ज्योतिष में काल सर्प योग के अंतर्गत कर्कोटक कालसर्प योग होता है. ज्योतिष के अनुसार जब केतु द्वितीय भाव में, राहु अष्टम भाव में विराजित हो तब “कर्कोटक कालसर्प योग” बनता है. कर्कोटक उतना ही महत्वपूर्ण नाग हैं जितना वासुकी. प्रजापति कशयप ने कद्रू के गर्भ से शेषनाग , वासुकी. तक्षक आदि कुल बारह सर्पों को उत्पन्न किया है. ये बारह सर्प भाई हुए जिनमें कर्कोटक भी भाई थे. सभी साँपों की बारह जातियों के राजा हुए. पौराणिक कथाओं के अनुसार कर्कोटक नागों के राजा हैं जिन्होंने इन्द्र के अनुरोध पर नल को काटा था और नल को परेशानियों से मुक्त किया था.
जंगली हाथियों द्वारा व्यापारियों के दल का सर्वनाश के बाद विदर्भराजकुमारी दमयन्ती चेदिराज के भवन में राजमाता की स्वीकृति से दमयन्ती सुखपूर्वक महल में निवास करने लगी. जब नल दमयन्ती को छोडकर चल पड़े तो आगे कथा इस प्रकार है..
बृहदश्व मुनि कहते हैं- युधिष्ठिर! दमयन्ती को छोड़कर जब राजा नल आगे बढ़ गये, तब एक गहन वन में उन्होंने महान दावानल प्रज्वलित होते देखा। उसी के बीच में उन्हें किसी प्राणी का यह शब्द सुनायी पड़ा- ‘पुण्यश्लोक महाराज नल! दौडि़ये, मुझे बचाइये।’ उच्चस्वर से बार-बार दुहरायी गयी इस वाणी को सुनकर राजा नल ने कहा- ‘डरो मत’. इतना कहकर वे आग के भीतर घुस गये. वहाँ उन्होंने देखा, एक नागराज कुण्डलाकार पड़ा हुआ सो रहा है. उस नाग ने हाथ जोड़कर कांपते हुए नल से उस समय इस प्रकार कहा-‘राजन मुझे कर्कोटक नाग समझिये.
नरेश्वर! एक दिन मेरे द्वारा महातेजस्वी ब्रह्मर्षि नारद ठगे गये, अतः मुनेश्वर! उन्होंने क्रोध से आविष्ट होकर मुझे शाप दे दिया-‘तुम स्थावर वृक्ष की भाँति एक जगह पड़े रहो, जब कभी राजा नल आकर तुम्हें यहाँ से अन्यत्र ले जायंगे, तभी तुम मेरे शाप से छुटकारा पा सकोगे’. ‘राजन! नारदजी के उस शाप से मैं एक पग भी चल नहीं सकता; आप मुझे बचाइये, मैं आपको कल्याणकारी उपदेश दूंगा. ‘साथ ही मैं आपका मित्र हो जाउंगा. सर्पो में मेरे-जैसा प्रभावशाली दूसरा कोई नहीं है. मैं आपके लिये हल्का हो जाऊंगा. आप शीघ्र मुझे लेकर यहाँ से चल दीजिये’. इतना कहकर नागराज कर्कोटक अंगूठे के बराबर हो गया. उसे लेकर राजा नल वन के उस प्रदेश और चले गये, यहाँ दावानल नहीं था. अग्नि के प्रभाव से रहित अवकाश देश में पहुँचने पर जब नल ने उस नाग को छोड़ने का विचार किया, उस समय कर्कोटक ने फिर कहा- ‘नषैघ! आप अपने कुछ पग गिनते हुए चलिये, महाबाहो.
ऐसा करने पर मैं आपके लिये परम कल्याण का साधन करूंगा’. तब राजा नल ने अपने कदम गिनने आरम्भ किये गिनते-गिनते तब राजा नल ने ‘दस’ कहा, तब नाग ने उन्हें डंस लिया. उसके हंसते ही उनका पहला रूप तत्काल अन्तर्हित हो गया. अपने रूप को इस प्रकार विकृत हुआ देख राजा नल को बड़ा विस्मय हुआ. उन्होंने अपने पूर्वस्वरूप को धारण करके खड़े हुए कर्कोटक नाग को देखा. तब कर्कोटक नाग ने राजा नल को सान्त्वना देते हुए कहा- ‘राजन! मैंने आपके पहले रूप को इसलिये अदृश्य कर दिया है कि लोग आप को पहचान न सकें.
‘महाराज नल! जिस कलियुग के कपट से आपको महान दुःख का सामना पड़ा है, वह मेरे विष से दग्ध होकर आपके भीतर बड़े कष्ट से निवास करेगा. ‘कलियुग के सारे अंग मेरे विष से व्याप्त हो जायंगे. महाराज! वह जब तक आपको छोड़ नहीं देगा, तब तक आपके भीतर बड़े दुःख से निवास करेगा. ‘नरेश्वर! आप छल-कपट द्वारा सताये जाने योग्य नहीं थे, तो भी जिसने बिना किसी अपराध के आपके साथ कपट का व्यवहार किया है, उसी के प्रति क्रोध से दोषदृष्टि रखकर मैंने आपकी रक्षा की है. ‘राजन! आपको विषमजनित पीड़ा कभी नहीं होगी. राजेन्द्र! आप युद्ध में भी सदा विजय प्राप्त करंगे।
‘राजन! अब आप यहाँ से अपने को बाहुक नामक सूत बताते हुए राजा ऋतुपर्ण के समीप जाइये. वे द्यूतविद्या में बड़े निपुण हैं. ‘निषधेश्वर! आप आज ही रमणीय अयोध्यापुरी को चले जाइये.
इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न श्रीमहान राजा ऋतुपर्ण आपसे अश्वविद्या का रहस्य सीखकर बदलें में आपको द्यूतक्रीड़ा का रहस्य बतलायेंगे और आपके मित्र भी हो जायंगे. जब आप द्यूतविद्या के ज्ञाता होंगे, तब पुनः कल्याण भागी हो जायंगे. ‘मैं सच कहता हूं, आप एक ही साथ अपनी पत्नी, दोनों संतानों तथा राज्य को प्राप्त कर लेंगे ; अतः अपने मन में चिंता न कीजिये. ‘नरेश्वर! जब आप अपने (पहले वाले) रूप को देखना चाहें, उस समय मेरा स्मरण करें और इस कपड़े को ओढ़ लें. ‘इस वस्त्र से आच्छादित होते ही आप अपना पहला रूप प्राप्त कर लेंगे.’ ऐसा कहकर नाग ने उन्हें दो दिव्य वस्त्र प्रदान किये. कुरुनन्दन युधिष्ठिर! इस प्रकार राजा नल को संदेश और वस्त्र देकर नागराज कर्कोटक वहीं अन्तर्धान हो गया.

