहूं, चना, मटर, सरसों, जौ, मसूर, अलसी इत्यादि अन्न से किसानों के घर भर जाते हैं. यह दो दिनों का पर्व होता है, जिसमें पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन रंग खेला जाता है. इस बार होलिका दहन 13 मार्च को होगा और रंग 14 मार्च को खेला जाएगा.
होलिका दहन मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार पूर्णिमा तिथि सुबह 10.35 से प्रारंभ होगी, लेकिन 10.36 पर भद्रा प्रारंभ हो जाएगी, जो रात्रि 11.31 बजे तक रहेगी. जिससे भद्रा खत्म होने पर रात्रि 11.32 से 12.37 बजे तक होलिका दहन किया जाएगा.
होलिका दहन की राख भूल कर भी घर में न लायें. यह एक राक्षसी की चिता की राख है. यदि भूलकर भी इस राख को घर लाते हैं तो उसके साथ अनेक पिसाचआत्माएं घर में प्रविष्ट हो सकती हैं. इस दिन अग्नि को कच्चे अन्न अर्पित करने और उसे भून कर घर लाने लो शुभ माना जाता है. होलिका दहन को कालान्तर में वैष्णवों ने धार्मिक रूप दे दिया जबकि यह वैष्णवों के पुराण लिखे जाने से पूर्व से मनाई जा रही है. होलिकादहन अब चिता हो गई है जबकि पूर्व काल में यह नये अन्न के घर में आने के उपलक्ष में मनाया जाने वाला उत्सव था. होली रवि की फसल के आगमन के मौके पर मनाया जाने वाला रंगों और पकवानों का उत्सव है. इसका किसी पुराण कहानी से कोई सम्बन्ध नहीं है और चिता में भून कर अन्न घर लाने का कोई शास्त्रीय तर्क भी नहीं दिया जा सकता है. यदि प्रहलाद मर जाता तो भी यह चिता पवित्र नहीं मानी जा सकती है.

